शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

सङ्गीतसाहित्यकलाविहीना : साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीना :

सङ्गीतसाहित्यकलाविहीना : साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीना : ।

ते मर्त्यलोके भूविभारभूता : मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति। । ।

भावार्थ : वे मनुष्य जो संगीत साहित्य और कला से विहीन हैं साक्षात पशुओं के समान हैं। यद्यपि उनके सींग और पूंछ नहीं हैं फिर भी वे पशु मनुष्य रूप में इस धरती पर विचरण करते हैं और इस भूमि पर केवल बोझ समान हैं। 

1 टिप्पणी:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

कांग्रेसी ऐसे ही तो हैं।