आजमगढ़ आतंक्गढ़ कैसे बना ? ये कैफी आज़मी और शबाना आज़मी की विरासत के बीच दहशत गर्द कहाँ से आ गए ? आज यही शबाना का दर्द है। गोरखपुर के योगी आदितयानाथ आजमगढ़ के जिस तकिया मोहल्ले में घुसते ही गोलियों से छलनी कर दिए गए वहां शबाना आज़मी तो बेखोफ जा सकती हैं वह एक कलाकार हैं, अदाकारा हैं तो कलाकार का मन भी उनके पास होगा, वह आजमगढ़ जाएँ और social networking करें। इमामों को हिदयातें दे। आतंक के ख़िलाफ़ उनकी तक़रीरों के मार्फ़त तमाम आज़म्गढ़इयों को बतलायें जो दहशतगर्दों को पनाह देगा या कैसा भी संपर्क रखेगा उसे मुस्लिम समाज इमामों की रेख्देख में पुलिस के हवाले कर देगा। मीरा रोड (मुंबई की मुस्लिम बहूल चोटी सी उपनगरी) यह करिश्मा कर चुकी है, शबाना तो अपने दो तीन रोड शोज़ में ही यह कर सकती हैं। चाहें तो रोड शो के माहिर शो बॉय को भी साथ ले सकती हैं। पुलिस और मीडिया को निशाना बनने से क्या फायेदा जहाँ धुआं होगा वहां कुछ न कुछ ताप तो होगा ही। इसी आजमगढ़ ने कैफी साहिब को मान सम्मान दिलाया है यह आतंक्गढ़ न बने हम भी यही चाहते हैं लेकिन फिलवक्त शकुन अच्छा नही हैं जामिया नगर से प्राप्त पुख्ता सूत्र बताते हैं दहशतगर्दी में संलिप्त तेरह के तेरह आतंकी आज़म्गढ़इए हैं। शबाना जांच करें विश्लेषण करें, यह सब यदि हुआ तो कैसे हुआ सच आख़िर है क्या ? कितना है ?
शुक्रवार, 26 सितंबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें