अफ़्रीकी अमरीकी अपना पेट ऐसा ही सस्ते में उपलब्ध खाद्य ग्रहण करके भर लेते हैं। सस्ता रखा गया है वहां जंक फ़ूड अदबदाकर खाद्य निगमों द्वारा। सोडा रिफिल वहां फ्री है यहां भी ये पैकेज सिस्टम जड़ जमा रहा है। नतीजा है चाइल्ड ओबेसिटी के अलावा किशोर किशोरियों में युवावस्था के देहलीज पर डायबिटीज़ और कार्डिएक प्रॉब्लम्स की दस्तक। मोटापे से ग्रस्त बच्चे स्कूल में भी कोई अच्छा मुक़ाम हासिल नहीं कर पाते हैं। एक हीनभावना घर बना लेती हैं इनमें . दीर्घावधि में प्रोडक्टिव रोज़गार में भी ये नहीं घुसपाते।
विविधताओं ,विरोधों से भरा है भारत देश। एक तरफ यहां कोई एक लाख अठ्ठानवें हज़ार (लगभग दो लाख )करोड़पति
हैं (२०१५ के आंकड़ें हैं ये )
तो दूसरे छोर पर परम दारिद्र्य भी यहां पैठा हुआ है। किसी भी महानगर से रेलयात्रा आरम्भ कीजिये परम गरीबी
आपको शर्मिंदा करेगी। ताज़महल होटल (मुंबई )के ठीक सामने फुटपाथ पर आपको पतिपत्नी एक ही चादर में रातभर
लिपटे दिख जाएंगे साथ ही स्वान भी वहीँ सुसुप्ति में मिलेगा ,बगल से मल से सना हुआ बच्चा भी पड़ा होगा।
सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे भी भारत में हैं और मुटियाते बालक भी यहीं हैं। ५ -१९ साला बालकों और किशोर -गण के
मोटापे की चपेट में आने की दर भारत में जहां २२ फीसद है वहीँ अमरीका के लिए यही दर इसी आयुवर्ग के लिए (१७. ५
-२०. ५ )दर्ज़ हुई है जहां मोटापा एक राष्ट्रीय समस्या का रुख लेता जा रहा है। इफरात का खाना यहां मयस्सर है। लार्ज
पोरशंस प्लेट साइज़ वाला देश है यह . जितना खाओ उससे ज्यादा वेस्ट -बिन के हवाले करो।
अपने भारत देश में भी जहां -जहां अन्न और अन्य खाने पीने की चीज़ें इफरात से हैं वहां माँ बाप खिला खिला कर बच्चे
के पेट का वॉल्यूम बढाए जा रहें हैं।
ये एक खतरनाक किस्म का लाड़ लड़ाना है। ये प्यार नहीं दुश्मनी है बालक के प्रति। सस्ता मनोरंजन है यह हेल्दी
मनोरंजन बच्चे को मनोरंजन के बेहतर साधन मुहैया करवाना है। मुंबई के पॉश इलाके नोफ्रा (नेवल रेजिडेंशियल एरिया
)के अपने प्रवास के दौरान मैं ने संध्या में अक्सर बच्चों को फास्ट फ़ूड और सोडा (कोक-पेप्सी एरेटिड ड्रिंक्स )गटकते
देखा है।
अफ़्रीकी अमरीकी अपना पेट ऐसा ही सस्ते में उपलब्ध खाद्य ग्रहण करके भर लेते हैं। सस्ता रखा गया है वहां जंक फ़ूड
अदबदाकर खाद्य निगमों द्वारा। सोडा रिफिल वहां फ्री है यहां भी ये पैकेज सिस्टम जड़ जमा रहा है। नतीजा है चाइल्ड
ओबेसिटी के अलावा किशोर किशोरियों में युवावस्था के देहलीज पर डायबिटीज़ और कार्डिएक प्रॉब्लम्स की दस्तक।
मोटापे से ग्रस्त बच्चे स्कूल में भी कोई अच्छा मुक़ाम हासिल नहीं कर पाते हैं। एक हीनभावना घर बना लेती हैं इनमें .
दीर्घावधि में प्रोडक्टिव रोज़गार में भी ये नहीं घुसपाते।
कुछ स्कूलों में खेलकूद पे ज़ोर देने के अलावा केन्टीन पर भी निगरानी रखी जाती है . ग्रीज़ी जंक फ़ूड मोटापे का घर है
रोगों की मांद है।
ये भी देखिये मिड दे मील्स में कहीं आप यही सब तो नहीं परोस रहे ?सहज सुलभ चटकारे -दार ?रंगीन पैकेज वाला
बासा भोजन ?
हैं (२०१५ के आंकड़ें हैं ये )
तो दूसरे छोर पर परम दारिद्र्य भी यहां पैठा हुआ है। किसी भी महानगर से रेलयात्रा आरम्भ कीजिये परम गरीबी
आपको शर्मिंदा करेगी। ताज़महल होटल (मुंबई )के ठीक सामने फुटपाथ पर आपको पतिपत्नी एक ही चादर में रातभर
लिपटे दिख जाएंगे साथ ही स्वान भी वहीँ सुसुप्ति में मिलेगा ,बगल से मल से सना हुआ बच्चा भी पड़ा होगा।
सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे भी भारत में हैं और मुटियाते बालक भी यहीं हैं। ५ -१९ साला बालकों और किशोर -गण के
मोटापे की चपेट में आने की दर भारत में जहां २२ फीसद है वहीँ अमरीका के लिए यही दर इसी आयुवर्ग के लिए (१७. ५
-२०. ५ )दर्ज़ हुई है जहां मोटापा एक राष्ट्रीय समस्या का रुख लेता जा रहा है। इफरात का खाना यहां मयस्सर है। लार्ज
पोरशंस प्लेट साइज़ वाला देश है यह . जितना खाओ उससे ज्यादा वेस्ट -बिन के हवाले करो।
अपने भारत देश में भी जहां -जहां अन्न और अन्य खाने पीने की चीज़ें इफरात से हैं वहां माँ बाप खिला खिला कर बच्चे
के पेट का वॉल्यूम बढाए जा रहें हैं।
ये एक खतरनाक किस्म का लाड़ लड़ाना है। ये प्यार नहीं दुश्मनी है बालक के प्रति। सस्ता मनोरंजन है यह हेल्दी
मनोरंजन बच्चे को मनोरंजन के बेहतर साधन मुहैया करवाना है। मुंबई के पॉश इलाके नोफ्रा (नेवल रेजिडेंशियल एरिया
)के अपने प्रवास के दौरान मैं ने संध्या में अक्सर बच्चों को फास्ट फ़ूड और सोडा (कोक-पेप्सी एरेटिड ड्रिंक्स )गटकते
देखा है।
अफ़्रीकी अमरीकी अपना पेट ऐसा ही सस्ते में उपलब्ध खाद्य ग्रहण करके भर लेते हैं। सस्ता रखा गया है वहां जंक फ़ूड
अदबदाकर खाद्य निगमों द्वारा। सोडा रिफिल वहां फ्री है यहां भी ये पैकेज सिस्टम जड़ जमा रहा है। नतीजा है चाइल्ड
ओबेसिटी के अलावा किशोर किशोरियों में युवावस्था के देहलीज पर डायबिटीज़ और कार्डिएक प्रॉब्लम्स की दस्तक।
मोटापे से ग्रस्त बच्चे स्कूल में भी कोई अच्छा मुक़ाम हासिल नहीं कर पाते हैं। एक हीनभावना घर बना लेती हैं इनमें .
दीर्घावधि में प्रोडक्टिव रोज़गार में भी ये नहीं घुसपाते।
कुछ स्कूलों में खेलकूद पे ज़ोर देने के अलावा केन्टीन पर भी निगरानी रखी जाती है . ग्रीज़ी जंक फ़ूड मोटापे का घर है
रोगों की मांद है।
ये भी देखिये मिड दे मील्स में कहीं आप यही सब तो नहीं परोस रहे ?सहज सुलभ चटकारे -दार ?रंगीन पैकेज वाला
बासा भोजन ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें