मंगलवार, 28 जुलाई 2015

जन-जन को तुम दे गये , नए-नएआयाम । बारम्बार तुम्हें नमन,भारत रत्न कलाम ।।




अपना सौ फीसद कर्म को दो। खुद को पहचानो ,खुद में यकीन रखो ,अपने 'स्व' रीअल- आई की शिनाख्त करो ,सुनिचित करो जीवन  के लिए लक्ष्य और जीवन का लक्ष्य। सीखो अपनी नाकामयाबियों से ग्रहण करो उन्हें प्रसाद रूप में।गीता के व्यावहारिक कर्म योग ,जीवन के विज्ञान का यही सन्देश हर दिल अज़ीमतर ऐपीजे अब्दुल कलाम साहब देकर गए हैं गोलोक। हर क्षण तुम कर्म करते हो सोते जागतेउठते बैठते ,पालक झपकते।  अपना प्रिय कर्म अध्यापन करते ही आप आगे की यात्रा पे निकल गए हैं,कहते हुए जीवन आगे की ओर है।

ये आकस्मिक नहीं है कि आप नित्यप्रति गीता का अध्ययन अनुशीलन करते थे। आप सच्चे कर्मयोगी थे हम सबके आध्यात्मिक कम्पास।

जन-जन को तुम दे गये , नए-नएआयाम ।
बारम्बार तुम्हें नमन,भारत रत्न कलाम ।।

हाज़िर है आपको आखिरी सलाम कलाम साहब :-
लाज़िमी है आँख नम होना किसी का प्यार में।
खासकर जब आदमी अच्छा लगे व्यवहार में। ।
आपने कुछ ख़ास ही दिल में बना ली थी जगह,
आप जैसे लोग अब मिलते कहाँ संसार में। ।
-कुँवर कुसुमेश


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