अपूरवानंद किसी व्यक्ति का स्तंभकार का नाम नही है एक मानसिकता का नाम है सच यह है की अब न कोई सांप्रदायिक है और न सेकुलर तीन तरह के लोग हैं राष्ट्रद्रोही, राष्ट्रविरोधी, और राष्ट्रप्रेमी। राष्ट्रविरोधी लोगों का नार्को टेस्ट यदि कराया जाए आनुवंशिक पड़ताल करायी जाए तो अपूर्वाविशादानान्दों की शिनाख्त आप से आप मुखरित होगी। जो तात्कालिकता को दरकिनार कर निष्कर्ष पहले निकाल लेते हैं और सामग्री बाद में जुटाते हैं राष्ट्रीय हितों से ऐसे लोगों का, अपूर्वनान्दों का कोई सरोकार नही होता।
क्या यह पूर्व संसद वेदांती के बारे में दुश प्रचारित तमाम बातें उत्तर प्रदेश के पुलिस कमिश्नर के सामने कह सकते हैं। जो माया बहिन अपने सांसदों को अपने आवास पर बुला कर उन्हें पुलिस के हवाले कर सकती हैं वेह राम विलास वेदांती को बर्तारफ क्यों करेंगी।
आजमगढ़ में आदित्य नाथ की तकिया मोहेल्ले में जो हत्या हुई क्या तमाम अपूर्वानंद मिल कर भी सिद्ध करेंगे की वेह बजरंग दल की करनी थी। प्रिंट मीडिया में बकझक करने से क्या हासिल है ? इन्हे जो मकान मिला हुआ है क्या यह उसे शबाना आज़मी को देंगे जिन्हें भारत में रहने को मकान नही मिलता। जावेद अख्तर लादेन मुखी राम विलास पासवान, मुलायम और लालू के बारे में दो टूक कभी कुछ कहेंगे ? पुछा जा सकता है की भारत विभाजन के वक्त जो मुस्लमान यहाँ रह गए थे वेह क्या सारे भारत परस्त हैं और जो सरहद के उस पार चले गए वोह पाक परस्त ? नेहरू के समय में भी और उस से पहले भी हिन्दुस्तान की सरज़मीं में जो माद्दा था, इंसानियत का जो जज्बा था, कौमी एकता थी वेह आज भी है लेकिन ऐसे तमाम लोग जिन्हें राष्ट्र से लगाव है विशादानान्दों की आँख में खटकते हैं। साढे तीन लाख हिंदू घाटी से बेदखल किए गए इनके बारे में यह कुछ नही कहते। जो मुसलमान भूखा है नंगा है अनपढ़ है उनके साथ ये कुछ भी साझ नही करते। सत्ता की चौकसी में सिर्फ़ विवध माध्यमों से शाब्दिक जुगाली और विषवमन करते हैं। जिस थाली में खाया उसे ही छलनी बना डाला अब और क्या चाहते हैं ये लोग ? "दहशत का भूगोल" विशादानान्दों के जेहन में है। प्रिंट मीडिया में जो कुछ लिखें वह इनका प्रजातांत्रिक अधिकार है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है बस सेकुलरवाद है.
क्या यह पूर्व संसद वेदांती के बारे में दुश प्रचारित तमाम बातें उत्तर प्रदेश के पुलिस कमिश्नर के सामने कह सकते हैं। जो माया बहिन अपने सांसदों को अपने आवास पर बुला कर उन्हें पुलिस के हवाले कर सकती हैं वेह राम विलास वेदांती को बर्तारफ क्यों करेंगी।
आजमगढ़ में आदित्य नाथ की तकिया मोहेल्ले में जो हत्या हुई क्या तमाम अपूर्वानंद मिल कर भी सिद्ध करेंगे की वेह बजरंग दल की करनी थी। प्रिंट मीडिया में बकझक करने से क्या हासिल है ? इन्हे जो मकान मिला हुआ है क्या यह उसे शबाना आज़मी को देंगे जिन्हें भारत में रहने को मकान नही मिलता। जावेद अख्तर लादेन मुखी राम विलास पासवान, मुलायम और लालू के बारे में दो टूक कभी कुछ कहेंगे ? पुछा जा सकता है की भारत विभाजन के वक्त जो मुस्लमान यहाँ रह गए थे वेह क्या सारे भारत परस्त हैं और जो सरहद के उस पार चले गए वोह पाक परस्त ? नेहरू के समय में भी और उस से पहले भी हिन्दुस्तान की सरज़मीं में जो माद्दा था, इंसानियत का जो जज्बा था, कौमी एकता थी वेह आज भी है लेकिन ऐसे तमाम लोग जिन्हें राष्ट्र से लगाव है विशादानान्दों की आँख में खटकते हैं। साढे तीन लाख हिंदू घाटी से बेदखल किए गए इनके बारे में यह कुछ नही कहते। जो मुसलमान भूखा है नंगा है अनपढ़ है उनके साथ ये कुछ भी साझ नही करते। सत्ता की चौकसी में सिर्फ़ विवध माध्यमों से शाब्दिक जुगाली और विषवमन करते हैं। जिस थाली में खाया उसे ही छलनी बना डाला अब और क्या चाहते हैं ये लोग ? "दहशत का भूगोल" विशादानान्दों के जेहन में है। प्रिंट मीडिया में जो कुछ लिखें वह इनका प्रजातांत्रिक अधिकार है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है बस सेकुलरवाद है.
2 टिप्पणियां:
somtime i find ur absence unbearable. u motivated me a lot 4 writing. u and anuj g are the persons who made me vayangkar
good thoughts with mix of urdu and hindi.
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