मंगलवार, 30 जून 2009
सम्लेंगिक व्यवहार अजूबा है क्या ?
सोड्डोतोमी(लोंडेबाज़ी) क्या भारतीय समाज में सचमुच एक अजूबा एक नै सोच है या फ़िर हम सब इससे वाकिफ रहें हैं किसी न किसी विध ?बचपन में एक दोस्त नवाब साहिब के किस्से सुनाया करता था .एक किस्सा कुछ यूं :एक नवाब साहिब को लोंडे बाज़ी का शौक था .हर रोज़ एक नया लोंडा चाहिए था नवाब साहिब को .एक दिन शहर के सारे लोंडे ख़तम ,हार कर कारिंदे ने लोंदियाँ परोश दी ,नवाब साहिब एनल इन्तेर्कौर्से करते वक्त कोक को पकड़े रहते लोंडे को मॉस तर बेत करते ,अब लोंडिया का तो कोक था ही नहीं सो गुस्से में बोले "अस्साला पराठा मंगाया था ,पुरी ले आया "चुटकला फर्जी हो सकता है लेकिन इसका लुत्फ़ बचपन में कितनो ने ही उठाया होगा .मेने जब ब्लॉग पर ये विषय उठाया है तो खतरा मोल लिया है ,ये विषय या इसकी चर्चा सारे आम करना वर्जित रहा है .फ़िर भी क्या लोंडे बाज़ी हमारे समाज का क्या सचमुच सच नहीं है ?पेदोफिलिआक क्या हमारे समाज से बहार के लोग हैं ?जबकि अवयस्क सेक्स सम्बन्ध अपराध हैं ,फ़िर भी समाज में जबरी लेंगिक शोषण जारी है ,सन्दर्भ वयस्क सम्लेंगिक व्यवहार है ,पुरूष वैश्या हैं .पेज थ्री ,लाइफ इन ऐ मेट्रो क्या महज़ काल्पनिक हैं या हमारे समय की सच्ची तस्वीर हैं ?मुझे तो समाज का ही परावर्तन ,अक्ष लगता है ,आप बताये ?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें