हिंदुत्व में ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा :एकं सत् विप्रा : बहुधा वदन्ति (There is one ultimate reality (God ),known by many names -Rig Veda
बतलाते हुए आगे बढ़ें -हिंदुत्व एक जीवन शैली का नाम है। सनातन धर्मी भारत धर्मी समाज के तमाम लोग हिन्दू कहाते हैं।
ईश्वर की अवधारणा में यहां पूर्ण प्रजातंत्र है। त्रिदेव की अवधारणा के तहत एक ही परमात्मा तीन रूपों में अलग अलग कर्मों का नैमित्तिक कारण माना गया है यही है त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश की अवधारणा।
तैतीस कोटि (कोटि यानी प्रकार )देव हैं यहां। कुलजमा जोड़ ३३। देव का अर्थ गॉड नहीं है। यह अनुवाद की सीमा है। देव का पर्याय परमात्मा नहीं है देव ही है। जैसे रिलिजन का रिलिजन ,धर्म का धर्म ही पर्याय है। कोटि का गलत अर्थ करोड़ कर दिया गया है। संस्कृत भाषा का मूल शब्द है कोटि जिसके एकाधिक अर्थ हैं। तैतीस कोटि देवता यहीं से चलन में आया है तैतीस तरह को तैतीस करोड़ कर दिया गया एक अनुवाद के तहत।
One God fulfilling three different roles is often depicted as three in one .
One Supreme Reality :Ishwara ,Bhagwan ,Sat-Chit-Anand (absolute existence ,absolute consciousness and or knowledge and absolute bliss or God .
एक ही पारब्रह्म या ब्रह्म है इसे चाहे ईश्वर कहो ,या भगवान या फिर सच्चिदानंद (सत् -चित -आनंद ).
The one Supreme absolute as Brahman (a cosmic consciousness )who is both immanent and transcendent .
एक ब्रह्म या पारब्रह्म है ,एक ही चैतन्य सारी सृष्टि में परिव्याप्त है जो ज्ञानातीत ,इन्द्रियातीत है। मन बुद्धि चित्त के संज्ञान में नहीं आएगा वह ब्रह्म ध्यानातीत है। अनुभव अनुभूति का विषय ज़रूर हो सकता है ब्रह्म उनके जो समाधिस्थ हैं जिनका मन अ -मन हो गया है अडोल हो गया है ,जिन्होनें अपने निज स्वरूप को अनुभूत कर लिया है उनके लिए फिर एक ब्रह्म ही है दूसरा कोई है ही नहीं।
हिंदुत्व की अवधारणा के अंतर्गत ईश्वर कालरहित है। कालातीत है। निराकार है लेकिन कोई भी आकार धारण कर सकता है सब आकार उसी के हैं और कोई एक विशेष आकार उसका नहीं है।
बहुरूप उसका प्राकट्य हो सकता है। अनेक रूपों में वह प्रकट हो सकता है। अमूर्त से मूर्त हो सकता है। मूर्त से फिर अमूर्त। वह सर्व का ज्ञाता है सबमें व्याप्त है।
पंडित उसे अनेक नामों से पुकारते हैं -शिव ,विष्णु ,माँ दुर्गा (दुर्गे ,पार्वती आदि )
Cosmic power is feminine Shakti
when the Divine Being takes form ,it assumes both male and female attributes .The ultimate reality as a female is called as Shakti ,power or energy .
अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा यही है।
हिंदुत्व के अंतर्गत ईश्वर सम्बन्धी एकाधिक अवधारणाएं प्रचलित हैं :
सगुण ,निर्गुण
साकार ,निराकार ,
भक्त जन सगुण साकार को आराधने में आनंद का अनुभव करते हैं तो कुछ पंडितजन सगुण निराकार स्वरूप परमात्मा को अपना आराध्य बनाते हैं कुछ अन्य निर्गुण निराकार की आराधना करते हैं। अलबत्ता है वह सभी के लिए सर्व -व्यापी सर्वमंगलकारी है ।
कवि पीपा की ये उक्ति हिंदुत्व के तहत ईश्वर की अवधारणा यूं प्रस्तुत करती है :
सगुण मीठो खाँड़ सो निर्गुण कड़वो नीम ,
जाको गुरू जो परस दे , ताहि प्रेम सो जीम।
सिख पंथ के अंतर्गत एक ही ब्रह्म की एकहु ओंकार की निर्गुण निराकार रूप में मान्यता है। श्री गुरुग्रंथ साहब ही गुरु हैं।
ईसाइयत के तहत ओल्ड टेस्टामेंट (पुराना नियम या मूल बाइबिल ) भी एक ही ईश्वर को मान्यता देती है ,न्यू टेस्टामेंट (नया नियम ,बाइबिल का संशोधित रूप )फ़ादर ,सन और होली स्पिरिट (ट्रिनिटी )की बात करता है लेकिन तीनों का सार रूप परमेश्वर वहां भी एक ही है एक के ही ये तीन रूप हैं। अल्लाह भी एक ही है कुरआन के अनुसार।
यहूदी भी एक ही परमेश्वर की बात करते हैं।
A relationship with God in hinduism :
There are three principle thoughts about relationship of individual divinity (Atman )with God (Brahman ):
Advait(अद्वैत )
(२ )Dvaita(द्वैत )
(3 )Vishishtadvait (विशिष्टाद्वैत )
Atman is defined as the ultimate reality (God )appearing as our essential Self .
इस विचार के अंतर्गत आत्मा या आत्मन को परमात्मा का ही दिव्यांश समझा जाता है।
One school of Hindu thought ,says that both the Atman and Brahman are the same (Advait -Aham Brahmasmi
अद्वैत वाद के तहत आत्मा ही ब्रह्म है दोनों का एकत्व है दूसरे किसी का अस्तित्व ही नहीं है।
(अहं ब्रह्मास्मि। अहम् ब्रह्म अस्मि )
मेरा निजस्वरूप ब्रह्म ही है।
Some believe they differ as the fire and the spark of the fire ,Ocean and a drop of the Ocean ,Gold and a particle of Gold ,Sun and a ray of light .
Many devotees perceive relationship with God as personal relationship like mother ,father ,sibling ,friend ,spouce (Sufivaad treats God as beloved wife ).
हिंदुत्व के तहत विभिन्न अवतारों की अवधारणा
A finite manifestation in earthly form of the infinite consciousness is called an Avatara.Ram and Krishna are the most famous Avataras.There are many more .
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम ,
धर्मसंस्थापनार्थय सम्भवामि युगे युगे।
साधुओं के कल्याण,परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए अधर्म के नाश और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं बार बार आता हूँ।
तैतीस प्रकार के देवता
(तैतीस करोड़ नहीं वरन सिर्फ तैतीस प्रकार के देवी -देवता )
इनमें १२ आदित्य ,११ रूद्र ,८ वसु ,२ अश्वनी कुमार (इंद्र और दक्ष ) हैं।कुलयोग हुआ ३३
द्वादश आदित्यों में बारह राशि चिन्ह (Zodiac Signs )
एकादश रुद्रों में पांच प्राण ,पांच उप -प्राण और एक महेश्वर (महा -प्राण )
आठ (अष्ट )वसुओं में एक जलतत्व 'आप:'तरल रूप में
दूसरा "पृथ्वी" तत्व ठोस रूप ,तीसरा 'अनिल' यानी वायुतत्व गैसीय रूप 'चउथा 'अनल' (अग्नि तत्व )ऊर्जा रूप ,पांचवां 'ध्रुव' (अचल अडोल सितारा रुप), (अंतरिक्ष या निर्वात रूप में )या फिर अन-उत्परिवर्तनीय रूप (Fixity ) अयनमास (Ayanmas )
छटा सोम (चंद्र ),सातवां प्रत्युषा (पौ फटने की (Recurring Dawn )बारम्बारता ,पुनरावृति );
Pratusha also represents :
(1)The Sun causing the night and day i.e the source of light behind the dawn and
(2 )Lagna The ascendant or the point or the point in the eastern horizon as representing the self and is equated to the dawn.
आठवाँ वसु है प्रभाष i.e Prabhasa – splendorous lights of the stars that are grouped into 27/28 Nakshetra (Constellations).
अश्वनी देवों के रूप में इंद्र और दक्ष की गणना की जाती है।
बतलाते हुए आगे बढ़ें -हिंदुत्व एक जीवन शैली का नाम है। सनातन धर्मी भारत धर्मी समाज के तमाम लोग हिन्दू कहाते हैं।
ईश्वर की अवधारणा में यहां पूर्ण प्रजातंत्र है। त्रिदेव की अवधारणा के तहत एक ही परमात्मा तीन रूपों में अलग अलग कर्मों का नैमित्तिक कारण माना गया है यही है त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश की अवधारणा।
तैतीस कोटि (कोटि यानी प्रकार )देव हैं यहां। कुलजमा जोड़ ३३। देव का अर्थ गॉड नहीं है। यह अनुवाद की सीमा है। देव का पर्याय परमात्मा नहीं है देव ही है। जैसे रिलिजन का रिलिजन ,धर्म का धर्म ही पर्याय है। कोटि का गलत अर्थ करोड़ कर दिया गया है। संस्कृत भाषा का मूल शब्द है कोटि जिसके एकाधिक अर्थ हैं। तैतीस कोटि देवता यहीं से चलन में आया है तैतीस तरह को तैतीस करोड़ कर दिया गया एक अनुवाद के तहत।
One God fulfilling three different roles is often depicted as three in one .
One Supreme Reality :Ishwara ,Bhagwan ,Sat-Chit-Anand (absolute existence ,absolute consciousness and or knowledge and absolute bliss or God .
एक ही पारब्रह्म या ब्रह्म है इसे चाहे ईश्वर कहो ,या भगवान या फिर सच्चिदानंद (सत् -चित -आनंद ).
The one Supreme absolute as Brahman (a cosmic consciousness )who is both immanent and transcendent .
एक ब्रह्म या पारब्रह्म है ,एक ही चैतन्य सारी सृष्टि में परिव्याप्त है जो ज्ञानातीत ,इन्द्रियातीत है। मन बुद्धि चित्त के संज्ञान में नहीं आएगा वह ब्रह्म ध्यानातीत है। अनुभव अनुभूति का विषय ज़रूर हो सकता है ब्रह्म उनके जो समाधिस्थ हैं जिनका मन अ -मन हो गया है अडोल हो गया है ,जिन्होनें अपने निज स्वरूप को अनुभूत कर लिया है उनके लिए फिर एक ब्रह्म ही है दूसरा कोई है ही नहीं।
हिंदुत्व की अवधारणा के अंतर्गत ईश्वर कालरहित है। कालातीत है। निराकार है लेकिन कोई भी आकार धारण कर सकता है सब आकार उसी के हैं और कोई एक विशेष आकार उसका नहीं है।
बहुरूप उसका प्राकट्य हो सकता है। अनेक रूपों में वह प्रकट हो सकता है। अमूर्त से मूर्त हो सकता है। मूर्त से फिर अमूर्त। वह सर्व का ज्ञाता है सबमें व्याप्त है।
पंडित उसे अनेक नामों से पुकारते हैं -शिव ,विष्णु ,माँ दुर्गा (दुर्गे ,पार्वती आदि )
Cosmic power is feminine Shakti
when the Divine Being takes form ,it assumes both male and female attributes .The ultimate reality as a female is called as Shakti ,power or energy .
अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा यही है।
हिंदुत्व के अंतर्गत ईश्वर सम्बन्धी एकाधिक अवधारणाएं प्रचलित हैं :
सगुण ,निर्गुण
साकार ,निराकार ,
भक्त जन सगुण साकार को आराधने में आनंद का अनुभव करते हैं तो कुछ पंडितजन सगुण निराकार स्वरूप परमात्मा को अपना आराध्य बनाते हैं कुछ अन्य निर्गुण निराकार की आराधना करते हैं। अलबत्ता है वह सभी के लिए सर्व -व्यापी सर्वमंगलकारी है ।
कवि पीपा की ये उक्ति हिंदुत्व के तहत ईश्वर की अवधारणा यूं प्रस्तुत करती है :
सगुण मीठो खाँड़ सो निर्गुण कड़वो नीम ,
जाको गुरू जो परस दे , ताहि प्रेम सो जीम।
सिख पंथ के अंतर्गत एक ही ब्रह्म की एकहु ओंकार की निर्गुण निराकार रूप में मान्यता है। श्री गुरुग्रंथ साहब ही गुरु हैं।
ईसाइयत के तहत ओल्ड टेस्टामेंट (पुराना नियम या मूल बाइबिल ) भी एक ही ईश्वर को मान्यता देती है ,न्यू टेस्टामेंट (नया नियम ,बाइबिल का संशोधित रूप )फ़ादर ,सन और होली स्पिरिट (ट्रिनिटी )की बात करता है लेकिन तीनों का सार रूप परमेश्वर वहां भी एक ही है एक के ही ये तीन रूप हैं। अल्लाह भी एक ही है कुरआन के अनुसार।
यहूदी भी एक ही परमेश्वर की बात करते हैं।
A relationship with God in hinduism :
There are three principle thoughts about relationship of individual divinity (Atman )with God (Brahman ):
Advait(अद्वैत )
(२ )Dvaita(द्वैत )
(3 )Vishishtadvait (विशिष्टाद्वैत )
Atman is defined as the ultimate reality (God )appearing as our essential Self .
इस विचार के अंतर्गत आत्मा या आत्मन को परमात्मा का ही दिव्यांश समझा जाता है।
One school of Hindu thought ,says that both the Atman and Brahman are the same (Advait -Aham Brahmasmi
अद्वैत वाद के तहत आत्मा ही ब्रह्म है दोनों का एकत्व है दूसरे किसी का अस्तित्व ही नहीं है।
(अहं ब्रह्मास्मि। अहम् ब्रह्म अस्मि )
मेरा निजस्वरूप ब्रह्म ही है।
Some believe they differ as the fire and the spark of the fire ,Ocean and a drop of the Ocean ,Gold and a particle of Gold ,Sun and a ray of light .
Many devotees perceive relationship with God as personal relationship like mother ,father ,sibling ,friend ,spouce (Sufivaad treats God as beloved wife ).
हिंदुत्व के तहत विभिन्न अवतारों की अवधारणा
A finite manifestation in earthly form of the infinite consciousness is called an Avatara.Ram and Krishna are the most famous Avataras.There are many more .
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम ,
धर्मसंस्थापनार्थय सम्भवामि युगे युगे।
साधुओं के कल्याण,परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए अधर्म के नाश और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं बार बार आता हूँ।
तैतीस प्रकार के देवता
(तैतीस करोड़ नहीं वरन सिर्फ तैतीस प्रकार के देवी -देवता )
इनमें १२ आदित्य ,११ रूद्र ,८ वसु ,२ अश्वनी कुमार (इंद्र और दक्ष ) हैं।कुलयोग हुआ ३३
द्वादश आदित्यों में बारह राशि चिन्ह (Zodiac Signs )
एकादश रुद्रों में पांच प्राण ,पांच उप -प्राण और एक महेश्वर (महा -प्राण )
आठ (अष्ट )वसुओं में एक जलतत्व 'आप:'तरल रूप में
दूसरा "पृथ्वी" तत्व ठोस रूप ,तीसरा 'अनिल' यानी वायुतत्व गैसीय रूप 'चउथा 'अनल' (अग्नि तत्व )ऊर्जा रूप ,पांचवां 'ध्रुव' (अचल अडोल सितारा रुप), (अंतरिक्ष या निर्वात रूप में )या फिर अन-उत्परिवर्तनीय रूप (Fixity ) अयनमास (Ayanmas )
छटा सोम (चंद्र ),सातवां प्रत्युषा (पौ फटने की (Recurring Dawn )बारम्बारता ,पुनरावृति );
Pratusha also represents :
(1)The Sun causing the night and day i.e the source of light behind the dawn and
(2 )Lagna The ascendant or the point or the point in the eastern horizon as representing the self and is equated to the dawn.
आठवाँ वसु है प्रभाष i.e Prabhasa – splendorous lights of the stars that are grouped into 27/28 Nakshetra (Constellations).
अश्वनी देवों के रूप में इंद्र और दक्ष की गणना की जाती है।
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