शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

आखिर क्यों :आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द प्राप्त होना

रविकर  

क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह |

पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह |

सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा |
होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा |

भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा |
बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा || 

माहिरों की राय :

आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द को  प्राप्त होना 

आखिर क्यों ?

अमूमन पुरुष यौन -दक्ष नहीं होते हैं। काम -कला से पूरी तरह वाकिफ ही नहीं होते हैं। अलावा इसके मनो -सामजिक वजहें भी आड़े आती हैं औरत न दिल की कह पाती है न मर्द समझ पाता है। काम -शिखर पर पहुंचना और उसका अभिनय करना दो अलग अलग बातें हैं। औरत कई मरतबा अपने मर्द की हिफाज़त के लिए भी यह स्वांग भरती है .ताकि उसकी मर्दानगी उसका हम आहत न हो।बचाव करते करते खुद हीन  भावना से ग्रस्त हो जाती है खुद को ही कुसूरवार मान बैठती है।अपना नसीब भी।  

कुदरत के नियमों के अनुसार दोनों के शरीर परस्पर एक दूसरे  के सम्पूरक हैं एक दूजे के लिए बने भी हैं। यौन -शिखर तक दोनों को सहज रूप पहुंचना चाहिए। 

अक्सर पहल पुरुष के हाथ में ही रहती है उसका लैंगिक उत्तेजन भी स्पष्ट  सीधा सपाट होता है। काम शिखर को छूना और वापसी भी लेकिन औरतों के मामले में ऐसे कोई स्पष्ट   संकेत नहीं मिलते न ही  कोई ऐसे बायो -मार्कर्स ही हैं ,जो हैं भी वह गोपन बने रहते हैं मर्द उनसे वाकिफ ही नहीं होता। vaginal contractions  ऐसा ही एक मार्कर है। 

अराउज़ल टाइम (यौन रूप से उत्तेजित  होने दिखने की अवधि ,कामक्रीड़ा के लिए आतुरता )औरत का लंबा रहता है। यहीं पर यौन प्रोद्योगिकी ,उत्तेजन प्रदान करने की वैयक्तिक तरकीबों का अपना महत्व रहता है। 

तमाम बाहरी कारक (external factors )अपना असर रखते हैं।किसी को ईअर लोब्स (कर्ण लोलक )पर हल्का दन्त दवाब उत्तेजन प्रदान करता है। किसी को कांख पर। अन -अन्वेषित रह जाते हैं काम उत्तेजन केंद्र अक्सर लव हेंडिल्स में ही अटकके रह जाता है मर्द। 

पुराना रिश्ता है मर्द का प्राथमिक आहार के इन स्रोतों (स्तनों ,वक्ष स्थल से ) लेकिन कामोत्तेजना के एकाधिक स्थल गुह्य ही रह जाते हैं ऐसे में multiple orgasm की कौन कहे यौन शिखर तक एक बार पहुंचना भी बा -मुश्किल से किसी किसी को नसीब होता है। 

दुनिया में ऐसा कहाँ सबका नसीब है ,

कोई कोई अपने पीया के करीब है। 

दूर ही रहते हैं यौन किनारे ,

इनको न कोई मांझी पार लगाए। 

तू है तो ज़िंदगी को ज़िंदगी क़ुबूल है। 

पुरुष का ध्यान अपने यौन परितोष पर रहता है। काम खत्म पैसा हज़म। लेकिन औरत अब मन मसोस कर पहले की तरह बैठी नहीं रह सकती। बेहतर हो मर्द अपने यौन खोल से बाहर आये। यौन कच्छप न बने। कुरुक्षेत्र के मैदान में टिके रहना उसे सीखना चाहिए। यौन शिखर से जुड़ी  है प्रेम की डोर। दूसरे को प्रेम करना सीखिए। 

http://www.askmen.com/dating/love_tip/32_love_tip.html

http://ezinearticles.com/?Female-Erogenous-Zones---9-Erogenous-Zones-That-Can-Drive-Your-Partner-Wild!&id=161492

सन्दर्भ -सामिग्री :High and O/Why is a female orgasm hard to come by ?Experts fill you in /MumbaiMirror ,Nov29 ,2013 /p18-19

Expert :DR RUPIN SHAH ,CONSULTANT ANDROLOGIST ,LILAVATI AND BHATIA HOSPITAL ,MUMBAI 

(ज़ारी )

5 टिप्‍पणियां:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

इस कुरुक्षेत्र में न जाने कितने युद्ध हारे-जीते गए हैं और न जाने कितने हारे-जीते बिना रह गए हैं।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

waah!

रविकर ने कहा…

क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह |
पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह |

सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा |
होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा |

भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा |
बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा ||

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

कुरुक्षेत्र के मैदान में टिके रहना ही मर्दानगी है,,,
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नई पोस्ट-: चुनाव आया...

Arvind Mishra ने कहा…

कामसूत्र पार्ट टू लिखा जाय रविकर के साथ -एक चित्रकार की तलाश भी कर ली जाय