फ़िकर सबको खा गई ,फ़िकर सबकी पीर ,
फ़िकर की फंखी करे ,उसका नाम फ़कीर।
जो संसार से ऊपर उठ जाता है। जिसका सारा मोह और एषणा नष्ट हो
जाती है जो तीनों गुणों (सत्व ,रजस और तमस )से परे चला जाता है वह -
परवाह बादशाह हो जाता है। उसे ही फ़कीर कहा जाता है।
चाह गई चिंता मिटी मनवा बे -परवाह ,
जिसको कुछ नहीं चाहिए ,वो शाहन का शाह।
अब तो जाए चढ़े सिंघासन (सिंह आसन ),मिले हैं सारंग पानी ,
राम कबीरा एक भये हैं ,कोई न सके पहचानी।
Now ,I have mounted to the throne of the Lord ,I have met the
Lord
,the sustainer of the world . The Lord and Kabir have become one
.No one can tell them apart .
भगवान को जान लेना भगवान होना ही है। जो स्वयं को और अपने हृदय
में बैठे उस परमात्मा (वासुदेव )को जान लेता है जिसे परमात्म ज्ञान हो
जाता है वह स्वयं परमात्मा हो जाता है। सब में फिर वह स्वयं (एक ही
चेतना उस परमात्मा )को देखता है जिसका हमारे हृदय वास है।
वासु का अर्थ यहां वास (आवास )है देवा का अर्थ आलोकित करने वाला है।
निर्गुण (Impersonal Brahman )और सगुण(Personal form of God
) का ऐक्य कर दिया है कबीर ने इस साखी में।
जानत तुमहि तुमहि हो जाई।
सोइ जानहि जेहि देहु जनाई।
2 टिप्पणियां:
ज्ञान की सरिता बह रही है ... जो चाहे उतने लोटे भर ले ...
राम राम जी ...
बहुत सुंदर समझने का प्रयास है
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