बुधवार, 31 जुलाई 2013

श्री वेंकटेश्वर मंदिर नोवाई (मिशिगन )में योगी आनंदजी जुलाई ३० ,२० १३

श्री वेंकटेश्वर मंदिर नोवाई (मिशिगन )में योगी 

आनंदजी 

जुलाई ३० ,२० १३ 


परम पिता परमेशवर के स्मरण एवं मंत्रोचार के साथ यहाँ भी गुरूजी ने अपना वक्तव्य आरम्भ किया। परमपिता परमात्मा की 

कृपा से ही जीवन में सत्संग की प्राप्ति होती है। भगवान ने "गीता " के लघु कलेवर में सारा ज्ञान भर दिया है। अनुदेश दिए हैं 

मनुष्य को  इस जीवन में ईश्वर प्राप्ति के। मनुष्येतर योनियों में भी एक दो जीवों को ईश्वर प्राप्ति हुई है। कागभुशुण्डी इसके 

प्रमाण हैं। मनुष्य जीवन के प्रयोजन को प्राप्त करने की युक्ति है गीता। हम में से कुछ की चेतना देह भोग  के स्तर पर आकर 


ठहर गई है तो कुछ की मन के स्तर पर आ अटक गई है। बेशक कुछेक आत्मा के स्तर पर भी पहुँच जाते हैं। समझ जाते हैं इस 

देह से न्यारी और प्यारी मैं एक आत्मा हूँ। लेकिन ईश्वर प्राप्ति के स्तर पर तो कोई बिरला ही पहुँच पाता है। जीवन को ईश्वर 

मय बनाने के कुल नौ साधन गीता में बतलाये गए हैं। मनुष्य की फिलवक्त सोई हुई चेतना को जगाना ही गीता का प्रयोजन है। 


परमात्मा द्वारा बोले गए किसी एक सिद्धांत को भी यदि आपने जीवन में उतार लिया तो हमारा जीवन सार्थक और धन्य हो जाएगा। 

गीता हमें कुरुक्षेत्र के मैदान में ला खडा करती है जहां युद्ध की दुन्दुभि बज रही है ,अर्जुन का -पुरुष की तरह विषाद ग्रस्त हो रहा है। भगवत गीता हम 

सब को भी इस माया -मोह और विकारों से मुक्त करने का साधन हैं। अध्यात्म जीवन  का  पहला  फ्री -वे है ,हाई -वे और राज मार्ग है :अभयं 

(अभय ). हमारा जो मन है वह निर्भय हो जाए। निर्भय और अभय का बारीक अंतर समझाते हुए श्री आनंदजी  ने बतलाया :निर्भय का मतलब है डर 

तो है लेकिन हम उससे डरते नहीं हैं। अभय का मतलब है जहां भय है ही नहीं। जहां किसी भी प्रकार का भय है ही नहीं भय का नहींपन ,भय की 

अनुपस्थिति ही अभय है। जब हम भगवान के अंश(वंश ) हैं फिर डर कैसा। भगवान ने  हमें अपने निज स्वरूप में ही तो बनाया था। हम सभी अमृत 

की संतान हैं। भय रहेगा तो फिर ईश्वर प्राप्ति भी नहीं होगी। भय और चिंता से ऊपर हो जाना है गीता सार को आत्मसात करना। 

सांसारिक चीज़ों को भले महत्व दो। लेकिन इन्हें अपना मत समझो। ये अनुराग ये राग ये भाव इन वस्तुओं के प्रति न रहे ये सब कुछ मेरा है यह 

पकड़ के वस्तुओं को व्यक्तियों को बैठना ही भय का कारण बनता है स्रोत है भय का। जो कुछ भी जीवन में है हमारा नहीं है ,सब कुछ भगवान  का 

है। जो कुछ भी हमारे पास अब है यह  पहले नहीं था इसलिए बाद में भी नहीं रहेगा। लाखों कोशायें पल प्रति पल मर रहीं हैं यह शरीर भी क्षण प्रति 

क्षण बदल रहा है। जैसा अब है पहले नहीं था इसलिए बाद में भी नहीं रहेगा। फिर गुमान कैसा? नाज़ कैसा इस तन पे? इस तन के सौन्दर्य पर?रूप 

पर अभिमान कैसा ?


वस्तु और साधनों का भोग जीवन निर्वाह के लिए है। लेकिन हमारी वृत्तियों में उनका दखल हमारा स्वभाव बिगाड़ देता है। हमें बीमार बना जाता है। 


अगर आपके पास पैसा ज्यादा है तो आयकर का भय बना रहेगा। याद रहे ईशवर तत्व का जो सानिद्य है वही अकाल है शाश्वत  है। अभय है। वस्तु 

और पदार्थ का आश्रय इस संसार का आश्रय किसी व्यक्ति का आश्रय भय पैदा करेगा। 

रावण के पराक्रम की  चर्चा है "मानस " में उसकी भृकुटी टेढ़ी हो जाने पर दिग दिगंत में आंतक व्याप जाता था। लेकिन वही रावण जानकी का हरण 

करते वक्त भय से कुत्ते की तरह कांपता है। भय भीत है क्योंकि वह दुराचार के मार्ग पे जा रहा है। विवेक बुद्धि हीन होकर। जबकी ईश्वर की शक्ति 

हमें ऊर्ध्वगामी बनाती है ऊपर की और ऊंचे ते भी ऊंचा बना देती है। निर्भय बनाती है। भगवान  के संसर्ग  में ही व्यक्ति अभय होगा। 

अंत :करण  की 


पवित्रता भी जीवन में ज़रूरी है। ईश्वर प्राप्ति के लिए बुद्धि का पात्र निर्मल होना बहुत ज़रूरी है। जो व्यक्ति अपनी शुद्धता से विवेक से गिर जाता है 

उसे शाश्त्र भी पवित्र नहीं कर सकता। याद रहे हमारी आत्मा ही वह नदी है जिसमें संयम और पुण्य के घाट बने हुए हैं। इन घाटों का नाद सुनों।

शरीर की सुनोगे तो कमज़ोर बनोगे। सत्संग द्वारा अर्जित  पूंजी  ही अंत में साथ जाती है। शेष बचती है बाकी सब चुक जाती है। साथ नहीं जाती 

है। 

जिस नदी में सत्य का जल उछलता है वही पावन बना सकती है। शेष नदियों का जल काया को भले शुद्ध करे मन का स्पर्श नहीं करता है। 

असत्य का संग भय पैदा करता है। 

"ये आग का दरिया है और डूब के  जाना है "

सांसारिक जल से काया और वस्त्रों की ही शुद्धि हो सकती है शाश्वत सिर्फ सत्य की नदी ही है। गीता ज्ञान के जल से ही असल शुद्धि हो सकती है। 

ज्ञान का आश्रय ही अंतिम और स्थाई आश्रय है। ज्ञान वह अग्नि है जो अज्ञानता की अग्नि को भस्म कर देती है। हमारा देश तो ज्ञान का उपासक 

रहा है। सूचना प्रोद्योगिकी का अतिक्रमण कर ज्ञान प्रोद्योगिकी की तरफ एक बार फिर से गीता ज्ञान ही ले जाएगा। नोलिज ही पावर थी तब भी। 

आपने कुमारिल भट्ट  के शिष्य और और वय :संधि स्थल पर खड़े शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शाश्तार्थ का किस्सा बतलाया। भट्ट  के तो  तोते 

भी परम गुनी थे। जिसके 

तोते भी ज्ञानी द्वारपाल थे वह मंडन मिश्र अपने अभिमान में बोले ये बालक (शंकराचार्य )मुझसे शाश्त्राथ करेगा इसकी तो अभी गुरुकुल जाकर 

ज्ञानार्जन की उम्र है। युवा शंकराचार्य बोले आप इसकी परवाह न करें -प्रात :कालीन सूर्य त्रिगुण (तीन लोकों )के अँधेरे को हर लेता है। आखिर में 

मंडन मिश्र ही पराजित हुए। ज्ञान की हमारे यहाँ ऐसी समृद्ध संस्कृति थी। 

सिर्फ आज का किस्सा नहीं है यह। ज्ञान की उपासना के बिना जीवन एक लुटे हुए व्यक्ति की तरह ही होगा। अफ़सोस है आज बच्चे श्री राम की माँ 

का नाम भी नहीं जानते हैं। 

दान की महिमा  भी करती है गीता। बिना दान के आसक्ति नहीं मिटने वाली है। देने वाला ही भगवान का  प्रिय बनता है।  

अपनी आय का दस फीसद तुम भी दान दो। 

ॐ शान्ति 



Yogi Anand Ji

तपस्तीर्थं जपो दानं पवित्राणीतराणी च ।
नालं कुर्वन्ति तां सिद्धिं, या ज्ञान कलया कृता ॥

भगवान कहते हैं कि.... तत्व-ज्ञान के लेशमात्र का उदय होने से जीवन में जो बहुमूल्य सिद्धि प्राप्त होती है, वह तपस्या, तीर्थ, जप दान अथवा अन्तःकरण- शुद्धि के और किसी भी साधन से पूर्णतया नहीं हो सकती ।



"मामनुष्मर युद्ध्य च"

सांसारिक बाह्य भौतिक विषयों में यह सामर्थ्य नहीं है कि... वह किसी भी मनुष्य के मन को क्षुब्ध या लुब्ध बना सके, व्यक्ति के मन में विक्षेप या हलचल का होना तो उन विषयों का हमारे मन के आसक्ति पूर्ण सम्बन्धों पर ही निर्भर करता है । मन के द्वारा विषयों का राग पूर्वक चिन्तन किये जाने पर ही, ये विकार मनुष्य के उपर शासन कर पाने में समर्थ हो पाते हैं ।
अतएव मन में चिन्तन तो केवल मायापति का ही होना चाहिये.....माया का नहीं । "मामनुष्मर युद्ध्य च"

भगवत-गीता पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा गाया गया, जीवन की पूर्णता का वह महाकाव्य है जो संसार के मोह-भ्रमजाल एवं विपरीत ज्ञान में फँसे लोगों को निकाल कर, मानव जीवन की वास्तविकता का बोध कराता है ।

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररुपिणं, यमाश्रितो हि वक्रोपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ॥

नित्य, ज्ञानमय भगवान शंकररुपी गुरु की मैं वन्दना करता हूँ...जिनके आश्रित होने मात्र से ही वक्र (टेढ़ा) चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है ।

विषय भोगों के लिये प्रतिदिन नित्य नये नये साधनों की खोज करने वाले लोग, दुःखों से भरे हुए मृत्यु के संसार सागर में ही भटकते रहते हैं ।

जब भी मनुष्य अपने जीवन में केवल सांसारिक विषय सुख भोगों का चिन्तन करके, उन्हें ही प्राप्त करने का प्रयास करता है, तब उसे संसार के विषय भोग तो प्रायः प्राप्त हो जाते हैं, परन्तु वे सभी के सभी स्वरुप से अनित्य, क्षणभंगुर तथा विनाशी होने से, उनके परिणाम में केवल दुःख ही हाथ लगता है ।

इन विषय सुख भोगों के प्रेम के पीछे चाहे कोई भी उद्देश्य क्यों न हो, एक बार चित्त का विषय लोलुप हो जाने पर, मनुष्य दुःखों का खारा समुद्र पीने के लिये विवस हो जाता है ।

जिस तरह निर्मल जल से शरीर एवं वस्त्र शुद्ध होता है, उसी प्रकार धर्माचरण एवं ज्ञान से बुद्धि तथा मन पवित्र होता है... हरिॐ.....

आत्मयोग साधना के अन्तर्गत, जीवन में अपने सहज स्वरुप, पूर्णता की प्राप्ति हेतु, त्यागने योग्य एकादश अमानवीय वृत्तियाँ......

१) विषयों में आसक्ति का त्याग...

२) अहंकार का त्याग...

३) स्वार्थपूर्ण भावनाओं का त्याग....

४) राग-द्वेष का सर्वथा त्याग...

५) आलस्य, प्रमाद, व अज्ञानता का त्याग...

६) विलासिता एवं भोगमय वृत्तियों का त्याग....

७) असत्य आचरण का त्याग...

८) अनावश्यक सांसारिक प्रपंच का त्याग...

९) दुष्कर्मों का त्याग...

१०) किसी के प्रति भी घृणा का त्याग...

११) हर प्रकार की आन्तर-बाह्य मलीनता एवं अशुद्धि का त्याग



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उन्हें मौलाई मस्ती चढ़ी हुई होगी।

  1. Madhuban Murli LIVE - 1/7/2013 (7.05am to 8.05am IST) - YouTube

    www.youtube.com/watch?v=FICS56eQaYE
    Jul 1, 2013 - Uploaded by Madhuban Murli Brahma Kumaris
    Murli is the real Nectar for Enlightenment, Empowerment of Self (Soul). Murli is the source of income which ...

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31 July 2013 Murli



421

English Murli

Essence: Sweet children, you have come to this spiritual university to change from buddhus (foolish ones) to wise. Wise means pure. You are now studying this study to become pure.
Question: What are the main signs of wise children?
Answer: Wise children constantly play with knowledge. They are always intoxicated in Godly intoxication. All the knowledge of the world cycle is in their intellects. They have the intoxication: Our Baba has come from the supreme abode for us and we resided with Him in the supreme abode. Our Baba is the Ocean of Knowledge and we have become master oceans of knowledge. He has come to give us the inheritance of liberation and liberation-in-life.
Song: Who has come to the door of my heart?
Essence for dharna:
1. Surrender everything with your intellect and live as a trustee. Perform every task with great caution according to shrimat.
2. Remember Baba and the inheritance and experience limitless happiness. While in remembrance of Baba, experience Godly intoxication. Become a true lover.
Blessing: May you be a carefree emperor who considers the self to be an instrument and performs every action with the awareness: “The One who is inspiring everyone is getting it done through me”.
“The One who makes everyone move is making me move, the One who is inspiring everyone is getting it done through me” Be an instrument with this awareness as you continue to perform actions and you will remain a carefree emperor. When you have the awareness that you are doing something, you cannot then remain a carefree emperor. However, the awareness that you have been made an instrument by the Father gives you the experience of a carefree and worry-free life. Then, there is no worry of what is going to happen tomorrow. Such a soul has the faith that whatever is happening is good and that whatever is going to happen will be even better because the One who is inspiring everyone is the best of all.
Slogan: Give everyone the experience of happiness and comfort through your vibrations of peace and happiness and only then will you be called a true server.

Hindi Murli

मुरली सार:- ”मीठे बच्चे-तुम इस रूहानी युनिवर्सिटी में आये हो बुद्धू से बुद्धिवान बनने, बुद्धिवान अर्थात् पवित्र, पवित्र बनने की पढ़ाई तुम अभी पढ़ते हो”
प्रश्न:- बुद्धिवान बच्चों की मुख्य निशानी सुनाओ?
उत्तर:- बुद्धिवान बच्चे ज्ञान में सदा रमण करते रहेंगे। उन्हें मौलाई मस्ती चढ़ी हुई होगी। उनकी बुद्धि में सारे सृष्टि चक्र की नॉलेज रहती। नशा रहता कि हमारा बाबा हमारे लिए परमधाम से आया हुआ है। हम उनके साथ परमधाम में रहते थे। हमारा बाबा ज्ञान का सागर है, हम अभी मास्टर ज्ञान सागर बने हैं। हमें वह मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा देने आये हैं।
गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे……..
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बुद्धि से सब कुछ सरेन्डर कर ट्रस्टी हो रहना है। बहुत सम्भाल से श्रीमत प्रमाण हर कार्य करना है।
2) बाबा और वर्से को याद कर अपार खुशी का अनुभव करना है। बाबा की याद में मौलाई बन जाना है। सच्चा आशिक बनना है।
वरदान:- कराने वाला करा रहा है – इस स्मृति द्वारा निमित्त बन हर कर्म करने वाले बेपरवाह बादशाह भव
चलाने वाला चला रहा है, कराने वाला करा रहा है – इस स्मृति द्वारा निमित्त बनकर हर कर्म करते चलो तो बेपरवाह बादशाह रहेंगे। ”मैं कर रहा हूँ” – यह भान आया तो बेपरवाह नहीं रह सकते। लेकिन बाप द्वारा निमित्त बना हुआ हूँ – यह स्मृति बेफिकर वा निश्चिंत जीवन का अनुभव कराती है, कल क्या होगा उसकी भी चिंता नहीं। उन्हें यह निश्चय रहता कि जो हो रहा है वह अच्छा और जो होने वाला है वह और भी बहुत अच्छा, क्योंकि कराने वाला अच्छे ते अच्छा है।
स्लोगन:- अपने शान्ति और सुख के वायबेशन से हर एक को सुख चैन की अनुभूति कराओ तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।

Hinglish Murli

Murli Saar : – ” Mithe Bacche – Tum Is Ruhani University Mei Aaye Ho Budhu Se Buddhivan Banne, Buddhivan Arthat Pavitra, Pavitra Banne Ki Padhai Tum Abhi Padte Ho”
Prashna : – Buddhivan Baccho Ki Mukhya Nishani Sunao ?
Uttar : – Buddhivan Bacche Gyaan Mei Sada Raman Karte Rahenge. Unhe Moulai Masti Chadhi Hui Hogi. Unki Buddhi Mei Saare Shrishti Chakra Ki Knowledge Rahti. Nasha Rahta Ki Humara Baba Humare Liye Paramdham Se Aaya Hua Hai. Hum Unke Saath Paramdham Mei Rahte Thay. Humara Baba Gyaan Ka Saagar Hai, Hum Abhi Master Gyaan Saagar Bane Hai. Hume Vah Mukti – Jeevanmukt Ka Varsa Dene Aaye Hai.
Geet : – Kaun Aaya Mere Mann Ke Dware. .. .. .. .
Dharan Ke Liye Mukhya Saar : -
1 ) Buddhi Se Sab Kuch Surrender Kar Trusty Ho Rehna Hai. Bahut Sambhal Se Shrimat Praman Har Karya Karna Hai.
2 ) Baba Aur Varse Ko Yaad Kar Apaar Khushi Ka Anubhav Karna Hai. Baba Ki Yaad Mei Moulai Ban Jana Hai. Saccha Aashiq Bannna Hai.
Vardan : – Karane Wala Kara Raha Hai – Is Smruti Dwara Nimit Ban Har Karm Karne Wale Beparwah Baadshah Bhav
Chalane Wala Chala Raha Hai, Karane Wala Kara Raha Hai – Is Smruti Dwara Nimit Bankar Har Karm Karte Chalo Toh Beparwah Baadshah Rahenge. ” Mei Kar Raha Hu” – Yah Bhaan Aaya Toh Beparwah Nahi Rah Sakte. Lekin Baap Dwara Nimit Bana Hua Hu – Yah Smruti Befikar Va Nischint Jivaan Ka Anubhav Karati Hai, Kal Kya Hoga Uski Bhi Chinta Nahi. Unhe Yah Nishchaye Rahta Ki Jho Ho Raha Hai Vah Acha Aur Jho Hone Wala Hai Vah Aur Bhi Bahut Acha, Kyunki Karane Wala Acche Te Acha Hai.
Slogan : – Apne Shanti Aur Sukh Ke Vibration Se Har Ek Ko Sukh Chain Ki Anubhuti Karao Tab Kahenge Sacche Sevadhari.

  1. Brahma Kumaris Murlis

    www.bkmurlis.com/

    31 July 2013 Murli ... View 31-07-2013@@ KI MURLI HINDI ME ... Murli Saar : – ” Mithe Bacche – Tum Is Ruhani University Mei Aaye Ho Budhu Se Buddhivan ...
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ज्ञानार्जन के लिए किसी औचारिक शिक्षा की ज़रुरत नहीं है।

30 July 2013 Murli

421

English Murli

Essence: Sweet children, you are now sitting personally in front of the Father, Teacher and Satguru. The mercy of the Father is that He becomes your Teacher and teaches you and He becomes the Satguru and takes you back with Him.
Question: What have you promised the Father? What is your duty?
Answer: You have promised: Baba, whatever we hear from You, we will definitely tell that to others and make them equal to ourselves. Our duty is to teach everyone in the same way as the Father teaches us because the locks on our intellects have now opened. Just as we are claiming our inheritance, in the same way, we have to be merciful and enable others to claim their inheritance.
Song: Take blessings from the Mother and Father.
Essence for dharna:
1. Follow the Mother and Father in this study. Stay in the happiness that God has come from the highest-on-high land to teach us.
2. We now have to return to our sweet home, so practise being bodiless. Forget everything including your body.
Blessing: May you be ignorant of the knowledge of desires and, instead of chasing after the mirage of desires, accumulate a true income.
Some children think that if they were to win the lottery, they would give everything to the yagya. However, such money cannot be used for the yagya. Sometimes, children have this desire for themselves and say that if they win the lottery, they will do service with it. However, to be a millionaire now means to lose millions for all time. Chasing after desires is like a mirage; therefore accumulate a true income. Become ignorant of even the knowledge of limited desires.
Slogan: Move along considering obstacles to be a game instead of obstacles and you will overcome those obstacles while singing and laughing as in a game.

Hindi Murli

मुरली सार:- ”मीठे बच्चे-अभी तुम बाप, टीचर, सतगुरू-तीनों के सम्मुख बैठे हो, बाप की यही कृपा है जो टीचर बन तुम्हें पढ़ा रहे हैं, सतगुरू बन साथ में ले जायेंगे”
प्रश्न:- तुम बच्चों का बाप से कौन-सा वायदा है? तुम्हारा कर्तव्य क्या है?
उत्तर:- बाप से वायदा है-बाबा, हम आपसे जो कुछ सुनते हैं वह दूसरों को भी अवश्य सुनायेंगे। आप समान बनायेंगे। हमारा कर्तव्य है-बाप समान सबको पढ़ाना क्योंकि अभी बुद्धि का ताला खुला है। जैसे हम वर्सा ले रहे हैं ऐसे रहमदिल बन दूसरों को भी वर्सा दिलाना है।
गीत:- ले लो दुआयें माँ-बाप की……..
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पढ़ाई में मात-पिता को फालो करना है। खुशी में रहना है कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान् हमें पढ़ाने आते हैं।
2) अब हमें वापस स्वीटहोम जाना है, इसलिए अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। देह सहित सब कुछ भूल जाना है।
वरदान:- इच्छाओं रूपी मृगतृष्णा के पीछे भागने के बजाए सच्ची कमाई जमा करने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव
कई बच्चे सोचते हैं कि अगर हमारे नाम से लाटरी निकल आये तो हम यज्ञ में लगा दें। लेकिन ऐसा पैसा यज्ञ में नहीं लगता। कई बार इच्छा स्वयं की होती है और कहते हैं कि लाटरी आयेगी तो सेवा करेंगे! लेकिन अब के करोड़पति बनना अर्थात् सदा के करोड़ गंवाना। इच्छाओं के पीछे भागना तो ऐसे है जैसे मृगतृष्णा इसलिए सच्ची कमाई जमा करो, हद की इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनो।
स्लोगन:- विघ्न को विघ्न के बजाए खेल समझकर चलो तो खेल में हंसते गाते पास हो जायेंगे।

योगी आनंदजी ,अठ्ठाईस जुलाई की शाम हमारे कैंटन 

(मिशिगन )

स्थित आवास पर पधारे। उनके मुख कमल से निकले 

कुछ बोल हमारी धरोहर बने हमारे आसपास अनुगुंजित 

हैं आप भी लाभान्वित होवें :

ज्ञानार्जन के लिए किसी औचारिक शिक्षा की ज़रुरत नहीं है। 

साधना 

का अपना महत्व है जीवन में। 

साधना रत होने पर प्रकृति में जो भी ज्ञान प्रवाहित हो रहा है रेडिओ तरंगों 

पर सवार हो वह हम तक अनायास पहुंचेगा। मंतोच्चार की मंगल ध्वनी से 

वायुमंडल को पवित्र बनाते हुए गुरु आनंदजी ने  अपना प्रवचन आरम्भ 

किया।  आपने बतलाया विश्व के तमाम ज्ञात अज्ञात धर्मों का भगवत 

गीता  सार तत्व है ।जीवन और जगत के  अठ्ठाईस मूल प्रश्नों का उत्तर है 

"गीता 

".स्वयम भगवान् के मुख से उच्चरित है यह ग्रन्थ। जीवन के लिए 

पारसमणि है गीता ज्ञान। भारत जब इस ज्ञान  से संपन्न था सोने की 

चिड़िया था। 

अमरीका से ऊपर था। आज प्राय :इस ज्ञान का लोप होने पर भारत कहाँ है 

यह बतलाने की ज़रुरत नहीं है आप सब जानते हैं।अपनी पीठ खुद ही क्यों 

उघाड़ के दिखलाई जाए।

भगवान का  मूल स्वरूप निर्गुण निराकार का ही है उसी स्वरूप का दुनिया 

भर में गायन है सनातन धर्म वंश हो या इस्लाम ,ईसाइयत हो या सीख्खी। 

आप भगवान को तरह तरह की वस्तुएं अर्पित करते  हैं। भगवान सिर्फ 

हमारा  "मन " चाहता है ,कोई वस्तु द्रव्य या पदार्थ नहीं। 

जीवन  का सार और मकसद बस इतना ही है यह शरीर माँ बाप की सेवा में 

अर्पण हो और चित्त भगवान में। 

मन को हद के भौतिक सुख  के लिए ही इस संसार में मत लगाओ। इनकी 

प्राप्ति के बाद इनसे उपराम हो जाओ। भूल जाओ इन्हें। 

भगवान कहते हैं इस विश्व के सारे सौन्दर्य और एश्वर्य में भी मैं ही हूँ।

आनंद लेना है तो बे -हद का लो। मीरा ,महावीर या बुद्ध कोई मूर्ख  नहीं थे 

सारा धन वैभव और एश्वर्य छोडके निकल आये थे। 

सिकंदर जो विश्व विजय का सपना लेके निकला था उसकी भी आँखें एक 

सन्यासी ने ही खोली  थीं। सिकंदर ने अपने अहंकार में आकर कहा था 

सन्यासी तुम्हारे पास क्या है :बस एक ये कमंडल ,एक लोटा जल और 

गेरुआ 

वस्त्र।  सन्यासी ने साधू भाव से कहा :सिकंदर जिसने यह संसार बनाया 

वह ईश्वर मेरा है। तुम्हारे साम्राज्य की कीमत यह एक लोटा भर जल है 

जिसके अभाव में तुम्हारे प्राण पखेरू अभी अभी उड़ जाते। जब तक 

भगवान साथ न 

हो किसी चीज़ की कोई कीमत नहीं है कोई वकत नहीं है। विकार ग्रस्त होने 

पर ही संसार असार हो जाता है। अहंकार सबसे बड़ा विकार है  जिसके मद

 में तुम मदमाये हो।

इस संसार में जो ज़रूरीयात की चीज़ें हैं तुम्हारी आवश्यकताएं हैं नीड्स हैं 

उनकी प्राप्ति ज़रूरी है बस।  चस्का लगाना है किसी चीज़ का तो सबसे 

बड़ी वह चीज़ ईश्वर ही है कोई वस्तु , व्यक्ति या साधन नहीं। भगवान के 

लिए खर्च किया गया धन ही अखूट रहता है लूट का धन जल्दी ही  चुक भी 

जाता है। बाकी 

सब तो यहीं रह जाना है। 

बहर-सूरत इच्छाओं एषनाओं  का कोई अंत नहीं : 

 संतों की वाणी से उद्धरण  देते  हुए आपने कहा -

मेरो मन अनत कहाँ  सुख पावे ,जैसे उड़ी  जहाज को पंछी ,

उड़ी  जहाज पे आवे। 

एक बेहतरीन शैर के माध्यम से आपने वस्तु और व्यक्ति के पीछे दौड़ने 

वालों को यह सन्देश दिया -

न जाने किसकी हमें उम्र भर तलाश रही ,

जिसे भी करीब से देखा वह दूसरा निकला। 

उपासना शब्द को आपने नै परवाज़ दी। ईश्वर के पास बैठना ही उपासना है 

बोले तो (उप +आसन ). उड़ने की तरकीब बतलाई आपने हम सबको यह 

कहकर जहां पवित्रता होती है परमात्मा भी वहीँ होता है। पवित्र बनो और 

उड़ो !ऊंचे ते ऊंचा। 

ॐ शान्ति 

भ्रम से ब्रह्म की ओर् - A journey from Disilluion towards the 

Divine - under the spiritual guidance of Guru Yogi Anand 

Ji ! — with Amit Saini and Virendra Sharma.



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