गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

गुण ही गुण हैं गुड़ में :

नुश्खे सेहत के :
गुण ही गुण हैं गुड़  में :
गुड़ खाने का मतलब है शरीर से अवांछित कणों  की साफ़ सफाई निकासी .गुड़ हमारे श्वसनी क्षेत्र (Respiratory tracts),खाना ले जाने वाली पाइप,भोजन  की नली जो भोजन को मुख से आमाशय या उदर तक पहुंचाती है   (food pipe ,oesophagus) को स्वच्छ रखता है .पेट और आँतों की सफाई करता है .
Eating jaggery pulls out unwanted particles from the body and cleans the respiratory tracts ,food pipe ,stomach and intestines.
मूली  पाचनतंत्र   के लिए बहुत अच्छी है सब कुछ को हज़म कर देती है लेकिन मूली को पचाने ,डकार एवं बादी से बचने के लिए मूली खाने के बाद  गुड़ की डली  खानी ज़रूरी है .लोकोक्तियो मुहावरों में रचा बसा गुड़ बेहद उपयोगी है हिमोग्लोबिन को बढाता है (खून में लौह अंश को बढाता है ).'आदमी गुड़ न भी दे तो गुड़ जैसी बात तो कह दे '.
राम राम भाई :
एक अनार सौ बीमार यूं ही नहीं कहा  गया है .एंटीओक्सिदेंतों (Antioxidents) से लदा है अनार .आपकी चमड़ी की कांति  ,ग्लो, चमक दमक को बनाए रहता है .चमड़ी को जवान बनाए रखने और झुर्रियों से बचे रहने के लिए खाइए अनार .
राम राम भाई
ज्यादा खाना याददाश्त गंवाना ?
एक अध्ययन के अनुसार वे वयस्क (बालिग़ )लोग  जो दिन भर की खुराक के तहत कुल २१०० -६००० केलोरीज़ अपने सिस्टम में डाल लेतें हैं गड़प कर लेतें हैं उनके याददाश्त क्षय (Memory loss )से ग्रस्त होने की संभावना उन लोगों के बरक्स दो गुना बढ़ जाती है जिनके दिन भर के भोजन में इससे कमतर केलोरीज़ शामिल रहतीं हैं .
Mild Cognitive Impairment(MCI) का सीधा रिश्ता है आपके द्वारा गप्प की गई फ़ूड केलोरीज़ से .जितनी ज्यादा खपत उतना ज्यादा छीजती है याददाश्त .यानी समानुपातिक सम्बन्ध है .केलोरीज़ की ज़रुरत  से ज्यादा  खपत के अनुरूप याददाश्त क्षय भुलक्कड़ पन बढेगा .यह एक प्रकार का संज्ञानात्मक (बोध सम्बन्धी ,प्रज्ञा सम्बन्धी ह्रास हो कहलायेगा ,  Mild memory loss आप इसे कह बूझ सकतें हैं .
राम राम भाई !  राम राम भाई !

खबरे सेहत की :
Mediterranean diet helps brain :
बढती उम्र से साथ जीवन के एक सौपान एक पड़ाव  पर पहुंचकर आदमी बुढ़ाने  लगता है,याददाश्त क्षय होने लगता है कितने ही बुढापे के इसी उम्र के साथ संग बढ़ते भुलक्कड़ पन के शिकार होने लगतें हैं .चिकित्सा शब्दावली में इसे अल्जाइ -मार्स  रोग कह दिया जाता है .भारत में इसे सठियाना कहकर दर किनार कर दिया जाता है जबकि यह एक प्रकार का डिमेंशिया है न्यूरोदिजेंरेतिव डिजीज है .
इससे    बचने के .लिए साइंसदानों ने सुझाई है 'मेडीतरेनियंन खुराक  '.यह दिमाग को चुस्त दुरुस्त प्रखर बनाए रह सकती है .दिमागी सेहत के लिए अच्छी बतलाई गई है .
मियामी विश्व विद्यालय से सम्बद्ध 'मिलर स्कूल ऑफ़ मेडिसन 'के साइंसदानों के मुताबिक़ तरकारी और फिश बहुल खुराक (ग्रीन्स और मच्छी ,मॉस -मच्छी नहीं ) के साथ साथ मोडरेट ड्रिंकिंग संज्ञानात्मक (बोध सम्बन्धी विकारों से जुड़े )लीश्जन को मुल्तवी  रखती है ,,यही माइल्ड कोगनिटिव डिसऑर्डर आगे चलके अल्जाइमर्स का रूप ले सकता है .
राम राम भाई !
साफ़ साफ़ बोलिए संभल के बोलिए छ :माहे के सामने क्योंकि :
शिशु शब्दों के अर्थ पहले ही बूझने लगतें हैं यद्यपि वह उन शब्दों यथा शरीर के अंगों के नाम और खाने पीने की चीज़ों के नाम बोलना  बाद को ही सीख पातें हैं   उनके अर्थ छ: महीने का होने पर ही समझने लगतें हैं .अब तक यही समझा जाता था शिशु एक साला होने के बाद ही शब्दों को बोलना सीख पातें हैं .इसलिए ज़रूरी है शिशुओं के सामने शब्दों के शुद्ध रूप और नाम उच्चारित किये जाएँ .रोटी को हप्पा और पानी को मम्मा न कहा जाए .हाथ पैर ऊंगली मुंह नाक कान सर बाल ,आँख पलक माथा सब साफ़ साफ़ बोला जाए .नाखून     हथेली     तलुवे    सबका   उच्चारण साफ़ साफ़ किया जाए .बच्चे की नक़ल करने की होंठों का एक्शन  पढने  बूझने चुराने  की क्षमता  बहुत  ज्यादा होती  है .
उससे   कहीं   ज्यादा   जितना      अब तक समझा जाता रहा  है .
पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने पता लगाया है खाने पीने और शरीर के अंगों के नामों के अर्थ बूझने समझने लगतें हैं इसीलिए जो कुछ उनके सामने बोला जाए सोच समझकर साफ़ साफ़ बोला जाए .आगे चलकर यह उनकी शब्द सामर्थ्य को बढाता है .उनकी भाषिक प्रवीणता भी निखरती है .
नतीजे 'जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ़ दी नेशनल अकादेमी ऑफ़ साइंसिज़ 'में छपे हैं परम्परा गत सोच का विरोध करतें हैं जिसके अनुसार शिशु एक साल के बाद ही शब्दों के अर्थ बूझते हैं इन्हें बोलना सीखतें हैं .हकीकत यह है अर्थ पहले समझने लगतें हैं बोलना थोड़ा बाद में सीखतें हैं .छ :महीने का होने पर अर्थ समझने ही लगतें हैं भले   बोले इसके एक साल या और भी बाद में .
हकीकत यह है अपनी स्थानीय मुंह बोली     आंचलिक या नेटिव    भाषा (Native language )की  ध्वनियों     को   बुनियादी    बनावट       को बच्चे समझने बूझने लगतें हैं .बाद का बोलना मात्र      रिहर्सल     होता     है .
सन्दर्भ सामिग्री :6 -month -olds can understand words.(EARLY LEARNER )/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI ,FEB15,2012/P23 .
खाने  पीने की चीज़ों   शरीर  के  अंगों  के  नामों को समझने लगतें हैं नौनिहाल छमाहे .


14 टिप्‍पणियां:

Aruna Kapoor ने कहा…

आपने बहुत ही उपयुक्त और बढ़िया जानकारी द्याहन दी है....धन्यवाद!

मेरे ब्लॉग पर पधारे!...http://arunakapoor.blogspot.in/ यह पोस्ट देखें

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गुड़ खाओ, आनन्द उठाओ..

अशोक सलूजा ने कहा…

कमाल-कमाल की जानकारी देते हो वीरू भाई ...क्या खाएं..कैसे खाएं ..कितना खाएं और क्या बोलें बच्चे के सामने ..वाह!
वैसे खाना खाने के बाद आप की पोस्ट पढ़ या आप से बात कर लें तो गुड का काम तो वैसे ही हो जायेगा ऐसा मेरा मानना है ...:-))))
आभार! राम-राम !

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत दिनों से घर में आना बंद है, आपका आलेख पढ़कर पहला विचार आया कि बस अब दूकान से गुड़ ले ही आता हूं।

हां दूसरा भाग पढ़कर याद आया कि मैं भी कुछ-कुछ भूलने लगा हूं।

dinesh aggarwal ने कहा…

राम राम भाई नमस्कार...
लाभप्रद एवं उपयोगी जानकारी देने के लिये आभार...
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

गुड़ अख़िर गुड़ है जी

डॉ टी एस दराल ने कहा…

गुड़ के गुणों का अच्छा व्याख्यान किया है । हम भी सर्दियों में खूब खाते हैं ।

Anita ने कहा…

बहुत उपयोगी जानकारी दी है आपने इस पोस्ट में...आभार !

G.N.SHAW ने कहा…

मीठापन भरा लेख और उपयोगी ! भाई साहब --राम ..राम..

Arvind Mishra ने कहा…

मुझे तो बस यही कहना है कि गुड खाने वालों को गुलगुले से परहेज नहीं करना चाहिए ! :)

रेखा ने कहा…

आज -कल गुड मुझे भी अच्छी लगने लगी है ...
सेहत के उपयोगी नुस्खे के लिए आभार ........

सूत्रधार ने कहा…

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तो आज से कम केलोरी .... अच्छी याद्दाश्त का तोहफा ...
गुड खाना शुरू ...

SANDEEP PANWAR ने कहा…

गुड खाये बिना अपना भोजन अधूरा रहता है।