बुधवार, 19 अगस्त 2015

वे अपने प्राकृतिक संशाधनों को प्यार करते हैं

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अकसर छोटी छोटी बातें बड़ा गहरा सन्देश छिपाए रहतीं हैं अपने अंदर। बहुत ज़ोर से  इस एहसास ने तब जोर पकड़ा कुलाचें भरी जब आज के केजुअल को मैं साकार होते देख रहा था और अपस्केलस अपार्टमेंट्स ,डलेस ग्रीन,वर्जीनिया के निकट ग्रेट फाल्स पार्क के गिर्द घूम रहा था। एक सूचना पटल ने बरबस न सिर्फ मेरा ध्यान खींचा मैंने बार बार इस   महत्वपूर्ण सूचना को पढ़ा। पढ़ने का सहज मौक़ा भी इसलिए मिल गया की एकाधिक  स्थान पर ये सन्देश मुखरित था :

Please carry out whatever you carry in since Great Falls have no trash cans .Make sure you do not leave behind anything including Your pet waste .Pl help us in keeping the Falla area clean.Thank you .

 अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी को पीने  का पानी यही पोटोमैक नदी मुहैया करवाती है जो कभी अमरीकी इंडियंस और उपनिवेशवादी ताकतों के लिए व्यापार मार्ग मुहैया करवाती थी और जिस के गिर्द ये प्रपात और नहर प्रणाली सैंकड़ों बरसों के अनथक प्रयास के बाद तैयार हुई थी। जार्ज वाशिंगटन का ये अपनी युवावस्था से ही खाब था। विस्तृत जानकारी वेब साइट

www.nps.gov/grfa के अलावा Great Falls Park George Washington Memorial Parkway Turkey Run Park McLean ,VA 22101 (703-285-2965)पर उपलब्ध है। विषयांतरण हो जाएगा अगर मैं यह बतलाने बैठूंगा कि ग्रेट फाल्स के विज़िटर्स सेंटर पर विशेष जानकारी ,पुस्तकें और फ़िल्म डीवीडीज़ आदि उपलब्ध हैं।

विषय पर लौटता हूँ कैरी होम मेसेज ये है अमरीकी नागरिक अपनी वाटर बॉडीज़ ,प्राकृत संशाधनों को बे शुमार प्यार करते  हैं उनका जी जान से संरक्षण करते हैं। एक हम हैं गंगामैया और हिन्दुस्तान की तमाम नदियों को हमने गंदे नालों में तब्दील कर दिया है। अब तो थक गईं  हैं नदियां शहर का मलमूत्र ढोते ढोते। मुर्दे और पूज्य मूर्तियों ,फैक्टरियों के अपशिष्टों से रिसते  रसायनों को पीते पीते। कहतें हैं विष्णुभगवान के पैर धोये थे ब्रह्माजी ने उसका धोवन  हैं गंगा मैया जिनके उद्दाम वेग को संयमित करने की जिम्मेवारी शंकर भगवान ने उठाई थी ,आज वह शंकर भी क्या उस जहर को पी पायेगा जिसने गंगा और इतर  नदियों की ऑक्सीजन वहन क्षमता को ही मटियामेट कर दिया है। ई -कोलाई बैक्टीरिया का डेरा हैं हमारी नदियां इनकी ऑक्सीजन केरिंग केपेसिटी चुक  गई है।

मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की। कांग्रेस के कुशासन में तमाम घोटालों का एक घोटाला था गंगा प्रदूषण को बे -हिसाब बढ़ा देना। जैसे कागज़ पे कोयला खदानें खुद भी गईं और कोयला भी गायब हो गया खदानों का वैसे ही गंगा प्रदूषण के लिए आबंटित राशि गंगाप्रेमी राजनीति के धंधे बाज़ डकार गए।

सरकारें मूलतया बेईमान ही होतीं हैं भले मोदी सरकार ने आस की ज्योत फिर से सुलगा दी है। साध्वी उमा भारती जो कक्षा पांच से धारा प्रवाह शास्त्रों का वाचन करती रहीं हैं संस्कृति मंत्रालय संभाले हुए हैं। गंगा की सफाई को उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था और रोज़गार से जोड़ा है लेकिन गंगा और हमारी इतर  नदियां अब साफ़ होते होते ही होंगी। एक दिन में ये काम होने वाला नहीं है।

हमारा भी एक नागरिक के बतौर कुछ दायित्व है। गणपति विसर्जन और पश्चिमी बंगाल की पूजा के दौरान बड़े पैमाने पर धार्मिक उन्माद के साथ मूर्ती विसर्जन का दृश्य मैं जन -गंगा का हिस्सा बनके खुद भी देख चुका हूँ। लोगों को एक दूसरे पे गुलाल फैंकते अश्रुपूर्ण नेत्र लिए मैं ने भी देखा है कलकत्ता की सड़कों पर।

मूर्ती विसर्जन एक प्रतीक है अपनी सबसे प्रिय चीज़ को भी छोड़ देने का नष्टोमोहा होने का। लकीर के फ़कीर क्यों बने हम। गंगा यदि सचमुच में मैया है हमारी तो कमसे कम उसके किनारे धोबी बाड़ा तो हम बंद करें। मुर्दों पे चढ़े फूलों से भी गंगा प्रदूषित होती है अर्थी के अवशेषों से भी। नाक छींकना बंद करो गंगा में। सीखो कुछ उस पश्चिम से जिसे सुबह शाम कोसते हम नहीं अघाते। कितनों  ने नज़दीक से देखा है पश्चिमी रहनी सहनी को संस्कृति के बुनियादी तत्वों को। बाहरी लिबास और पैरहन का मतलब संस्कृति नहीं है। संस्कृति एक मूल्य बोध है। स्वच्छता भी है प्राकृतिक संशाधनों की हिफाज़त भी है। हमारा आज ही हमारे आने वाले कल की नियति तय करेगा। क्या हम अपनी नदियों को और गंधायेंगे। मट्टी पलीद करेंगे मैया की ?या फिर संभलेंगें एक नागर बोध विकसित करेंगे। अपने आसपास को स्वच्छ रखने से एक शुरुआत हम फ़ौरन कर सकते हैं।

विशेष :लौटते समय मैंने देखा न सिर्फ हमारे हाथों में बल्कि कार पार्क में जो भी उपस्थित थे सभी के हाथ में उपयोग में ली जा चुकी सामग्री के अपशिष्ट थे जिसे वे अपनी कार में सहेज के रख रहे थे ताकि जहां भी वेस्ट केन्स नज़र आएं उसका विसर्जन कर सकें।वे अपने प्राकृतिक  संशाधनों को प्यार करते हैं।

1 टिप्पणी:

Anita ने कहा…

अमरीकी नागरिक अपनी वाटर बॉडीज़ ,प्राकृत संशाधनों को बे शुमार प्यार करते हैं उनका जी जान से संरक्षण करते हैं। एक हम हैं गंगामैया और हिन्दुस्तान की तमाम नदियों को हमने गंदे नालों में तब्दील कर दिया है।
सही कहा है आपने..अब नहीं सम्भले तो बहुत देर हो जाएगी..