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ये पूर्वाग्रह किसी की चमड़ी के रंग के प्रति भी हो सकता है मेधा के भी। किसी के धर्म और राष्ट्रीयता से भी चिढ़ हो सकती है कुछ लोगों को रूप लावण्य से भी ।
पूर्वाग्रह ग्रस्त व्यक्ति जीवन में कभी भी सुख नहीं प्राप्त कर सकता।संतों के भी संत परमहंस हैं इनके पास -
न धोती है न पोथी न शिखा न सूत्र।सूत्र कहते हैं जनेऊ को। यानी जीवन का कोई ऐसा साधन नहीं है जिसमें गांठ पड़ सके।
इनके जीवन से देहभाव ही मिट गया है इसलिए देह को ये वस्त्र रूप देखते हैं। आत्मा का.वस्त्र है ये देह। अब एक वस्त्र के ऊपर एक और वस्त्र क्या पहनना। इसलिए ये दिगंबर रहतें हैं सनतकुमारों की तरह. इसीलिए इन्हें परमहंस कहा गया है। इनका देह भाव देहबोध ही मिट गया है। इनके पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिसमें गांठ पड़ सके।
विशेष :पोथी को कपड़ा में बाांधते हैं तो गांठ लगती है। धोती पहनते हैं तो गांठ (फैंट )लगती है। शिखा (चोटी सिर पर बालों की जो अब सिर्फ कृष्णभावना भावित लोगों के सिर पर ही रह गई है ).में गांठ बांधते हैं। कृष्ण द्वैपायन व्यास के पुत्र शुकदेव सर्वथा उन उपादानों से मुक्त हैं जिनमें गांठ पड़ सकती है इसलिए भक्ति रस संसिक्त है.कृष्णभावना भावित हैं।
अपवाद :केवल विवाह के समय ही वह गांठ अच्छी लगती है जिससे वरवधु बांधे जाते हैं सूत्रबद्ध दिखते हैं।
1 टिप्पणी:
बिलकुल सच कहा है. जहाँ गाँठ पड जाए वहां प्रेम कहाँ रह सकता है...बहुत सुन्दर और सार्थक आलेख...
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