धीरज भाई मेरी कर्मभूमि भी हरियाणा रही है। उस नाते ये मेरा ही घर है। अन्यत्र भी सरकारें ऐसे आन्दोलनों को काबू करने में जन धन की क्षति को रोकने में नाकामयाब ही साबित हुई हैं अभी तक चाहें वह गूजरों का आंदोलन रहा हो या मंडल कालीन।
शुरुआत हरियाणा में मंडल से ही हुई थी ,पेड़ काट काट कर सड़कें रोकना उसी दौर की उपज है। अब तो रेल से लेकर औरत की अस्मिता तक सब कुछ आंदोलन कारियों के निशाने पर आ चुका है। सरस्वती के मंदिर भी जलाये गए हैं वाचनालयों की होली जलाई गई है। कोई उन्मादी ही ऐसा कर सकता है। और भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता भीड़ अनाम होती है।उन्मादी और शिजोफ्रेनिक होती है।
समाधान एक ही है राष्ट्रीय और निजी संपत्ति को किसी भी बिध निशाना बनाने वाले को गैर -जमानती हवालात मिले ,नुक्सानात की भरपाई बलवाइयों से करवाई जाए। राज्य विधान सभा इस आशय का प्रस्ताव पारित करे ,चुन चुन कर जिन गैर -जाटों की संपत्ति को स्वाहा किया गया है उसकी भरपाई सरकार करे ,केंद्र सरकार भी मदद करे।
कांग्रेसी और रक्तरंगी यही चाहते थी गैर -जाट खट्टर एक कमज़ोर प्रशाशक सिद्ध हों। उनके मन चीते हो जायेंगें धीरज भाई। थोड़ा गहरे उतर कर सोचिये ये आंदोलन एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा रहा है जिसे सुलगाये रखने में कांग्रेस ने बे -शुमार राशि नित्य प्रति झौंकी है ,लेफ्टीयों ने इसे हवा दी है ,अंतोनियो मायनो ने हुश हुश के इशारे किये है। आप इतनी जल्दी निराश न हों।
अभी तो और भी रातें सफर में आएंगी ,
चराग़े शब मेरे मेहबूब संभाल के रख।
जयश्रीकृष्ण !
अब जबकि हमें अपने सनातन धर्मी होने भारतीय होने आज़ाद होने की अनुभूति हुई है तमाम विघटन वादी ताकतें कट्टरपंथी मुसलमानों की जय बुलवाने लगीं हैं नेहरू को तो हिन्दू शब्द के इस्तेमाल से ही चिढ़ थी बक़ौल नेहरू यहां हिन्दुतान में मुसलमान और गैर -मुस्लिम ही रहते हैं। वे तो हिंदी को भारत की अन्यत्र भाषाओं को भी वर्नाकुलर कहते थे।
तमाम विधर्मी आज इकठ्ठा है जनेऊ में ,हैदराबाद में ,छात्र इनके ईज़ी टारगेट्स हैं। उन्हें ही ये बरगलाकर रोहित वेमुला के हश्र तक लेजाने में मुब्तिला हैं।
जो राजनीतिक श्यार दुमदबा कर भाग गए वह अब विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लायेंगे।
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2 टिप्पणियां:
जो हुआ हरियाणा में उसको कभी माफ़ नहीं किया जा सकता ... प्रशासन एक बार तो फेल हो चुका है ... अब आगे की कार्यवाही त्वरित नहीं होती तो शायद लोग माफ़ न करें सरकार को ...
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