गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

चूहे से हाथी ,हाथी से चूहे की मींगनी बनने तक का सफ़र .

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चूहे से हाथी ,हाथी से चूहे की मींगनी बनने तक का सफ़र .

 
चूहे से हाथी ,हाथी से चूहे की मींगनी बनने तक का सफ़र .
बात मुख़्तसर सी है लेकिन है बड़े काम की बड़ी अर्थपूर्ण .एक अभिनव शोध के अनुसार चूहे के आकार के किसी स्तनपाई को हाथी का आकार लेने में दोकरोड़ चौबीस लाख पीढियां लग जातीं हैं .लेकिन हाथी से चूहे तक की गिरावट राजनीतिक गिरावट की तरह द्रुत रहती है .एक लाख पीढियां लगतीं  हैं बस .और राजनीति  तो अब हाथी की लेदेके मूर्तियाँ ही गढ़ पाती है जो एन वक्त पर ढक  दी जातीं हैं .राजनीतिक गिरावट ने हाथी से चूहे तक क्या चूहे की मींगनी बनने में बहुत कम लगाया है .१९७० के बाद की राजीनीति इसकी साक्षी है .
जैव और जीवाश्म विज्ञान के माहिरों की एक टीम ने स्तन पाइयों के वैकासिक क्रम और समय -अंतराल की पड़ताल की है . विकास दर की पहली मर्तबा विधिवत (बा -कायदा )पड़ताल की गई है .
पता चला है आकार में आने वाली गिरावट बहुत तेज़ी से संपन्न होती है जब की बढ़ोतरी में वक्त लगता है .
विज्ञान प्रपत्र 'Proceedings of the National Academy of Sciences 'में प्रकाशित इस अध्ययन के लिए टीम ने न सिर्फ जीवाश्मों को खंगाला है ,उपलब्ध विज्ञान साहित्य तथा इतिहासिक दस्तावेजों की भी पड़ताल की है .
स्तन पाइयों की २८ ग्रुप्स का अध्ययन विश्लेषण किया गया था .अनेक महाद्वीपों ,ओशन बेसिंस का गत सात करोड़ बरसों का उपलब्ध विकास क्रम   खंगाला गया है . 
पूर्व के अध्ययनों में केंद्र बिंदु में माइक्रो -इवोल्यूशन रहा आया है .एक ही प्रजाति  में जिसके तहत  होने वाले परिवर्तनों की सूक्ष्म जांच भर की गई थी .   
फरवरी २,२०१२,सेक्टर २८ डी/३१९०,चंडीगढ़ .
और अब आज का नीतिपरक दोहा :
जो बड़ेन को लघु कहे ,नहीं रहीम घट जाय ,
गिरधर ,मुरलीधर कहे ,कछु दुःख मानत  नाय .
बड़े बड़ाई न करें ,बड़े न बोलें  बोल ,
रहिमन हीरा कब कहे ,लाख टका मेरा मोल .
लेकिन अफ़सोस यही है जो हाथी क्या हाथी की मींगनी (बिष्टा )तक न बन सके वह ढकी हुई मूर्तियों को भी सवा लाख बतलातें हैं .

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चूहे हाथी और हाथी चूहे, अब रोज बनने लगे हैं।