सोमवार, 6 अगस्त 2018

Sacred Scriptures (Part III,HINDI )

स्मृति ग्रंथों के अंतर्गत ही रखा जाएगा -

(१ )वेदांग 
(२ )उपवेद 
(३)दर्शन (षड्दर्शन )
(४ )न्याय शास्त्र (धर्म शास्त्र )
(५ )इतिहास को 

वेदांगों के तहत व्याकरण (संस्कृत भाषा का ग्रैमर ),ज्योतिष विज्ञान ,निरुक्त (इनमें शब्दावली ,शब्दकोश ,शब्दों के उद्गम का शास्त्र ,शब्द व्युत्पत्ति  शास्त्र ,आदि  आएंगे ),शिक्षा (वैदिक मन्त्रों का उच्चारण ,आरोह अवरोह,उच्चारण कौशल  ),छंद (लय -ताल, मीटर यानी मात्राओं का हिसाब किताब ),कल्प सूत्र आदि आएंगे। 
उपवेदों में शिल्प  यानी यांत्रिकी ,घर बनाने की कला ,वास्तु कला आदि धनुर्वेद (धनुष विद्या ,आयुद्ध आदि ,युद्ध कला ),गंधर्व वेद (यानी संगीत शास्त्र ),आयुर्वेद के अंतर्गत (शरीर क्रिया विज्ञान एवं औषधि शास्त्र आदि )आएंगे।

शिल्प की चर्चा अथर्व वेद ,धनुर्वेद की यजुर्वेद तथा गंधर्व वेद की चर्चा सामवेद में की गई है। आयुर्वेद को विस्तार से ऋग्वेद और अथर्व वेदों ने समझाया है। 

दर्शन के अंतर्गत ईश्वर के अस्तित्व को न मानने वाले नास्तिकवाद  ,भोगविलास को जीवन का अंतिम लक्ष्य मानने वाले चार्वाक दर्शन या  जीवन शैली यानी उधार लेकर भी घी  पीयो , क़र्ज़ मत लौटाओ को समझाया गया है। 
ईश्वर में आस्था रखने वाले आस्तिकवाद की भी चर्चा आती है। 

षड्दर्शनों में -

वैशेषिका ,न्याय,सांख्य ,योग विज्ञान ,पूर्व मीमांसा तथा उत्तर मीमांसा (वेदांत )की चर्चा की गई है। 
कन्नड़ (कणाद )ऋषि वैशेषिका के अंतर्गत माया की निरर्थकता ,तर्कविज्ञान आदि की व्याख्या करते हैं। 

गौतम ऋषि न्याय शास्त्र में सृष्टि के क्रमिक उद्भव एवं  विकास ,ईश्वर के तार्किक अस्तित्व की खोज करते हैं। कपिल मुनि का सांख्य शास्त्र भौतिक एवं मानसिक  व्याधि ,आदिभौतिक एवं आत्मिक सुखदुख के निवारण एवं मोक्ष की बात करता है। 
पतंजलि योग के तहत अष्टांग योग एवं ध्यान और समाधि द्वारा संन्यास की प्राप्ति की बात करते हैं । 
पूर्व मीमांसा में जैमिनी वेदों के सनातन  अस्तित्व की बात करते हैं। उत्तर मीमांसा में आत्मा ,सृष्टि और माया तीनों के दिव्य स्वरूप की चर्चा है। 
धर्म शास्त्र के अंतर्गत अठारह स्मृतियाँ आतीं हैं :

यानी यहां पाराशर स्मृति ,मनुस्मृति , याज्ञवलक्य  स्मृति ,उपस्मृतियाँ आदि आतीं हैं।
वाल्मीकि रामायण तथा वेदव्यास कृत महाभारत को इतिहास के अंतर्गत रखा जाएगा। 
श्रीमद्भागवद्गीता प्रमुख स्मृति ग्रंथ है कहीं कहीं किसी ने इसे भी इतिहास के तहत रखा है। 

धर्म शास्त्र के तहत तिरुक्कुरल (तमिल शैवों )के व्यवहार आचार और नीतिशास्त्र की चर्चा है। नीति शास्त्र का निर्धारण चाणक्य ,विदुर एवं शुक्र करते हैं। 
कौटिल्य शास्त्र अर्थ राजनीति और क़ानून की व्याख्या करता है। 

पाराशर स्मृति को कलियुग के अनुकूल मनुस्मृति को अन्य युगों के लिए याग्वल्क्य स्मृति को अन्य युगों के अनुरूप और अनुकूल माना गया है.बृहस्पति ,दक्ष ,गौतम ,यम, अंगिरा ,शततापा , संवर्त ,योगीश्वर ,प्रचेता ,उष्ण (उशना ),शंख ,लिख़िता ,अत्रि ,विष्णु एवं हरि स्मृतियों की भी चर्चा की गई है। 

उपस्मृतियों में नारद ,पुलहा ,गर्ग ,पुलस्त्य ,शौनक,गरातू , ,बौधायन  ,विश्वामित्र और अन्य उपस्मृतियाँ आतीं हैं। 
कुछ और मान्य ग्रंथों में इन सबके बाद  आने वाले ग्रंथों को रखा जा सकता है जिनमें निम्न का नाम लिया जा सकता है :
(१ )पाराशर :माधवाचार्य 
(२ )अणुभाष्य :वल्लभाचार्य 
(३ )कृष्ण चेतना (चैतन्य या कृष्ण भावना ):चैतन्य 
(४ ) शिक्षापत्री :स्वामीनारायण 
(५ )सत्यार्थ प्रकाश :स्वामी दयानन्द सरस्वती 

धार्मिक आध्यात्मिक ग्रंथ इसके अलावा और भी हैं जो हमारी  अल्प  बुद्धि के दायरे में नहीं आ पाए हैं। उसके लिए क्षमा प्रार्थी मैं रहूँगा मेरा आधा अधूरा पुरुषार्थ (प्रयत्न )रहेगा। 

(ज़ारी) 



कोई टिप्पणी नहीं: