काजर की कोठरी में केतो ही सयानो जाय ,
एक लीक काजर की लागि है तै लागि है।
सलोक भगत कबीर जीउ के (सलोक २६ ,श्री गुरुग्रंथ साहब )
कबीर जगु काजल की कोठरी अंध परे तिस माहि ,
हउ बलिहारी तिन कउ पैसि जु नीकसि जाहि।
भावार्थ :कबीर जी कहते हैं संसार काजल की कोठरी है ,उसमें रहने वाले अंधे मूर्ख हैं। हम उस पर कुर्बान हैं जो इसमें पड़कर भी साफ़ निकल जाते हैं। (अर्थात जगत की कालिमा से अप्रभावित रहते हैं।
सार -तत्व :कबीर ने जो कुछ कहा है सूक्ष्म व्यंजना में कहा है काजल की कोठरी उसका स्थूल रूप है। यहां प्रतीक 'माया' है ,अज्ञान है। काजल काला होता है और काला रंग अन्धकार का भी होता है। अन्धकार आदमी को जड़ बनाता है। रौशनी भौतिक शरीर को चेतना देती है चौकन्ना रखती है। सोने के लिए अन्धकार चाहिए। वैश्विक स्तर पर भी सृष्टि अँधेरे में डूबी हुई है। यह अनुभव अंतरिक्ष यात्रियों का रहा है।
सुख अज्ञान रूपा अँधेरे में ही आता है। इस माया रुपी काली कोठरी में सारा विश्व मज़े से बैठा माया के उपादानों का उपभोग कर रहा है। माया पंक से बाहर आने की उसकी कोई इच्छा भी नहीं है। इसीलिए आवाजाही लगी हुई है। एक आ रहा है दूसरा जा रहा है।सब इस संसार चक्र में माया की कोठरी में फंसे हुए हैं।
इस कोठरी से बाहर आने के लिए कर्म करना पड़ेगा अपनी स्थिति को बदलने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ेगा । कोई ब्रह्मज्ञानी ही इससे बाहर आने की पहल करता है कबीर उस पर कुर्बान जाते हैं।उस ब्रह्म ग्यानी की स्थिति यह है वह बेहरूनी तौर पर इस संसार से भी जुड़ा है लेकिन अंदर उसकी लिव वाहगुरु से लगी है। फिफ्टी फिफ्टी का खेल है यह। माया के बीच में रहते हुए भी उससे संलिप्त न होना।यह कोई ब्रह्मज्ञानी ही कर सकता है जो इस कोठरी में रहते हुए भी काजल की रेख (लीक )से अछूता बना रहता है। माया उसे स्पर्श भी नहीं कर पाती क्योंकि वह नाम का कवच पहने हुए है।
एक लीक काजर की लागि है तै लागि है।
सलोक भगत कबीर जीउ के (सलोक २६ ,श्री गुरुग्रंथ साहब )
कबीर जगु काजल की कोठरी अंध परे तिस माहि ,
हउ बलिहारी तिन कउ पैसि जु नीकसि जाहि।
भावार्थ :कबीर जी कहते हैं संसार काजल की कोठरी है ,उसमें रहने वाले अंधे मूर्ख हैं। हम उस पर कुर्बान हैं जो इसमें पड़कर भी साफ़ निकल जाते हैं। (अर्थात जगत की कालिमा से अप्रभावित रहते हैं।
सार -तत्व :कबीर ने जो कुछ कहा है सूक्ष्म व्यंजना में कहा है काजल की कोठरी उसका स्थूल रूप है। यहां प्रतीक 'माया' है ,अज्ञान है। काजल काला होता है और काला रंग अन्धकार का भी होता है। अन्धकार आदमी को जड़ बनाता है। रौशनी भौतिक शरीर को चेतना देती है चौकन्ना रखती है। सोने के लिए अन्धकार चाहिए। वैश्विक स्तर पर भी सृष्टि अँधेरे में डूबी हुई है। यह अनुभव अंतरिक्ष यात्रियों का रहा है।
सुख अज्ञान रूपा अँधेरे में ही आता है। इस माया रुपी काली कोठरी में सारा विश्व मज़े से बैठा माया के उपादानों का उपभोग कर रहा है। माया पंक से बाहर आने की उसकी कोई इच्छा भी नहीं है। इसीलिए आवाजाही लगी हुई है। एक आ रहा है दूसरा जा रहा है।सब इस संसार चक्र में माया की कोठरी में फंसे हुए हैं।
इस कोठरी से बाहर आने के लिए कर्म करना पड़ेगा अपनी स्थिति को बदलने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ेगा । कोई ब्रह्मज्ञानी ही इससे बाहर आने की पहल करता है कबीर उस पर कुर्बान जाते हैं।उस ब्रह्म ग्यानी की स्थिति यह है वह बेहरूनी तौर पर इस संसार से भी जुड़ा है लेकिन अंदर उसकी लिव वाहगुरु से लगी है। फिफ्टी फिफ्टी का खेल है यह। माया के बीच में रहते हुए भी उससे संलिप्त न होना।यह कोई ब्रह्मज्ञानी ही कर सकता है जो इस कोठरी में रहते हुए भी काजल की रेख (लीक )से अछूता बना रहता है। माया उसे स्पर्श भी नहीं कर पाती क्योंकि वह नाम का कवच पहने हुए है।
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