वर्णाश्रम धर्म के अनुसार हर कोई कर्म करे दूसरों के धर्म की नकल न करे
,भले अपना धर्म अपूर्ण अप्रायप्त हो अपने धर्म में ही मरना भला यही
श्रेयस का मार्ग है कल्याण का रास्ता है। दूसरे का मार्ग भले प्रेयस
(प्रियलगने वाला सुख देने वाला दिखे )व्यक्ति के लिए वरेण्य नहीं है।
एक प्रतिकिया ब्लॉग पोस्ट :
,भले अपना धर्म अपूर्ण अप्रायप्त हो अपने धर्म में ही मरना भला यही
श्रेयस का मार्ग है कल्याण का रास्ता है। दूसरे का मार्ग भले प्रेयस
(प्रियलगने वाला सुख देने वाला दिखे )व्यक्ति के लिए वरेण्य नहीं है।
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http://www.parisamvad.com/2015/09/blog-post_5.html
राष्ट्र और समाज की दिशा तय करते हैं कर्मशील नागरिक
कर्म के समर्थक कृष्ण सही अर्थों में जीवन गुरु है। क्योंकि हमारे कर्म ही जीवन की देश और दिशा तय करते हैं । कर्म की प्रधानता उनके संदेशों में सबसे ऊपर है । मुझे उनका यह सन्देश जीवन सहजता से जिए जाने वाला भाव लगता है । जो ना केवल हमारी बल्कि हमसे जुड़े अन्य लोगों की ज़िन्दगी पर भी सदैव सकारात्मक असर ही डालता है । देश दुनिया का भी इस सोच में भला ही है । आज जबकि हिंसा और असहिष्णुता हर ओर दिखती है कर्म का सिद्धांत संभवतः हर समस्या का हल है । इन्हीं आम जीवन से जुड़े विचारों की वजह कृष्ण ईश्वरीय रूप में भी आम इंसानों से जुड़े से दीखते हैं । मनुष्यों ही नहीं संसार के समस्त प्राणियों के लिए उनका एकात्मभाव देखते ही बनता है। सच भी है कि आज के दौर में भी नागरिक ही किसी देश की नींव सुदृढ़ करते हैं । वहां बसने वाले लोगों की वैचारिक पृष्ठभूमि और व्यवहार यह तय करते हैं कि उस देश का भविष्य कैसा होगा ? मानवीय व्यवहार और संस्कार की शालीनता बताती है कि वहां जनकल्याण को लेकर कैसे भाव हैं । अधिकतर समस्याओं का हल देश के नागरिकों के विचार और व्यवहार पर ही निर्भर है । ऐसे में कृष्ण कर्मशील होने का सन्देश सृजन की सही राह सुझाता है । संकल्प की शक्ति देता है । कर्मठता का भाव पोषित करता है । यही शक्ति हर नागरिक के लिए अधिकारों सही समझ और कर्तव्य निर्वहन के दायित्व की सोच की पृष्ठभूमि बनती है ।
कृष्ण की दूरदर्शी सोच समस्या नहीं बल्कि समाधान ढूँढने की बात करती है । जो कि राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याओं के सन्दर्भ में भी लागू होती है । तभी तो भाग्य की बजाय कर्म करने पर विश्वास करने सीख देने वाला मुरली मनोहर का दर्शन आज के दौर में सबसे अधिक प्रासंगिकता रखता है । कर्ममय जीवन के समर्थक कृष्ण जीवन को एक संघर्षों से भरा मार्ग ही समझते हैं । हम मानवीय मनोविज्ञान के आधार पर समझने की कोशिश करें तो पाते हैं कि अकर्मण्यता जीवन को दिशाहीन करने वाला बड़ा कारक है । यही बाते बताती हैं कि कृ ष्ण का जीवन हर तरह से एक आम इंसान का जीवन लगता है। तभी तो किसी आम मनुष्य के समान भी वे दुर्जनों के लिए कठोर रहे तो सज्जनों के लिए कोमल ह्दय। उनका यह व्यवहार भी तो प्रकृति से प्रेरित ही लगता है और कर्म की सार्थकता लिए है ।
इंसान के विचार और व्यवहार स्वयं उनके ही नहीं बल्कि राष्ट्र और समाज की भी दिशा तय करते हैं । कृष्ण के सन्देश इन दोनों पक्षों के परिष्करण पर बल देते हैं । एक ऐसी जीवनशैली सुझाते हैं जो सार्थकता और संतुलन लिए हो । समस्याओं से जूझने की ललक लिए हो । गीता में वर्णित उनके सन्देश जीवन रण में अटल विश्वास के साथ खड़े रहने की सीख देते हैं । मानवीय स्वभाव की विकृति और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनजागरण करने वाले योगेशवर कृष्ण सही अर्थों में अत्याचार और अहंकार के विरोधी हैं । ये दोनों ही बातें समाज में असमानता और विद्वेष फैलाने वाली हैं । यही वजह है कि उन्हें बंधी-बधाई धारणाओं और परंपराओं की जड़ता को तोड़ने वाला माना गया है ।
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