सोमवार, 11 जनवरी 2016

इखलाख के खिलाफ चंद अफ़्वाही लामबंद होकर खूनी हिंसा करें और पूरा देश असहिष्णु हो जाए ,मालदा में सरे आम ढाई लाख की भीड़ खुला खेल फरुख्खाबादी खेले ,पुलिस थाने को आग लगाए ,पुलिस जानबचाकर भागे और पूरा मामला बस एक छोटी सी घटना कहलाए इसके लिए आपको मायनो और ममता के चश्मे का नंबर जानलेना ज़रूरी नहीं है ये इनकी फितरत है।

जमानती मायनो कांग्रेस विघटन की राजनीति खेले और सेकुलर होने का दम्भ भरे ,बीजेपी तिनका तिनका जोड़े और सांप्रदायिक कहलाए।इखलाख के खिलाफ चंद अफ़्वाही लामबंद होकर खूनी हिंसा करें और पूरा देश असहिष्णु हो जाए ,मालदा में सरे आम ढाई लाख की भीड़ खुला खेल फरुख्खाबादी खेले ,पुलिस थाने को आग लगाए ,पुलिस जानबचाकर भागे और पूरा मामला बस एक छोटी सी घटना कहलाए इसके लिए आपको मायनो और ममता के चश्मे का नंबर जानलेना ज़रूरी नहीं है ये इनकी फितरत है। 

जमानती मायनो कांग्रेस विघटन की राजनीति खेले और सेकुलर होने का दम्भ भरे ,बीजेपी तिनका तिनका जोड़े और सांप्रदायिक कहलाए।इखलाख के खिलाफ चंद अफ़्वाही लामबंद होकर खूनी हिंसा करें और पूरा देश असहिष्णु हो जाए ,मालदा में सरे आम ढाई लाख की भीड़ खुला खेल फरुख्खाबादी खेले ,पुलिस थाने को आग लगाए ,पुलिस जानबचाकर भागे और पूरा मामला बस एक छोटी सी घटना कहलाए इसके लिए आपको मायनो और ममता के चश्मे का नंबर जानलेना ज़रूरी नहीं है ये इनकी फितरत है। 

वो काना जो अपने नाम को भी धन्य नहीं करता न करुणा है न निधि -सरे आम कहता है राम तो थे ही नहीं। और हिन्दू समाज प्रतिक्रिया न करे तो सब ठीक और इधर कोई इस्लाम के पैगंबर पर ऊँगली उठादे -सिर्फ इशारा करे तो ऊँगली काट दी जाए। क्या अजब राजनीतिक चुतियापा है। 


एक कलाखोर हिन्दू देवी देवताओं की मैथुनी तस्वीर बनाए तो सब ठीक और... अब क्या लिखें इसके आगे।और अब क्या लिखें आगे हमें खुद शर्म आती है कैसे कैसे नमूने हिन्दू कहलाते।  

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