शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

नीरज से बढ़के धनी कौन है यहां , उसके हृदय में पीर है सारे जहान की।

बाल कवि के रूप में हमें आशीर्वाद मिला बुलंदशहर के एक कवि सम्मलेन में मंच पर आने का जिसका मुख्य आकर्षण थे -गोपाल दास नीरज। किसी ज़माने में कविता को जन जन तक लाने में आपका अप्रतिम योगदान रहा है। आप धर्म समाज कालिज अलीगढ में साइकिल से पढ़ाने जाते थे। कोई कविता सुनाने की पेश काश करे तो आप रूककर सुनाने लगते थे। ऐसे थे लोकलुभावन भाव जगत के कवि गोपाल दास नीरज। उनका अंदाज़े बयाँ हमारे बीच में सदा रहेगा। 

श्रद्धा सुमन के रूप में उनके चंद अशआर आपकी खिदमत में पढ़ लिख रहा हूँ :


(१)शायद मेरे गीत किसी ने गाये हैं ,

इसीलिए बे -मौसम बादल छाये हैं। 

(२ )अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई ,

मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई। 

(३ )खुश्बू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की ,

खिड़की खुली है फिर कोई उनके मकान की। 

हारे हुए परिन्द ज़रा उड़ के देख तू ,

आ जायेगी ज़मीं पे चाहत आसमान की। 

ज्यूँ लूट लें कहार ही दुल्हन की पालकी ,

हालत यही थी  कल तक मिरे हिन्दुस्तान की। 

नीरज से बढ़के धनी कौन है यहां ,

उसके हृदय में पीर है सारे जहान  की। 


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