१९५० आदि के दशक में हर दसवां भारतीय मुस्लिम था। सेकुलरिस्म की बुनियाद तब तीन खम्बों पर टिकी थी। पहली अवधारणा थी कि बहुसंख्यक भारतधर्मी समाज की धुर परस्ती (बुनियादपरस्ती ) अल्पसंख्यक (मुस्लिम )समाज से ज्यादा खतरनाक है। (राहुल गांधी आज भी यही बोल रहे हैं ),जबकि इस दरमियान सरयू और बेतवा में काफी पानी बह चुका है। दूसरी मान्यता यह थी कि मुस्लिम अल्पसंख्यक शोषित वर्ग है तथा तीसरी यह कि मुसलमानों का उद्धार उन्हें अँधेरे से उजाले में मुस्लिम ही लाकर कर सकते हैं बहुसंख्यक वर्ग नहीं। हालांकि यह मुस्लिम अल्पसंख्यक अवधारणा भी नेहरू सोच का फलसफा था। दूसरे वर्ग भी थे जिन्हें अल्पसंख्यक कहा जा सकता था। लेकिन भारत की मज़हबी पहचान को गंगा (भारतधर्मी सनातन धर्मी समाज )जमुनी तहजीभ ही कहा जाता रहा।
आज हर सातवां भारतीय मुस्लिम है। सेकुलरिज़्म के परम्परा गत खम्भे कब के दरक चुकें हैं और ऐसा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है अकेले कोई भारत की बात नहीं हैं। अब न सुकारणों की इंडोनेशिया पंथ निरपेक्ष सेकुलर सोच बकाया है न ईरान के शाह रज़ा पहलवी की और न ही कमाल अतातुर्क के वारिस अब तुर्की में ही बकाया है।
पेट्रो डॉलर्स मुस्लिम भाई चारे का कब प्रतीक बना किसी को भी पता नहीं चला। गत चालीस बरसों में शीतयुद्ध ने बुनियाद परस्त मुस्लिम तबके को साम्यवाद के खिलाफ खड़ा किया।
धीरे धीरे शैरियत कानूनों ने दुनिया भर में अपने पंख खोल दिए। और कब इसने इस्लामिक स्टेट का रूप ले लिये सब कुछ एक सपना सा लगता है।
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,
हवा में सनसनी घोले हुए हैं।
हमारा कद सिमट कर घिस गया है ,
हमारे पैरहन झोले हुए हैं।
गज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं ,
सियासत के कई चोले हुए हैं।
अपने भारत देश की तो बात छोड़िये पड़ोसी पाकिस्तान में जहां १९४७ में मात्र १३७ मदरसे थे जो बुनियाद परस्ती की तालीम देते थे आज वहां इनकी संख्या १३,००० के पार चली गई है। दुनिया जानती है और मानती है कि पाकिस्तान दहशतगर्दों की जन्नत बना हुआ है जिसे शैतानी खुफिया तंत्र इंटरसर्विसेज़ इंटेलिजेंस का आशीर्वाद प्राप्त है। जेहादी तत्व उस पाकिस्तान की विदेश नीति का अंग बना रहा है जहां कभी योरोप में पढ़ा लिखा वर्ग बड़े वायदे किए था सेकुलरिज़्म के ,आज वहां सिर्फ ढाई तीन फीसद हिन्दू बकाया हैं। दहशद गर्दों की पौ बारह है। तूती बोलती है इंतहा पसंदों की। खुले आम धमकी देते हैं ये भारत देश को।
दोनों मुल्कों में बदलती फ़िज़ा और जनसंख्या के वर्तमान स्वरूप के आलोक में भारत के मूल चरित्र बहुलतावाद ,सर्वग्राही सर्व- समावेशी संस्कृति को बचाये रखने की मुहीम छेड़ना अब लाजमी हो गया है इसके लिए भारतधर्मी सनातनधर्मी समाज के साथ हमारे मुस्लिम भाइयों की सोच का खुलना अब बेहद ज़रूरी हो गया है जिसपे तीन चार बुनियादपरस्तों का कब्ज़ा होता साफ़ दिखाई दिया है।
उत्तरप्रदेश के आज़म खान साहब ,असम के बदरूद्दीन अजमल साहब तथा हैदराबाद के ओवेसी बंधू बेहतर हो वृहत्तर मुस्लिम समाज को समय के साथ चलने दे।
इधर ममता दीदी भी बुनियाद परस्तों के टोले में शामिल हो गईं हैं इन्हीं में एक दिग्विजय सिंह हैं जो मुंबई २६/११ हमले को आरएसएस की उपज बतलाते हैं। नीतीश -लालू -केजरबवाल सब इसी टोले के सदस्य हैं। आज देश को अंदर बाहर दोनों तरफ से खतरा है।
हम समर्थन करते हैं महिलाओं के शनि शिंगनापुर (महाराष्ट्र ),तथा सबरीमाला मंदिरों में प्रवेश का साथ ही मुस्लिम महिलाओं के हाजी अली दरगाह में प्रवेश की भी हम हिमायत करते हैं।
अल्लाह ताला की निगाह में औरत और मर्द यकसां हैं।सब का अल्लाह एक है। उस तक पहुँचने के रस्ते भले जुदा हैं।
'मुंडे मुंडे मतिर्भिन्नै '
और ईशावास्य सर्वं इदं में परस्पर कोई विरोध नहीं है।एकता में ही बहुलता (अनेकता )है।
जड़ हो या चेतन ,नर हो या मादा सबकुछ उस एक की ही अभिव्यक्ति है। उससे अलग कुछ भी नहीं है। परमात्मा का मुख सब जगह है वह पूरी कायनात कठमुल्लों को भी पोंगा पंडितों को भी देख रहा है। हमारे देखने समझने की बारी है।
बात साफ़ है सेकुलरिज़्म (पंथ निरपेक्षता )का वर्तमान स्वरूप देश के लिए आत्मघाती साबित हो रहा है। देश के बहुलता वादी स्वरूप को हिन्दू चरम पंथियों से भी उतना ही खतरा है जितना इतर दहशत गर्दों से ,इस्लामिक कट्टरपंथियों से ,अंतर धार्मिक संघर्ष बेहद पेचीला मामला है। बेशक इखलाक के मामले में वह मुस्लिम परिवार शोषित वर्ग था लेकिन पश्चिम बंगाल के मालदा और घाटी में मुस्लिम वर्ग ही धुर शोषित वर्ग रहा है और बना हुआ है।ऐसे तमाम लोगों को जो भी हवा देता है वह देश का ही नहीं अपना भी दुश्मन हैं। आतंकी किसी के सगे नहीं होते।
ईशनिंदा और शैरियत कानूनों को सुधारवादी नज़रिये से देखा जाए -ये कहने से काम नहीं चलेगा मेरी बीवी को अखबार पढ़ने से डर लगता है। ये पलायनवादी रास्ता है। हमारा निवेदन है मुस्लिम फस्टर्स (अपने को पहले मुसलमान समझने मान ने वाले लोग )मुस्लिम पर्सनल ला के दायरे को फैलाकर और मुसलमानों के लिए अब और विशेष अधिकारों की (आरक्षण आदि मांगने )की बात न करके इन्हें मुख्यधारा में लाएं। १४ वीं शती से निकालके २१ वीं में लाएं यही देश और कौम के हित में होगा। सनातनधर्मी समाज हर आलोचना सुनने मुड़ने और तब्दील होने को तैयार है।
आज हर सातवां भारतीय मुस्लिम है। सेकुलरिज़्म के परम्परा गत खम्भे कब के दरक चुकें हैं और ऐसा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है अकेले कोई भारत की बात नहीं हैं। अब न सुकारणों की इंडोनेशिया पंथ निरपेक्ष सेकुलर सोच बकाया है न ईरान के शाह रज़ा पहलवी की और न ही कमाल अतातुर्क के वारिस अब तुर्की में ही बकाया है।
पेट्रो डॉलर्स मुस्लिम भाई चारे का कब प्रतीक बना किसी को भी पता नहीं चला। गत चालीस बरसों में शीतयुद्ध ने बुनियाद परस्त मुस्लिम तबके को साम्यवाद के खिलाफ खड़ा किया।
धीरे धीरे शैरियत कानूनों ने दुनिया भर में अपने पंख खोल दिए। और कब इसने इस्लामिक स्टेट का रूप ले लिये सब कुछ एक सपना सा लगता है।
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,
हवा में सनसनी घोले हुए हैं।
हमारा कद सिमट कर घिस गया है ,
हमारे पैरहन झोले हुए हैं।
गज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं ,
सियासत के कई चोले हुए हैं।
अपने भारत देश की तो बात छोड़िये पड़ोसी पाकिस्तान में जहां १९४७ में मात्र १३७ मदरसे थे जो बुनियाद परस्ती की तालीम देते थे आज वहां इनकी संख्या १३,००० के पार चली गई है। दुनिया जानती है और मानती है कि पाकिस्तान दहशतगर्दों की जन्नत बना हुआ है जिसे शैतानी खुफिया तंत्र इंटरसर्विसेज़ इंटेलिजेंस का आशीर्वाद प्राप्त है। जेहादी तत्व उस पाकिस्तान की विदेश नीति का अंग बना रहा है जहां कभी योरोप में पढ़ा लिखा वर्ग बड़े वायदे किए था सेकुलरिज़्म के ,आज वहां सिर्फ ढाई तीन फीसद हिन्दू बकाया हैं। दहशद गर्दों की पौ बारह है। तूती बोलती है इंतहा पसंदों की। खुले आम धमकी देते हैं ये भारत देश को।
दोनों मुल्कों में बदलती फ़िज़ा और जनसंख्या के वर्तमान स्वरूप के आलोक में भारत के मूल चरित्र बहुलतावाद ,सर्वग्राही सर्व- समावेशी संस्कृति को बचाये रखने की मुहीम छेड़ना अब लाजमी हो गया है इसके लिए भारतधर्मी सनातनधर्मी समाज के साथ हमारे मुस्लिम भाइयों की सोच का खुलना अब बेहद ज़रूरी हो गया है जिसपे तीन चार बुनियादपरस्तों का कब्ज़ा होता साफ़ दिखाई दिया है।
उत्तरप्रदेश के आज़म खान साहब ,असम के बदरूद्दीन अजमल साहब तथा हैदराबाद के ओवेसी बंधू बेहतर हो वृहत्तर मुस्लिम समाज को समय के साथ चलने दे।
इधर ममता दीदी भी बुनियाद परस्तों के टोले में शामिल हो गईं हैं इन्हीं में एक दिग्विजय सिंह हैं जो मुंबई २६/११ हमले को आरएसएस की उपज बतलाते हैं। नीतीश -लालू -केजरबवाल सब इसी टोले के सदस्य हैं। आज देश को अंदर बाहर दोनों तरफ से खतरा है।
हम समर्थन करते हैं महिलाओं के शनि शिंगनापुर (महाराष्ट्र ),तथा सबरीमाला मंदिरों में प्रवेश का साथ ही मुस्लिम महिलाओं के हाजी अली दरगाह में प्रवेश की भी हम हिमायत करते हैं।
अल्लाह ताला की निगाह में औरत और मर्द यकसां हैं।सब का अल्लाह एक है। उस तक पहुँचने के रस्ते भले जुदा हैं।
'मुंडे मुंडे मतिर्भिन्नै '
और ईशावास्य सर्वं इदं में परस्पर कोई विरोध नहीं है।एकता में ही बहुलता (अनेकता )है।
जड़ हो या चेतन ,नर हो या मादा सबकुछ उस एक की ही अभिव्यक्ति है। उससे अलग कुछ भी नहीं है। परमात्मा का मुख सब जगह है वह पूरी कायनात कठमुल्लों को भी पोंगा पंडितों को भी देख रहा है। हमारे देखने समझने की बारी है।
बात साफ़ है सेकुलरिज़्म (पंथ निरपेक्षता )का वर्तमान स्वरूप देश के लिए आत्मघाती साबित हो रहा है। देश के बहुलता वादी स्वरूप को हिन्दू चरम पंथियों से भी उतना ही खतरा है जितना इतर दहशत गर्दों से ,इस्लामिक कट्टरपंथियों से ,अंतर धार्मिक संघर्ष बेहद पेचीला मामला है। बेशक इखलाक के मामले में वह मुस्लिम परिवार शोषित वर्ग था लेकिन पश्चिम बंगाल के मालदा और घाटी में मुस्लिम वर्ग ही धुर शोषित वर्ग रहा है और बना हुआ है।ऐसे तमाम लोगों को जो भी हवा देता है वह देश का ही नहीं अपना भी दुश्मन हैं। आतंकी किसी के सगे नहीं होते।
ईशनिंदा और शैरियत कानूनों को सुधारवादी नज़रिये से देखा जाए -ये कहने से काम नहीं चलेगा मेरी बीवी को अखबार पढ़ने से डर लगता है। ये पलायनवादी रास्ता है। हमारा निवेदन है मुस्लिम फस्टर्स (अपने को पहले मुसलमान समझने मान ने वाले लोग )मुस्लिम पर्सनल ला के दायरे को फैलाकर और मुसलमानों के लिए अब और विशेष अधिकारों की (आरक्षण आदि मांगने )की बात न करके इन्हें मुख्यधारा में लाएं। १४ वीं शती से निकालके २१ वीं में लाएं यही देश और कौम के हित में होगा। सनातनधर्मी समाज हर आलोचना सुनने मुड़ने और तब्दील होने को तैयार है।
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