येन शुक्लीकृता हंसा ,शुकाश्च हरिती कृता । ,मयूरा :
चित्रता येन स तेरे ,वृत्तिम् विधास्यति । ।
जिसने हंस को दुग्ध धवल बनाया ,शुक (तोते को ) हरित पैरहन (हरे पंख
)दिया मोर के पंखों में सारा सौंदर्य बोध उड़ेल दिया वही विधाता तुम्हारी
भी व्यवस्था करेगा। दिक्कत यह है मनुष्य को भगवान पर भरोसा ही
नहीं है। वह उसके स्वरूप को ही नहीं जानता।
जानता तो वह उससे प्रेम करता। अपने खुद के सच्चिदानंद स्वरूप को
जानता।
चैतन्यम ब्रह्म अनिर्वचनीयम्।
संस्कृत साहित्य में ऐसी अनेक सूक्तियाँ हैं।(सूत्र हैं ,aphorisms ) .
संत सूरदास इसी बात को कर्मफल के रूप में कहतें हैं:
संतों (ऊधो,) कर्मन की गति न्यारी।।
सब नदियां जल भरि-भरि रहियां
चित्रता येन स तेरे ,वृत्तिम् विधास्यति । ।
जिसने हंस को दुग्ध धवल बनाया ,शुक (तोते को ) हरित पैरहन (हरे पंख
)दिया मोर के पंखों में सारा सौंदर्य बोध उड़ेल दिया वही विधाता तुम्हारी
भी व्यवस्था करेगा। दिक्कत यह है मनुष्य को भगवान पर भरोसा ही
नहीं है। वह उसके स्वरूप को ही नहीं जानता।
जानता तो वह उससे प्रेम करता। अपने खुद के सच्चिदानंद स्वरूप को
जानता।
चैतन्यम ब्रह्म अनिर्वचनीयम्।
संस्कृत साहित्य में ऐसी अनेक सूक्तियाँ हैं।(सूत्र हैं ,aphorisms ) .
संत सूरदास इसी बात को कर्मफल के रूप में कहतें हैं:
संतों (ऊधो,) कर्मन की गति न्यारी।।
सागर केहि बिध खारी।।
उज्ज्वल पंख दिये बगुला को,
कोयल केहि गुन कारी।
सुन्दर नयन मृगा को दीन्हे,
बन-बन फिरत उजारी ।।
मूरख मूरख राजे कीन्हे,
पंडित फिरत भिखारी।
सूर श्याम मिलने की आशा,
छिन-छिन बीतत भारी ।।
वास्तव में कर्मों की गति बड़ी ही गुह्य है। अनंत कोटि जन्मों के संचित कर्मों का भोगफल कब हमें भोगना पड़ जाय इसका कोई निश्चय नहीं। भले इन्हीं संचित कर्मों का एक हिस्सा लेकर जीवा इस दुनिया में आता है। इसे ही प्रारब्ध कहा जाता है। प्रारब्ध से बचकर कोई नहीं भाग सकता। भले ज्ञानोदय हो जाने पर ईश्वर प्राप्ति हो जाने पर संचित कर्म नष्ट हो जाए लेकिन प्रारब्ध तो फिर भी भुगतना पड़ता है हर जीव को। मीराबाई इसी और संकेत कर रहीं हैं :
वास्तव में कर्मों की गति बड़ी ही गुह्य है। अनंत कोटि जन्मों के संचित कर्मों का भोगफल कब हमें भोगना पड़ जाय इसका कोई निश्चय नहीं। भले इन्हीं संचित कर्मों का एक हिस्सा लेकर जीवा इस दुनिया में आता है। इसे ही प्रारब्ध कहा जाता है। प्रारब्ध से बचकर कोई नहीं भाग सकता। भले ज्ञानोदय हो जाने पर ईश्वर प्राप्ति हो जाने पर संचित कर्म नष्ट हो जाए लेकिन प्रारब्ध तो फिर भी भुगतना पड़ता है हर जीव को। मीराबाई इसी और संकेत कर रहीं हैं :
Udho Karman Ki Gati Nyari - Shobha Gurtu | Bhakti Mala | Indian Classical Vocal
https://www.youtube.com/watch?v=gwe8DH5n2F4
2 टिप्पणियां:
कर्मों की गति न्यारी साधो...जो बोया है वह तो काटना ही पड़ेगा
कर्म की गति से कौन भाग सका है ...
इस बात को कृष्ण प्रिया तो जानती ही थी ... ताहि तो इतना सहज लिख दिया ...
एक टिप्पणी भेजें