बुधवार, 24 सितंबर 2008

davaaon ke prati hamara ravaiyaa

जनता जनार्दन और चिकित्सा तंत्र दोनों ही एंटी बायोटिक दवाओं के प्रति जो रवैय्या बनाये रहे हैं उसी का ये नतीजा है कि आज तपेदिक (टी.बी), bacterial निमोनिया बेकाबू हो चले हैं। इन बीमारियों की दवा ही इनकी दवा रोधी किस्में (Drug resistant strains) पैदा कर रही हैं (Breeder Reactor) प्रजनक एटमी भट्टी की तरह। गाहे बगाहे इन दवाओं को तजवीज़ किए जाना नुस्खे पे नुस्खे लिखे जाना बिना सोचे विचारे इन हालात के लिए जिम्मेवार हैं। हम लोग ख़ुद भी अपना इलाज अपने से ही शुरू कर देते हैं और इलाज अक्सर बीच में ही छोड़ देते हैं, नतीजतन कुछ जीवाणु (Bacteria) दवाओं की मार से बच कर अपना रूप बदल कर यानि (Mutate) हो कर अपनी नई संतानें नया प्रतिरूप रचते हैं, यहीं होती हैं (Drug Resistant Strains)। तपेदिक एवं निमोनिया के साथ यही हुआ है। सन २००२ में (Anti biotic resistant- Staphylococcus) ने अकेले अमेरिका में HIV-AIDS का ग्रास बने मरीजों के ठीक दुगने मरीज इस दवा रोधी जीवाणु का ग्रास बने। शोध पर खर्च १ रुपये में से सत्तर पैसे यदि HIV-AIDS पर खर्च होते हैं तो एक पैसा Anti-Biotic दवाओं की शोध पर खर्च होता है। १९३० में प्रति जेइविकी पदार्थों की खोज हुई 1976 तक आते आते जहाँ एक दर्जन से ज़्यादा Anti-Biotics classes खोजे गए वहीँ 1976 se अब तक बमुश्किल इनकी दो और classes ही खोजी जा सकीं। हर नई peedhi की Anti-Biotic दवाएं पहले से ज़्यादा महंगी तथा मात्रात्मक रूप से ज़्यादा देनी पड़ती हैं बीमारी की दवा रोधी किस्मों से पिंड chudhane के लिए इन दवाओं के विनियमन की सख्त ज़रूरत है शोध को बढावा देने की भी तथा नई पीड़ी की दवाओं की निगरानी की भी। नीम हकीमों के हत्थे चढ़ कर ये कैसा भी गुल खिला सकती हैं। तपेदिक के परंपरागत इलाज पर तीन चार दवाओं का मिश्र ६ से ९ माह में बीमारी से पूरी तरह छुटकारा दिला सकता है बशर्ते लग कर टिक कर पूरी धार्मिक निष्ठां के साथ इन दवाओं का सेवन किया जाए अच्छी खुराक के संग हवादार कमरे में रहा जाए। दवाओं पर खर्च बमुश्किल ५०० रुपये आता है. इलाज बीच में छोड़ने पर दवा रोधी तपेदिक पर खर्च आएगा १ से १.५ लाख रूपया, समय लगेगा १ से २ साल, नई पीड़ी की दवाओं के साथ तब जाकर Drug resistant Tuberculosis से निजात मिलेगी। जीवाणु जन्य निमोनिया के मामले में मुश्किलें और भी बढेंगी जहाँ कभी १ तो कभी दोनों फेफड़े बीमारी की चपेट में होते हैं.

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