मीरजाफर और जयचंद तब भी थे अब भी हैं राष्ट्रविरोधी, राष्ट्रद्रोही और राष्ट्रप्रेमी कल भी थे आज भी हैं। अफ़सोस यही है हम अपने अनुभवों से कुछ सीखते नहीं हैं। अपने एहसासात तक की अनदेखी करते हैं। हवा में फुसफुसाहट है: केन्द्र सरकार उड़ीसा और कर्णाटक को अपना घर ठीक करने की चेतावनी के संग संवेधानिक अनुच्छेद ३५५ के तहत कारवाही करने का भी मन बनाये है। कारवाही करने का हौसला इस सरकार में होता तो फ़िर रोना ही क्या था। यहाँ तो आलम यह है: हाथ न मुट्ठी फरफरा उट्ठी। थेगली नुमा सरकार किस बूते पर ऐसा करेगी, ऐसा करने के बाद धरा ३५६ के तहत दोनों राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की संविधानिक ताकत और कूवत (तीन चौथाई बहुमत) क्या उसके पास है। जग हँसाई करवानी है तो और बात है। विनाश काले विपरीत बुद्धि। समस्या की जड़ का पता नहीं है, शाखों का इलाज करने चले हैं चौबेजी छबेजी होने की चाहत में दूबेजी हो कर लौटेंगे। वजह साफ़ है : दबाव तले तो सरकारें काम करती हैं वह पहुँचती कहीं नहीं हैं, एक वृत्त में घूमती रहती हैं। शेर मौजूं है : कुछ लोग इस तरह /जिंदगानी के सफर में हैं /दिन रात चल रहे हैं/ मगर घर के घर में हैं।
सोमवार, 22 सितंबर 2008
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