यादों का झरोखा -४
बात स्वप्न नगरी मुंबई की है। गाड़ी में मनोज के अलावा उसका पोता (ग्रेंड सन )भी था ,गाड़ी को हिचकोले दे देकर उसकी पुतवधू हाँक रहीं थीं। सीट बेल्ट ये लोग नहीं लगाते इस हेंकड़ी में हम नेवी वाले हैं हमारा कोई क्या कर लेगा। इन अभागों अभाग्यवतियों को ये नहीं मालूम सीट बेल्ट लगाना खुद की हिफाज़त करना है। सीट बेल्ट न लगाना पद प्रतिष्ठा का नहीं अनुशासन और हिफाज़त का विषय है।
ये वैसी ही लापरवाही कही जाएगी जैसे कोरोना की ज़ारी इस दूसरी वेव के छीजते ही लोगों ने मास्क को मुसीबत मान ना शुरू कर दिया है। अरे स्साले उल्लू के पठ्ठे सड़क पे आ जाते हैं दीदे नहीं खोलके देखते हैं। मनोज सोच रहा था वह तो हाथ ठेले वाला था गैस के सिलिंडर ठेल रहा था उस संकरे रास्ते से जो मुश्किल से रास्ता होने की शर्त पूरी करता था। ये मेम क्या कर रहीं थीं यहां ?
मनोज को किसी तज़ुर्बेकार ने यह भी बतलाया था ये नेवल आफिसर्स की बीवियां बड़ी तड़ी में रहती हैं। घर में रहतीं हैं हुकुम चलाती हैं। अपना दर्ज़ा साहब के पद से एक ऊपर रखके चलतीं हैं। साहब लेफ्टिनेंट कमांडर तो ये मोहतरमा कमांडर समझें हैं खुद को। मनोज अभी ये सोच ही रहा था उसका पोता बोला मम्मी आपको उसे गाली नहीं देना चाहिए था। उस बे -चारे को कुसूर ही क्या था और आपने देखा नहीं कैसे पसीना उसके माथे से बहके मुंह की तरफ चू रहा था।
फिर वहां तो रेड लाइट भी थी आपको गाड़ी बंद करके पेट्रोल की बचत करनी चाहिए थी आपने गाड़ी को आगे बढ़ाया ही क्यों था ? फिर उस बे -कुसूर को गाली भी दी। वह तो बाल -बाल बच गया वरना पिछ्ला हिस्सा गाड़ी का उसकी गत बना देता।
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