नाम इनका कुछ भी हो सकता है, काम सबका एक ही है समाज के निचले पायदान से यह इस्त्रैन्धरोहर इस्त्रित्व धरोहर चुका भुक्ता कर एक झटके से ऊपरले पायदान पर आ पोहुन्चती हैं। यूँ ये डिग्री शुदा होती हैं लेकिन पढ़ा लिखा गुना (गुनी) भी हो यह बिल्कुल भी ज़रूरी नही है इसलिए कहा गया है की पढ़े से गुना ज़्यादा अच्छा होता है। प् पद पर बैठते ही ये अपना दर्जा और ओहदा एक डिग्री बढ़ा कर पति पे गालिब हो जाती हैं, पति खानदान तो फिर किस खेत की मूली है, इनके जीवन से यदि पति नाम की संज्ञा को निकाल दिया जाए तो शेशांक शून्य आता है पुत्र प्राप्ति पर ये सफेदे की पेड़ की ऊंचाइयां छूने लगती हैं, पारिवारिक धरोहर की साड़ी आब आबरू और उर्वरा शक्ति और रचनाशीलता को चूस कर ये गन्ने की पोई सा फेंक देती हैं। जिस देशी को चलकर ये शिखर पर पोहोंचती हैं उसके सारे पायदान एक एक कर के तोड़ देती हैं येही इनका संत्रास, हीन भावना और असुरक्षा बोध है जो बरस डर बरस कायम रहता है। "तुम यह क्यों सूचती हो, तुम्हारा पुत्र यानी हमारा पौत्र हमारी ही फुसफुसाहट से जग गया है, यह क्यों नही सोचती तुम्हारे हाथों में सुपूर्द तुहारे ही पुत्र को गहरी नींद क्यों नही आती ? बच्चा लोरी पसंद करता है, तुम्हारी कर्कश वाणी नही और लोरी के लिए एक मौखिक परम्परा चाहिए, मिठास चाहिए जो तुम्हारे पास नही है। स्वेगत कथन सा कोई बुजुर्ग बुदबुदाए है घर बाहर"।
मैं अब खीजता नहीं हूँ, मैं अब रीझता नहीं हूँ ,
तथस्थ रहता हूँ।
मेरे पास ब्लॉग है, तुम निह्हथि हो।
यूँ तुम्हारे पास पति है,
जिसकी आंच तुम कबकी बुझा चुकी हो,
अब वह अब एक मरा हुआ चूजा है, तुम्हारी कांख में।
अक्सर तुम्हारी जांघ की दराज में पड़ा श्रान्ति दूर करता।
तथस्थ रहता हूँ।
मेरे पास ब्लॉग है, तुम निह्हथि हो।
यूँ तुम्हारे पास पति है,
जिसकी आंच तुम कबकी बुझा चुकी हो,
अब वह अब एक मरा हुआ चूजा है, तुम्हारी कांख में।
अक्सर तुम्हारी जांघ की दराज में पड़ा श्रान्ति दूर करता।
हमारा मानना है : जब कुपात्र को अधिकार मिल जाता है तब ऐसा ही होता है, पुत्रवधुएँ ये भूल जातो हैं उनका पति उनके ससुर का ही विस्तार भाव है, जो निश्चिन्तता दादा की छाँव में होती है उस से यह अनिभिज्ञ हैं। कृतघ्न जो ठहरीं, किराए के मकान में रहती हैं और मकान मालिक बनने का भाव पाले अकडी रहती हैं। २५ वाट की रौशनी में गुज़र करने वाली ये नागारियाँ जबसे २०० वाट के उजाले में आयीं हैं इनका दिमाग भन्नाया हुआ है आँखें चोंध्ग्रस्त हैं। म्योपिया ग्रस्त हैं। इस किस्म की तमाम पुत्रवधुएँ व्यक्ति नही विचार हैं, मानसिकता हैं, पुत्रवधुओं की एक परिवार रोधी नई strain hain.
5 टिप्पणियां:
वाह! बहुत सच लिखा है. आपका स्वागत है.
एक अनुरोध -- कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन का झंझट हटा दें. इससे आप जितना सोचते हैं उतना फायदा नहीं होता है, बल्कि समर्पित पाठकों/टिप्पणीकारों को अनावश्यक परेशानी होती है. हिन्दी के वरिष्ठ चिट्ठाकारों में कोई भी वर्ड वेरिफिकेशन का प्रयोग नहीं करता है, जो इस बात का सूचक है कि यह एक जरूरी बात नहीं है.
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बस हो गया काम !!
आपका स्वागत है !
कटु सत्य आलेख में प्रस्तुत किया है बधाई आपका हिन्दी चिठ्ठा जगत में स्वागत है |
"सरकारी दोहे" का आनंद लेनी आप मेरे चिठ्ठे पर सादर आमंत्रित हैं |
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.
तरीका महाचिट्ठाकार शास्त्री जी ने बता ही दिया है हटाने का.
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