गुरुवार, 23 जुलाई 2015

सत्त्वानुरूपा सर्वस्य ,श्रद्धा भवति भारत । श्रद्धा-मयो अयं पुरुषो यो यच्-छ्रद्धः स एव सह : । ।

         ॐ तत् सत्  

 सत्त्वानुरूपा सर्वस्य ,श्रद्धा भवति भारत । 

श्रद्धा-मयो अयं पुरुषो यो यच्-छ्रद्धः स एव सह : । । 


0 son of Bharata ,according to one's existence under the various modes of nature ,one evolves a

particular kind of faith .The living being is  said to be under  a particular faith according to the

modes he has acquired .


(श्री भगवान बोले )हे अर्जुन ,सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके स्वभाव (तथा संस्कार )के अनुरूप होती है। मनुष्य

अपने स्वभाव से जाना जाता है। मनुष्य जैसा भी चाहे वैसा ही बन सकता है। (यदि वह श्रद्धापूर्वक अपने

इच्छित ध्येय का चिंतन करता रहे.

यदि मनुष्य उकताहट में न पड़कर दृढ एवं प्रबल निश्चय के साथ प्रयत्न करता रहे तो देवाधिदेव भगवान् शिव

के  प्रसाद से शीघ्र ही मनोवांछित फल पा लेता है (महाभारत १२। १५३। ११६ ). शुद्ध मन वाला  व्यक्ति जो भी

चाहता है ,उन पदार्थों की प्राप्ति उसे हो जाती है (मुण्डक उपनिषद ३.०१। १०  ).सत्कर्म करने वाला अच्छा बन

जाता है और दुष्कर्म करने वाला बुरा । पुण्य कर्मों से व्यक्ति पुण्यात्मा और पाप कर्मों से दुष्टात्मा बन जाता

है(बृहदारण्यक  उपनिषद  (४. ०४। ०५ )  . व्यक्ति वही हो जाता है जिसका वह सतत  रूप से गहन चिंतन

करता है ,कारण चाहे जो भी हो -श्रद्धा ,भय, ईर्ष्या प्यार या घृणा भी (भागवद पुराण ११. ०६। २२  ). जिसकी

तुम्हें तलाश है -जानबूझकर या अनजाने -सदा वही मिलेगा ,विचार से कर्म पैदा होता है ,शीघ्र ही कर्म स्वभाव

बन जाता है और स्वभाव किसी भी उद्यम में सफलता की ओर ले जाता है।

हम स्वयं अपने ही विचारों और कामनाओं की उपज हैं-अपने ही निर्माता। जहां चाह है वहां राह है। हमें उत्तम

विचारों को ही मन में स्थान देना चाहिए। क्योंकि विचार कर्म के पूर्वगामी हैं।

First there is thought then there is action .

विचार हमारे शारीरिक ,मानसिक ,आर्थिक और आध्यात्मिक कल्याण को भी नियंत्रण में रखते हैं। हमारे अपने

भीतर ही इतनी शक्ति है ,किन्तु विडंबना यह है कि हम उसका उपयोग करने में असमर्थ रहते हैं।यदि तुम्हारे

पास वह नहीं है ,जो तुम चाहते हो ,तो तुम उसके प्रति सौ फ़ीसदी निष्ठ नहीं हो। जीवन से सर्वश्रेष्ठ की कामना

नहीं करनी चाहिए ,यदि तुम उसे अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे सकते। सफलता धीरे -धीरे लिए गए पगों की श्रृंखला

है। अपने भविष्य की भविष्यवाणी का ,प्रागुक्ति करने का सबसे अच्छा तरीका अपने भविष्य का निर्माण

करना ही है। हर महान उपलब्धि एक समय असम्भव ही समझी जाती है। मानवीय भावना और मन की शक्ति

और क्षमता को कभी कम मत समझो। गीता के इस अकेले मन्त्र की शक्ति को व्यवहार में लाने  के लिए

अनेक पुस्तकें लिखी गईं  हैं और प्रेरणादायक कार्यपद्धतियों का विकास किया गया है।










1 टिप्पणी:

Anita ने कहा…

यदि तुम्हारे पास वह नहीं है, जो तुम चाहते हो, तो तुम उसके प्रति सौ फ़ीसदी निष्ठ नहीं हो। जीवन से सर्वश्रेष्ठ की कामना नहीं करनी चाहिए, यदि तुम उसे अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे सकते।

प्रेरणादायक विचार