गुरुवार, 17 जून 2021

आजकल :ड्रीम प्रोजेक्ट (सेंट्रल विस्टा ) को टंगड़ी रामलला की राह में रोड़े

आजकल :ड्रीम प्रोजेक्ट (सेंट्रल विस्टा ) को टंगड़ी रामलला की राह में रोड़े 

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1921 में आरम्भ होकर 1927 में बनकर सम्पूर्ण हुआ था मौजूदा संसद भवन इसके निर्माण में भवन निर्माता सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर का हाथ था। उम्रदराज़ भवन आज अपनी आखिरी घड़ियाँ गिन रहा है लुटियंस की इस निशानी को एक संग्रहालय की शक्ल देकर संरक्षित किया जाएगा। इस समय इसे बनाये रखना सफ़ेद हाथी को बनाये रखने से ज्यादा खर्ची मांग रहा है। 

अलावा इसके २०२६ में नए परिसीमन के बाद लोकसभा के सांसद मौजूदा ५४३ से बढ़कर ८५० तथा राज्य सभा के २५० से ३५० हो जाएंगे। एक तरफ ये इमारत अपनी उम्र भुगता  चुकी है दूसरी तरफ स्थाना भाव है कोरोना के इस दौर में यहां सोशल डिस्टेंसिंग  को बनाये रखने के लिए लोकसभा और राज्य सभा के काम करने की अवधि अलग अलग रखी गई। 

टंगड़ी मार विपक्ष दिमाग से पैदल ही नहीं अपने ही ख्वाबों को हकीकत होते नहीं देखना चाहता। आज हिन्दुस्तान का बच्चा बच्चा जानता है पंद्रहवीं लोकसभा  की मुखिया मीरा कुमार और पर्यावरण मंत्री तथा कांग्रेस के थिंक टेंक समझे जाने वाले श्री जय राम रमेश ने निर्माणाधीन सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की पुरज़ोर सिफारिश की थी। 

मौजूदा नेहरुअवशेषी कांग्रेस के मतिमंद शहज़ादे और उनके टूलकिट पोषित देश विदेश में दुष्प्रचार करते प्यादे इस प्रोजेक्ट को तालिबानी बिल्डिंग बतला रहे हैं। वो सुमुखि सुंदरी पोशाक बदल के सिवाय कुछ नहीं जाती इस प्रोजेक्ट  के बारे में क्या जानेगी। सारा ध्यान सारी तवज़्ज़ो उसकी अपने पैरहन पे ही रहती  है। 

हद तो ये हैं जनेउ लहराने वाले दत्तात्रेय ब्राह्मण श्री आउल जी इन  दिनों राम लला की राह में भी रोड़े बजरी बिछा रहे हैं। 

रोड़े अब भी हैं बहुत रामलला की राह ,

कैसे भी मंदिर रुके ,लोग रहें हैं चाह। 

लोग रहें हैं चाह डालते रहते बाधा ,

मन में पाले लोग दिख रहे कुटिल इरादा। 

राम द्रोह  दिखलाय पड़े हैं खोले घौड़े ,

रोको गदा उठाय पवन  सुत सारे रोड़े।   (आशुकवि ओमप्रकाश तिवारी )

बात साफ़ है ये टंगड़िया विपक्ष लुटियंस  की दिल्ली को आज भी तसव्वुर में लिए रहना चाहता है ,इसे स्टेचू ऑफ़ यूनिटी ,अटल टनल ,नरेंद्र मोदी (मोटेरा )स्टेडियम रास नहीं आता। इन्हें चाहिए मुगलिया दिल्ली ,अहमदशाह अब्दाली और टीपू सुल्तानी दिल्ली। ये खुद भी कटुवों की  ही तो संकर  औलादें हैं। इसीलिए दिल्ली के यमुना पुल की तरह मौजूदा संसद भवन को ही बनाये रखना चाहतें  है जबकि पहला रेलगाड़ियों और दूसरा सांसदों का रैला बर्दाश्त करने के अब काबिल नहीं हैं। 


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