रँगी को नारंगी कहे ,देख कबिरा रोया।
चलती को गाड़ी कहे ,खरे दूध को खोया ,
रंगी को नारंगी कहे ,देख कबीरा रोया।
We say "being lost "to very essence of milk (milk product
Khoya,is obtained when milk is boiled for a long time on slow and
steady heat ,and becomes milk extract Khoya,
the semi solid remnant )extract and people say colorless to a
colored fruit .
Narangi (orange coloured citrous fruit) .
कबीर कहते हैं इस संसार की रीति बड़ी उलटी है चलती हुई चीज़ को लोग
गढ़ी हुई (गाढ़ी
रुकी हुई )
कह रहे हैं। तथा दूध का जो सत्व (मालतत्व ,खोया /मावा है )उसे कह रहे हैं
खोया हुआ (जिसे खो दिया गया हो ).
जो पहले से ही रँगी हुई है उसे कह रहे हैं ना -रंगी (अर्थात रंगी हुई नहीं है ) बिना
रंग की रंगहीन चीज़।
भावार्थ क्या है कबीर का आशय क्या है यहां ?
कबीर कहतें हैं संसार प्रतीयमान है।
It is an empirical (pragmatic )reality ,a relative reality and not an
absolute one .It is an appearance which is time dependent ,space
dependent ,that which is in a flux and is constantly undergoing a
change .The world is inside the mind .There is nothing outside of
the mind .And the mind is an illuminator (a relative illuminator
)with respect to the world but itself the mind is an illumined body
w.r.t the world .Therefore the mind exists only with the blessings
of
the consciousness .If consciousness is not there the mind vanishes
.Along with the mind the world also vanishes .
So the world is an appearance (प्रतीति ).
ऐसे आभासी संसार में संसारी लोग जो कुछ देख रहे हैं वह सब उलट पुलट है
यथार्थ से दूर है। इस प्रतीयमान (आभासी )संसार में व्यक्ति की बुद्धि भ्रमित
रहती है। इसीलिए संसारी जीव जो गढ़ गई उस गढ़ी हुई ,गाढ़ी जा चुकी चीज़
गाड़ी को चलती हुई कह रहे हैं। और रंगहीन चीज़ को रंगीन नारंगी।
लोगों के अपने सापेक्षिक ज्ञान में जिसे वह यथार्थ ज्ञान समझ रहे हैं के वस्तुओं
के
प्रति सम्बोधन भ्रम पैदा करते हैं। इसीलिए पदार्थों के वाचक शब्द भरम पैदा
करते हैं। यह वस्तुओं के वास्तविक गुणधर्म बतलाने वाले नहीं होते। पदार्थ कुछ
और है और संसारी लोग कुछ और कह रहे हैं।
माया का पर्दा इतना पड़ा है की ये लोग यथार्थ को जान ही नहीं पाते।
यस्य सत्ता न अस्ति एवं गते तद् प्रतीयते अर्थात जिसकी सत्ता नहीं है पर वह
प्रतीत हो वह माया है।
माया :मा Ma means know ,या Ya means that ."that which is not
there
is Maya .
In physics (optics ,the science of light )we call it Mirage where in
a
dear sees a pool of water in Hot desert due to the combined
phenomina of refraction and total internal reflection of light .
जयश्रीकृष्णा।
चलती को गाड़ी कहे ,खरे दूध को खोया ,
रंगी को नारंगी कहे ,देख कबीरा रोया।
We say "being lost "to very essence of milk (milk product
Khoya,is obtained when milk is boiled for a long time on slow and
steady heat ,and becomes milk extract Khoya,
the semi solid remnant )extract and people say colorless to a
colored fruit .
Narangi (orange coloured citrous fruit) .
कबीर कहते हैं इस संसार की रीति बड़ी उलटी है चलती हुई चीज़ को लोग
गढ़ी हुई (गाढ़ी
रुकी हुई )
कह रहे हैं। तथा दूध का जो सत्व (मालतत्व ,खोया /मावा है )उसे कह रहे हैं
खोया हुआ (जिसे खो दिया गया हो ).
जो पहले से ही रँगी हुई है उसे कह रहे हैं ना -रंगी (अर्थात रंगी हुई नहीं है ) बिना
रंग की रंगहीन चीज़।
भावार्थ क्या है कबीर का आशय क्या है यहां ?
कबीर कहतें हैं संसार प्रतीयमान है।
It is an empirical (pragmatic )reality ,a relative reality and not an
absolute one .It is an appearance which is time dependent ,space
dependent ,that which is in a flux and is constantly undergoing a
change .The world is inside the mind .There is nothing outside of
the mind .And the mind is an illuminator (a relative illuminator
)with respect to the world but itself the mind is an illumined body
w.r.t the world .Therefore the mind exists only with the blessings
of
the consciousness .If consciousness is not there the mind vanishes
.Along with the mind the world also vanishes .
So the world is an appearance (प्रतीति ).
ऐसे आभासी संसार में संसारी लोग जो कुछ देख रहे हैं वह सब उलट पुलट है
यथार्थ से दूर है। इस प्रतीयमान (आभासी )संसार में व्यक्ति की बुद्धि भ्रमित
रहती है। इसीलिए संसारी जीव जो गढ़ गई उस गढ़ी हुई ,गाढ़ी जा चुकी चीज़
गाड़ी को चलती हुई कह रहे हैं। और रंगहीन चीज़ को रंगीन नारंगी।
लोगों के अपने सापेक्षिक ज्ञान में जिसे वह यथार्थ ज्ञान समझ रहे हैं के वस्तुओं
के
प्रति सम्बोधन भ्रम पैदा करते हैं। इसीलिए पदार्थों के वाचक शब्द भरम पैदा
करते हैं। यह वस्तुओं के वास्तविक गुणधर्म बतलाने वाले नहीं होते। पदार्थ कुछ
और है और संसारी लोग कुछ और कह रहे हैं।
माया का पर्दा इतना पड़ा है की ये लोग यथार्थ को जान ही नहीं पाते।
यस्य सत्ता न अस्ति एवं गते तद् प्रतीयते अर्थात जिसकी सत्ता नहीं है पर वह
प्रतीत हो वह माया है।
माया :मा Ma means know ,या Ya means that ."that which is not
there
is Maya .
In physics (optics ,the science of light )we call it Mirage where in
a
dear sees a pool of water in Hot desert due to the combined
phenomina of refraction and total internal reflection of light .
जयश्रीकृष्णा।
2 टिप्पणियां:
गहरी सोच कबीर दास जी की ... और आपका भावार्थ ...
सोने पे सुहागा ... राम राम जी ...
माया का पर्दा इतना पड़ा है की ये लोग यथार्थ को जान ही नहीं पाते।
सचमुच भ्रम में ही जीवन बीत जाता है...सन्त जगाने आते हैं..आभार इस सुंदर व्याख्या के लिए...
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