शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर

गुरु शरणागत छाड़ि कै , करे भरोसा और ,

सुख सम्पति को कह छलि ,नहीं नरक में ठौड़। 

कबीर ते नर अंध हैं गुरु को कहते और ,

हरि  रूठे गुरु ठौड़ है ,गुरु रूठे नहीं ठौड़। 

गुरु बिन ज्ञान न उपजै ,गुरु बिन मिलै न मोक्ष ,

गुरु बिन लखै न सत्य को ,गुरु बिन मिटै  न दोष। 


कुमति कीच चेला  भरा ,गुरु ज्ञान जल होय,

जनम जनम का मोरचा(मोरछा ), पल में डारे धोय.


गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय॥

गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥

सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥


गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥


शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥


बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाडी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।।

कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और । 
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥


जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥

यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥

गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥


मूल ध्यान गुरू रूप है, मूल पूजा गुरू पाव |

मूल नाम गुरू वचन है , मूल सत्य सतभाव ||


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गुरू मूर्ती गती चंद्रमा, सेवक नैन चकोर |

आठ पहर निरखता रहे, गुरू मूर्ती की ओर ||

सवाल ये है... सवाल .ये है .....जबकि सवाल एक ही है मेमन की फांसी का विरोध करने वालों की लिस्ट बनाई जाए

देश में इन दिनों जिन्नाओं को पैदा करने के हालात बनाये  जा रहें हैं। जिन्नाओं की खेती के लिए बेशक उर्वरक ज़मीन कांग्रेस ने गत ६७ सालों में खाद पानी डालकर तैयार की है।नतीज़न आज  देश साफ़ साफ़ राष्ट्रद्रोही और राष्ट्रवादी तत्वों में बँट  चुका है।एक तरफ परम्परा गत भारत धर्मी समाज के लोग हैं तो दूसरी ओर कट्टर मज़हबी और खुलेआम पाकिस्तान परस्त मार्क्सवाद के बौद्धिक टट्टू और गुलाम वंशी सोनिया मायनो के अबौद्धिक  चाटुकार,चंद मानवाधिकार वादी ,चंद एनजीओज़ और न्यायिक दल्ले (उकील उर्फ़ वकील )हैं  ।  न्यायपालिका का, देश के सर्वोच्च न्यायालय का खुला अपमान कर रहें हैं कुछ अबुआज़मी ,ओवैसी- नुमा लोग,दुर्मति दुर्मुखी दिक्पराज्य सिंह उर्फ़ भोपाली मदारी , कलाम के दोनों मर्तबा राष्ट्रपति बन ने में विरोध  के स्वर मुखर करने वाले रक्तरंगी ,बौद्धिकगुलाम -लेफ्टिए तथा कुछ चैनल।

आजकल चैनलों पे मुठ्ठी बाँध कर बोलने वाली कुछ मोतरमाएं कुछ ऐसे बात कर रहीं हैं जैसे वे भारत तो क्या आतंकियों को फांसी के मुद्दे पर अमरीका को भी देख लेंगी।

सवाल ये है... सवाल .ये है .....जबकि सवाल एक ही है  मेमन की फांसी का विरोध करने वालों की लिस्ट बनाई जाए और इनके घर से एक एक आदमी की शहादत ली जाए ,मल खाने का इतना ही शौक था इनको तो खुद चढ़ जाते मेमन की जगह फांसी पर।

आतंक का समर्थक आतंक के बीज़बोने वाला रक्तबीज है।

मत भूलों बौद्धिक भकुओं वो दहशदगर्द जिन्होनें बामयान  की कलात्मक  बौद्ध प्रतिमाओं को भी नहीं छोड़ा था वो जब आयेंगे तो उनके निशाने पे आप भी होंगें वो शक्ल देखकर वार नहीं करेंगे।

 इन दिनों जो कुछ चंद चैनलिये प्रायोजित कर रहें हैं आग्रहमूलक सवाल पूछ रहे हैं याकूब की फांसी को लेकर वह सीधे- सीधे जनहित याचिका का मामला बनता है और वह 'जमालो' जो हुश हुश करके ४४ सांसदों से संसद में हंगामा करवाती है चुप है। वो जो प्रेसक्लब में जाकर संसद से पारित एक प्रस्ताव की कापी फाड़कर कहता है ये सब बकवास है ला -पता है।इन्हें बस एक ही चिंता है जमीन हड़पु जीजू को कैसे बचाया जाए देश जाए भाड़ में।

इसीलिए तो संसद में हंगामा ज़ारी है।  

पाकिस्तान सोच के दुर्मति दुर्मुख दिक्पराज्य सिंह फरमाते हैं

 मेमन को फांसी के मामले में सरकार और न्यायालय ने जो क्षिप्रता और व्यग्रता दिखलाई है उसने सरकार और न्यायपालिका दोनों की साख को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है बट्टा लगाया है।

जनाब दिक्पराज्य सिंह आपने देश के सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना की है। आप जिस सोनिया मायनों के चिरकुट हैं उसकी कांग्रेस ने तो कांग्रेस शब्द को ही दुनिया भर में बदनाम कर दिखाया है। वह हुश हुश करके ४४ सांसदों को रोज़ संसद में झमूरे की तरह नचाती है।

नांच मेरे चिरकुट नांच तुझे पैसा मिलेगा …।

एक दहशद गर्द को "ओसामाजी "सम्बोधन देने वाले आतंकियों के ये रहनुमा देखिये क्या कह रहे हैं मुंबई बम विस्फोटों के अपराध सिद्ध याकूब को फांसी के मुद्दे पर :

Digvijaya Singh


Congress leader and former Madhya Pradesh chief Minister Digvijaya Singhhas landed himself in hot waters once again.

In a series of tweets about the execution of 1993 Mumbai blasts convict Yakub Abdul Razak Memon, Digvijay Singh said, "Yakub Memon hanged. Exemplary urgency and commitment has been shown by Govt and Judiciary in punishing an accused of Terror."

In the following tweet he said, "I hope similar commitment of Govt and Judiciary would be shown in all cases of Terror irrespective of their Caste Creed and Religion."

इन पाकिस्तान सोच के लोगों ने देश को दो फाड़ कर दिया है :

एक तरफ ये न्यायपालिका विरोधी संविधान विरोधी लोग हैं दूसरी और भारतधर्मी वृहत्तर समाज। जिन्नाओं की खेती कर रहें हैं ये देश में। इन्हें रोका नहीं गया तो ये देश में दंगे करवा देंगे। वोट के लिए 'गु' (मल ) खा लेंगे ये चिरकुट बौद्धिक भकुए । संविधान को तो इनकी अम्मा १९७५ में ही तोड़ गईं  थीं रही सही कसर अब  इनकी मम्मीजी पूरी करवा रहीं  हैं। 

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

ईश्वर : सर्वभूतानां हृद देशे अर्जुन तिष्ठति । भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥

ईश्वर : सर्वभूतानां हृद देशे अर्जुन तिष्ठति । 

भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥ 
                     

                             (भगवद्गीता १८.  ६१ )

हे अर्जुन ,ईश्वर अर्थात श्रीकृष्ण ही सभी प्राणियों के अन्त :करण में स्थित होकर अपनी माया के द्वारा प्राणियों को यंत्र पर आरूढ़ कठपुतली की तरह घुमाते रहते हैं। 

O Arjuna ,The Omni dwells in the hearts of all living beings ; they being mounted on the machine 

(body with the senses ) causes them to revolve (according to their gunas)by means of His Prakriti 

(Materail Energy , The Maya ).

प्रभु ने कर्म विधान सब प्राणियों के नियंता के रूप में बनाये हैं। इसलिए व्यक्ति को वह सब ,जो भाग्य उस पर डालता है  ,प्रभु के शरण लेकर और उनके आदेशों का पालन करते हुए सहर्ष सहन करना सीखना चाहिए। (तुलसी रामायण २ . २ १८.   ०२  ). 


वेदों की घोषणा है कि कर्मों के माध्यम से प्रभु हमें वैसे ही नचाता है ,जैसे मदारी को बंदर,जैसे कांग्रेस को सोनिया मायनो।  कर्म विधान के बिना शास्त्र  निर्देशों ,निषेधों और आत्मप्रयासों का कोई मूल्य नहीं होगा। कर्म शाश्वत न्याय और शाशवत अधिनियम  है। शाश्वत  न्याय की कार्य पद्धति के परिणामस्वरूप हमारे कर्मों के परिणामों से कोई बचाव नहीं हो सकता  . हम अपने अतीत के चिंतन और कर्म की उपज हो जाते हैं। 

हमारा आज हमारे कल के कर्मों का परिणाम है। 

Our present is our past with little modification ,our future will be our present with little modification .

इसलिए शास्त्रों का मार्गदर्शक के रूप में उपयोग करते हुए हमें वर्तमान क्षण में बुद्धिपूर्वक चिंतन और कर्म करना चाहिए  . 

कर्म और पुनःजन्म का सिद्धांत कुरआन की दो आयतों में भी मिलता है -अल्लाह वह है ,जिसने तुम्हें पैदा किया और फिर तुम्हारा पोषण किया ,तुम्हें मारा और जो तुम्हें फिर जीवन देता है (सूरा ३०. ४० ).

"It is Allah ,Who has created you .Further ,He has provided for your sustenance ;then He will cause you to die ; and again He will give you life .Are there any of your (false )'partners 'who can do any single one of these things ?Glory to Him ! And high is He above the partners they attribute (to him )!
(Surah 30.40)


 वह उन्हें जो अच्छे कर्म करते हैं और जिनमें आस्था है ,पुरुस्कृत करता है। उसके कर्म फल के विधान से कोई बचने में समर्थ  नहीं (सूरा ३०. ४५ ). लोग अपने कर्म के परिणामों  से नहीं बच सकते,क्योंकि जैसा तुम बोवोगे वैसा काटोगे। 

"That He may reward those who believe and work righteous deeds ,out of his Bounty ,for He loves not those  who reject faith ."
(Surah 30.45).


You reap what you sow.

कारणों और परिणामों को अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि कार्य अर्थात परिणाम कारण में वैसे ही  विद्यमान  रहता है जैसे फल बीज में । अच्छे और बुरे कर्म हमारी छाया की भाँति हमारे साथ चलते हैं।

बाइबिल का कहना है -जो भी आदमी का खून बहाता है ,आदमी द्वारा उसका खून बहाया जाएगा (जेनेसिस ६. ०६ ). यह विश्वास किया जाता है कि बाइबिल से कर्म और पुनर्जन्म के सारे सन्दर्भों को दूसरी शती में इस महान उद्देश्य से निकाल दिया गया था कि व्यक्ति इसी जन्म में पूर्णता के लिए महा परिश्रम करे। जो लोग पुनर्जन्म में विश्वास  करते हैं ,उन्हें आलसय और प्रमाद से हटकर आध्यात्मिक साधना पर ज़ोर देना चाहिए और इसी जन्म में आत्म ज्ञानप्राप्त (Knowledge of the real I ,The Self ,The Soul ,आत्मन )करने का पूरा प्रयास करना चाहिए जैसे कि पुनर्जन्म है ही नहीं। यह सोचकर जियो कि यह दिन पृथ्वी पर तुम्हारा अंतिम दिन है। आलस्य और प्रमाद से कोई कुछ भी नहीं पा सकता।

कोई भी इस जगत से मृत्यु के बाद उस लोक में संपत्ति (ATM CARD ,PASS BOOK,आदि  ),यश ,शक्ति आदि अपने साथ नहीं ले जा सकता है। मृत्यु भी व्यक्ति के कर्म को नहीं छू सकती ,फांसी और आत्महत्या भी नहीं ,शेष बचा प्रारब्ध अगले जन्म में भोगना पड़ेगा । जिन्होनें पूर्व जन्म में अत्यंत पवित्रता के साथ कर्म किया है ,वे बिना किसी विशेष प्रयत्न के इस जन्म में यश पा लेंगें।

देश में इन दिनों जिन्नाओं को पैदा करने के हालात बनाये जा रहें हैं

देश में इन दिनों जिन्नाओं को पैदा करने के हालात बनाये  जा रहें हैं। जिन्नाओं की खेती के लिए बेशक उर्वरक ज़मीन कांग्रेस ने गत ६७ सालों में खाद पानी डालकर तैयार की है।नतीज़न आज  देश साफ़ साफ़ राष्ट्रद्रोही और राष्ट्रवादी तत्वों में बँट  चुका है।एक तरफ परम्परा गत भारत धर्मी समाज के लोग हैं तो दूसरी ओर कट्टर मज़हबी और खुलेआम पाकिस्तान परस्त मार्क्सवाद के बौद्धिक टट्टू और गुलाम वंशी सोनिया मायनो के अबौद्धिक  चाटुकार,चंद मानवाधिकार वादी ,चंद एनजीओज़ और न्यायिक दल्ले (उकील उर्फ़ वकील )हैं  ।  न्यायपालिका का, देश के सर्वोच्च न्यायालय का खुला अपमान कर रहें हैं कुछ अबुआज़मी ,ओवैसी- नुमा लोग,दुर्मति दुर्मुखी दिक्पराज्य सिंह उर्फ़ भोपाली मदारी , कलाम के दोनों मर्तबा राष्ट्रपति बन ने में विरोध  के स्वर मुखर करने वाले रक्तरंगी ,बौद्धिकगुलाम -लेफ्टिए तथा कुछ चैनल।

आजकल चैनलों पे मुठ्ठी बाँध कर बोलने वाली कुछ मोतरमाएं कुछ ऐसे बात कर रहीं हैं जैसे वे भारत तो क्या आतंकियों को फांसी के मुद्दे पर अमरीका को भी देख लेंगी।

सवाल ये है... सवाल .ये है .....जबकि सवाल एक ही है  मेमन की फांसी का विरोध करने वालों की लिस्ट बनाई जाए और इनके घर से एक एक आदमी की शहादत ली जाए ,मल खाने का इतना ही शौक था इनको तो खुद चढ़ जाते मेमन की जगह फांसी पर।

मत भूलों बौद्धिक भकुओं वो दहशदगर्द जिन्होनें बामयान  की कलात्मक  बौद्ध प्रतिमाओं को भी नहीं छोड़ा था वो जब आयेंगे तो उनके निशाने पे आप भी होंगें वो शक्ल देखकर वार नहीं करेंगे।

 इन दिनों जो कुछ चंद चैनलिये प्रायोजित कर रहें हैं आग्रहमूलक सवाल पूछ रहे हैं याकूब की फांसी को लेकर वह सीधे- सीधे जनहित याचिका का मामला बनता है और वह 'जमालो' जो हुश हुश करके ४४ सांसदों से संसद में हंगामा करवाती है चुप है। वो जो प्रेसक्लब में जाकर संसद से पारित एक प्रस्ताव की कापी फाड़कर कहता है ये सब बकवास है ला -पता है।इन्हें बस एक ही चिंता है जमीन हड़पु जीजू को कैसे बचाया जाए देश जाए भाड़ में।

इसीलिए तो संसद में हंगामा ज़ारी है।  

याकूब मेमन को फांसी महज एक दृष्टांत है समान मानसिकता वालों को सचेत करने के लिए. इसमें व्यक्ति गौण है

फांसी महज एक दृष्टांत है समान मानसिकता वालों को सचेत करने के लिए. इसमें व्यक्ति गौण है.
                                          ------------------------------डॉ अरविन्द मिश्र 
आत्मन को न तो कोई मारता है(और न ही वह किसी को मारता है ) और न ही वह किसी के द्वारा मारा जाता है। 

जो आत्म हत्या  करते हैं उनके कर्म नष्ट नहीं होते आगे की यात्रा वहीँ से शुरू होती है जहां पहुंचकर अदबदाकर आत्मन को मन के कहे  शरीर से जबरिया विमुक्त कर दिया गया मायिक (माया से बने ,मटीरियल से बने )मन द्वारा। 

तमाम आतताइयों को मारना धर्म है। गीता में वह सभी मारे गए जो अधर्म के साथ खड़े थे। समाज को चलाये रखने के लिए दंड का विधान ज़रूरी है। ये सदा से रहा आया है रहेगा। वरना समाज  एक मिनिट भी नहीं चल सकता। 

धर्म की रक्षा के लिए दहशदगर्दों को फांसी दी जा सकती है। जो इनकी फांसी का विरोध करते हैं वे अधर्म के साथ खड़े हैं। 

फांसी देने वाले ने अपने कर्तव्य कर्म (धर्म )का  पालन ही  किया है।ईद पर जब कसाई बकरा हलाल करता   है (उसके कान में यही 

कहता है भैया मैं तो अपना कर्म कर रहा हूँ। कटवाने वाला कोई और है।  )


कर्म और पुनर्-जन्म  का सिद्धांत कुरआन की दो आयतों में भी मिलता है (सूरा ३०. ४० )-अल्लाह वह है ,जिसने तुम्हें पैदा किया और  फिर तुम्हारा पोषण किया ,तुम्हें मारा और जो तुम्हें फिर जीवन देता है (सूरा 30 .40 ).वह  उन्हें जो अच्छे कर्म करते हैं और जिनमें आस्था है ,पुरस्कृत करता है। उसके कर्म फल के विधान से कोई बच नहीं सकता। (सूरा 30.45).लोग अपने कर्म के परिणाम से बच नहीं सकते ,क्योंकि जैसा तुम बोवोगे ,वैसा काटोगे। कारणों और परिणामों को अलग नहीं किया जा सकता। कार्य (परिणाम )कारण में ही छिपा (निहित )रहता है। जैसे फल बीज में विद्यमान रहता है। अच्छे और बुरे कर्म हमारी छाया के समान हमारा पीछा करते हैं। 

ये ओवैसी है या ओबीसी या एबीसी जो भी हैं ये किसे  बहका रहे हैं और ये चैनलिये इन्हें क्यों तूल दे रहे हैं।इन्हीं लोगों ने इस्लाम को बदनाम किया है। 

हमारा आदर्श सेकुलर कलाम हैं जो मज़हबी भेद का अतिक्रमण करते हैं।  

बुधवार, 29 जुलाई 2015

क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा का दायित्व राष्ट्रपति पर होता है …

क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा का दायित्व राष्ट्रपति पर होता है …।

यद्यपि कलाम साहब का देहांत हो चुका है लेकिन एक भूतपूर्व राष्ट्रपति के रूप में उनकी ये चिंता बरकरार थी कि संविधान के तहत प्राप्त विशेषाधिकार  और विपक्ष को मिले अधिकार के तहत सोनिया मायनो कांग्रेस आखिर इन अधिकारों का दुरोपयोग करके संसद को ही तोड़ने की साजिश के तहत संसद को चलने क्यों नहीं दे रही है। ये कैसे लोग है जो राष्ट्रीय संकट की घड़ी  में भी जब की देश के एक प्रमुख प्रांत पंजाब पर आतंकी हमला होता है  काली पट्टी बांधे संसद में चले आ रहे हैं।

कैसे लोग हैं ये जो याकूब मेमन की फांसी के विरोध में अपने बिलों से निकल आये हैं। शर्म आनी चाहिए इन्हें।

वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव दा पर ऐसा कौन सा नैतिक दवाब है जो वे इस दुर्भाग्यपूर्ण एवं राष्ट्र के लिए अति गंभीर स्थिति में भी मौन साधे बैठे हैं। वे क्यों नहीं कथित विपक्ष का आवाहन इस बात के लिए  करते कि शोक की इस घड़ी  में तो वे बंदरों की तरह संसद में मत उछलें  कूदें। कुछ विधाई  काम होने दें।

सोनिया मायनो की अगली पीढ़ी के काम को आगे ले जाने वाला एक और नमूना दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में यही काम  कर रहा है। उसे आज तक विधाई  भाषा न लिखनी आई है न बोलनी। दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग को लिखे पत्र में इस नमूने का प्रलाप देखिए -माना की हम हार गए और मोदी जीत गए अब तो आप महिला आयोग की अध्यक्षा  के लिए नामित पत्र पर  अपने हस्ताक्षर कर दें ।

नजीब साहब को इस व्यक्तिनुमा नमूने को समझाना चाहिए ये मुख्यमंत्री द्वारा लिखे जाने वाले पत्र की भाषा नहीं है पहले भाषा सीख कर आओ फिर हस्ताक्षर कर दूंगा। उन्हेंपत्र वापस कर देना चाहिए था।

इंसान के भेष में संसद में शाखा मृग बने कांग्रेसी भी यही काम कर रहे  हैं संविधान की आड़ लेकर ये संविधान को ही तोड़ देना चाहते हैं ।

एक भी समझदार आदमी क्या कांग्रेस में नहीं है जो इस राष्ट्रीय संकट को भांप सके और संसद में विधाई  कार्य  क्यों नहीं हो पा रहा है इसका जायजा लेकर सही पहल करे हाथ में आईना  लेकर ।


Dr APJ Abdul Kalam had planned a surprise assignment for the students of IIM Shillong on finding innovative ways to end disruption in Parliament

kalam

राष्ट्रीय शोक की इस घड़ी  में प्रणव दा अगर चाहे तो कह सकतें हैं कलाम साहब को  श्रद्धांजलि अर्थपूर्ण बनासकते हैं हमारे सांसद -वर्षाकाल अधिवेशन की शेष  अवधि में संसद को चलने दिया जाए राजनीतिक मिसायल फिर फैंक लेना। कलाम साहब की आखिरी क्षणों में यही चिंता था -"मैंने अपने कार्यकाल में दो सरकारें देखीं उसके बाद भी कई सरकारें देखीं -आखिर संसद में काम क्यों नहीं हो पा रहा है। ६७ साल जाया कर दिए हमने -पूछूंगा मैं ये सवाल शिलांग के बच्चों से युवा भीड़ से फिलवक्त तो मैं भी नहीं जानता कि ऐसा कैसे हो सकता है। "

The assignment which Kalam could not give to IIM students


Shillong: Working tirelessly even on his last day, Dr APJ Abdul Kalam had planned a surprise assignment for the students of IIM Shillong on finding innovative ways to end disruption in Parliament.

Kalam's close aide Srijan Pal Singh, who was with him on his last day, said while travelling from Delhi to Shillong they were discussing disruptions in Parliament .

"He was very worried and said he had seen the tenures of many governments but disruption keeps on happening every time. He had told me to prepare a surprise assignment question for the students which would be given to them at the end of the lecture," Singh, who co-authored two books with Kalam said on his facebook page.

He said the former President wanted students to come up with three innovative ideas to make Parliament more productive and vibrant.


"We had also decided to include this topic of disruptions in Parliament into our next book 'Advantage India' which would be released in September-October. I'll do that now before the book comes into the market," the IIM Ahmedabad alumnus said.

When asked about Kalam's last wish, he told PTI that Kalam always wanted a billion smiles on a billion faces in the country.
"He wanted rural India to develop and also he kept on talking about youth empowerment. Now his ideas are more alive as the man who was leading it from the front is no more," he said.
The only regret the 'Missile Man' had in his life was not being able to provide facilities like 24-hour electricity to his parents during their lifetime
"That is I think one regret he always had in his life," Singh said. 
Srijan Pal Singh on Facebook posted 'Last day with the great Kalam sir'
Here is the full text

What I will be remembered for... my memory of the last day with the great Kalam sir...

It has been eight hours since we last talked - sleep eludes me and memories keep flushing down, sometimes as tears. Our day, 27th July, began at 12 noon, when we took our seats in the flight to Guwahati. Dr. Kalam was 1A and I was 1C. He was wearing a dark colored "Kalam suit", and I started off complimenting, "Nice color!" Little did I know this was going to be the last color I will see on him.

Long, 2.5 hours of flying in the monsoon weather. I hate turbulence, and he had mastered over them. Whenever he would see me go cold in shaking plane, he would just pull down the window pane and saw, "Now you don't see any fear!".

That was followed by another 2.5 hours of car drive to IIM Shillong. For these two-legged trip of five hours we talked, discussed and debated. These were amongst hundreds of the long flights and longer drives we have been together over the last six years.

As each of them, this was as special too. Three incidents/discussions in particular will be "lasting memories of our last trip".
First, Dr. Kalam was absolutely worried about the attacks in Punjab. The loss of innocent lives left him filled with sorrow. The topic of lecture at IIM Shillong was Creating a Livable Planet Earth. He related the incident to the topic and said, "It seems the manmade forces are as big a threat to the livability of earth as pollution". We discussed on how, if this trend of violence, pollution and reckless human action continues we will forced to leave earth. "Thirty years, at this rate, maybe", he said. "You guys must do something about it... it is going to be your future world"

Our second discussion was more national. For the past two days, Dr. Kalam was worried that time and again Parliament, the supreme institution of democracy, was dysfunctional. He said, "I have seen two different governments in my tenure. I have seen more after that. This disruption just keeps happening. It is not right. I really need to find out a way to ensure that the parliament works on developmental politics." He then asked me to prepare a surprise assignment question for the students at IIM Shillong, which he would give them only at the end of the lecture. He wanted them to suggest three innovative ways to make Parliament more productive and vibrant. Then, after a while he returned on it. "But how can I ask them to give solutions if I don't have any myself".

For the next one hour, we thwarted options after options, to come up with his recommendation over the issue. We wanted to include this discussion in our upcoming book, Advantage India.
Third, was an experience from the beauty of his humility. We were in a convoy of 6-7 cars. Dr. Kalam and I were in the second car. Ahead of us was an open gypsy with three soldiers in it. Two of them were sitting on either side and one lean guy was standing atop, holding his gun. One hour into the road journey, Dr. Kalam said, "Why is he standing? He will get tired. This is like punishment. Can you ask a wireless message to be given that he may sit?" I had to convince him, he has been probably instructed to keep standing for better security. He did not relent. We tried radio messaging, that did not work. For the next 1.5 hours of the journey, he reminded me thrice to see if I can hand signal him to sit down. Finally, realizing there is little we can do - he told me, "I want to meet him and thank him". Later, when we landed in IIM Shillong, I went inquiring through security people and got hold of the standing guy. I took him inside and Dr. Kalam greeted him. He shook his hand, said thank you buddy. "Are you tired? Would you like something to eat? I am sorry you had to stand so long because of me". The young lean guard, draped in black cloth, was surprised at the treatment. He lost words, just said, "Sir, aapke liye to 6 ghante bhi khade rahenge".

After this, we went to the lecture hall. He did not want to be late for the lecture. "Students should never be made to wait", he always said. I quickly set up his mike, briefed on final lecture and took position on the computers. As I pinned his mike, he smiled and said, "Funny guy! Are you doing well?" 'Funny guy', when said by Kalam could mean a variety of things, depending on the tone and your own assessment. It could mean, you have done well, you have messed up something, you should listen to him or just that you have been plain naive or he was just being jovial. Over six years I had learnt to interpret Funny Guy like the back of my palm. This time it was the last case.
"Funny guy! Are you doing well?" he said. I smiled back, "Yes". Those were the last words he said. Two minutes into the speech, sitting behind him, I heard a long pause after completing one sentence. I looked at him, he fell down.

We picked him up. As the doctor rushed, we tried whatever we could. I will never forget the look in his three-quarter closed eyes and I held his head with one hand and tried reviving with whatever I could. His hands clenched, curled onto my finger. There was stillness on his face and those wise eyes were motionlessly radiating wisdom. He never said a word. He did not show pain, only purpose was visible.

In five minutes, we were in the nearest hospital. In another few minutes, they indicated the Missile Man had flown away, forever. I touched his feet, one last time. Adieu old friend! Grand mentor! See you in my thoughts and meet in the next birth.

As I turned back, a closet of thoughts opened.

Often he would ask me, "You are young, decide what will you like to be remembered for?" I kept thinking of new impressive answers, till one day I gave up and resorted to tit-for-tat. I asked him back, "First you tell me, what will you like to be remembered for? President, Scientist, Writer, Missile man, India 2020, Target 3 billion.... What?" I thought I had made the question easier by giving options, but he sprang on me a surprise. "Teacher", he said.

Then something he said two weeks back when we were discussing about his missile-time friends. He said, "Children need to take care of their parents. It is sad that sometimes this is not happening". He paused and said, "Two things. Elders must also do. Never leave wealth at your deathbed - that leaves a fighting family. Second, one is blessed if one can die working, standing tall without any long-drawn ailing. 
Goodbyes should be short, really short".

Today, I look back - he took the final journey, teaching, what he always wanted to be remembered doing. And, till his final moment he was standing, working and lecturing. He left us, as a great teacher, standing tall. He leaves the world with nothing accumulated in his account but loads of wishes and love of people. He was successful, even in his end.

Will miss all the lunches and dinners we had together, will miss all the times you surprised me with your humility and startled me with your curiosity, will miss the lessons of life you taught in action and words, will miss our struggles to race to make into flights, our trips, our long debates. You gave me dreams, you showed me dreams need to be impossible, for anything else is a compromise to my own ability. The man is gone, the mission lives on. Long live Kalam.

Your indebted student,
Srijan Pal Singh

कलाम साहब को श्रद्धांजलि अर्थपूर्ण बनासकते हैं हमारे सांसद -वर्षाकाल अधिवेशन की शेष अवधि में संसद को चलने दिया जाए राजनीतिक मिसायल फिर फैंक लेना

kalam

राष्ट्रीय शोक की इस घड़ी  में प्रणव दा अगर चाहे तो कह सकतें हैं कलाम साहब को  श्रद्धांजलि अर्थपूर्ण बनासकते हैं हमारे सांसद -वर्षाकाल अधिवेशन की शेष  अवधि में संसद को चलने दिया जाए राजनीतिक मिसायल फिर फैंक लेना। कलाम साहब की आखिरी क्षणों में यही चिंता था -"मैंने अपने कार्यकाल में दो सरकारें देखीं उसके बाद भी कई सरकारें देखीं -आखिर संसद में काम क्यों नहीं हो पा रहा है। ६७ साल जाया कर दिए हमने -पूछूंगा मैं ये सवाल शिलांग के बच्चों से युवा भीड़ से फिलवक्त तो मैं भी नहीं जानता कि ऐसा कैसे हो सकता है। "

The assignment which Kalam could not give to IIM students


Shillong: Working tirelessly even on his last day, Dr APJ Abdul Kalam had planned a surprise assignment for the students of IIM Shillong on finding innovative ways to end disruption in Parliament.

Kalam's close aide Srijan Pal Singh, who was with him on his last day, said while travelling from Delhi to Shillong they were discussing disruptions in Parliament .

"He was very worried and said he had seen the tenures of many governments but disruption keeps on happening every time. He had told me to prepare a surprise assignment question for the students which would be given to them at the end of the lecture," Singh, who co-authored two books with Kalam said on his facebook page.

He said the former President wanted students to come up with three innovative ideas to make Parliament more productive and vibrant.


"We had also decided to include this topic of disruptions in Parliament into our next book 'Advantage India' which would be released in September-October. I'll do that now before the book comes into the market," the IIM Ahmedabad alumnus said.

When asked about Kalam's last wish, he told PTI that Kalam always wanted a billion smiles on a billion faces in the country.
"He wanted rural India to develop and also he kept on talking about youth empowerment. Now his ideas are more alive as the man who was leading it from the front is no more," he said.
The only regret the 'Missile Man' had in his life was not being able to provide facilities like 24-hour electricity to his parents during their lifetime
"That is I think one regret he always had in his life," Singh said. 
Srijan Pal Singh on Facebook posted 'Last day with the great Kalam sir'
Here is the full text

What I will be remembered for... my memory of the last day with the great Kalam sir...

It has been eight hours since we last talked - sleep eludes me and memories keep flushing down, sometimes as tears. Our day, 27th July, began at 12 noon, when we took our seats in the flight to Guwahati. Dr. Kalam was 1A and I was 1C. He was wearing a dark colored "Kalam suit", and I started off complimenting, "Nice color!" Little did I know this was going to be the last color I will see on him.

Long, 2.5 hours of flying in the monsoon weather. I hate turbulence, and he had mastered over them. Whenever he would see me go cold in shaking plane, he would just pull down the window pane and saw, "Now you don't see any fear!".

That was followed by another 2.5 hours of car drive to IIM Shillong. For these two-legged trip of five hours we talked, discussed and debated. These were amongst hundreds of the long flights and longer drives we have been together over the last six years.

As each of them, this was as special too. Three incidents/discussions in particular will be "lasting memories of our last trip".
First, Dr. Kalam was absolutely worried about the attacks in Punjab. The loss of innocent lives left him filled with sorrow. The topic of lecture at IIM Shillong was Creating a Livable Planet Earth. He related the incident to the topic and said, "It seems the manmade forces are as big a threat to the livability of earth as pollution". We discussed on how, if this trend of violence, pollution and reckless human action continues we will forced to leave earth. "Thirty years, at this rate, maybe", he said. "You guys must do something about it... it is going to be your future world"

Our second discussion was more national. For the past two days, Dr. Kalam was worried that time and again Parliament, the supreme institution of democracy, was dysfunctional. He said, "I have seen two different governments in my tenure. I have seen more after that. This disruption just keeps happening. It is not right. I really need to find out a way to ensure that the parliament works on developmental politics." He then asked me to prepare a surprise assignment question for the students at IIM Shillong, which he would give them only at the end of the lecture. He wanted them to suggest three innovative ways to make Parliament more productive and vibrant. Then, after a while he returned on it. "But how can I ask them to give solutions if I don't have any myself".

For the next one hour, we thwarted options after options, to come up with his recommendation over the issue. We wanted to include this discussion in our upcoming book, Advantage India.
Third, was an experience from the beauty of his humility. We were in a convoy of 6-7 cars. Dr. Kalam and I were in the second car. Ahead of us was an open gypsy with three soldiers in it. Two of them were sitting on either side and one lean guy was standing atop, holding his gun. One hour into the road journey, Dr. Kalam said, "Why is he standing? He will get tired. This is like punishment. Can you ask a wireless message to be given that he may sit?" I had to convince him, he has been probably instructed to keep standing for better security. He did not relent. We tried radio messaging, that did not work. For the next 1.5 hours of the journey, he reminded me thrice to see if I can hand signal him to sit down. Finally, realizing there is little we can do - he told me, "I want to meet him and thank him". Later, when we landed in IIM Shillong, I went inquiring through security people and got hold of the standing guy. I took him inside and Dr. Kalam greeted him. He shook his hand, said thank you buddy. "Are you tired? Would you like something to eat? I am sorry you had to stand so long because of me". The young lean guard, draped in black cloth, was surprised at the treatment. He lost words, just said, "Sir, aapke liye to 6 ghante bhi khade rahenge".

After this, we went to the lecture hall. He did not want to be late for the lecture. "Students should never be made to wait", he always said. I quickly set up his mike, briefed on final lecture and took position on the computers. As I pinned his mike, he smiled and said, "Funny guy! Are you doing well?" 'Funny guy', when said by Kalam could mean a variety of things, depending on the tone and your own assessment. It could mean, you have done well, you have messed up something, you should listen to him or just that you have been plain naive or he was just being jovial. Over six years I had learnt to interpret Funny Guy like the back of my palm. This time it was the last case.
"Funny guy! Are you doing well?" he said. I smiled back, "Yes". Those were the last words he said. Two minutes into the speech, sitting behind him, I heard a long pause after completing one sentence. I looked at him, he fell down.

We picked him up. As the doctor rushed, we tried whatever we could. I will never forget the look in his three-quarter closed eyes and I held his head with one hand and tried reviving with whatever I could. His hands clenched, curled onto my finger. There was stillness on his face and those wise eyes were motionlessly radiating wisdom. He never said a word. He did not show pain, only purpose was visible.

In five minutes, we were in the nearest hospital. In another few minutes, they indicated the Missile Man had flown away, forever. I touched his feet, one last time. Adieu old friend! Grand mentor! See you in my thoughts and meet in the next birth.

As I turned back, a closet of thoughts opened.

Often he would ask me, "You are young, decide what will you like to be remembered for?" I kept thinking of new impressive answers, till one day I gave up and resorted to tit-for-tat. I asked him back, "First you tell me, what will you like to be remembered for? President, Scientist, Writer, Missile man, India 2020, Target 3 billion.... What?" I thought I had made the question easier by giving options, but he sprang on me a surprise. "Teacher", he said.

Then something he said two weeks back when we were discussing about his missile-time friends. He said, "Children need to take care of their parents. It is sad that sometimes this is not happening". He paused and said, "Two things. Elders must also do. Never leave wealth at your deathbed - that leaves a fighting family. Second, one is blessed if one can die working, standing tall without any long-drawn ailing. 
Goodbyes should be short, really short".

Today, I look back - he took the final journey, teaching, what he always wanted to be remembered doing. And, till his final moment he was standing, working and lecturing. He left us, as a great teacher, standing tall. He leaves the world with nothing accumulated in his account but loads of wishes and love of people. He was successful, even in his end.

Will miss all the lunches and dinners we had together, will miss all the times you surprised me with your humility and startled me with your curiosity, will miss the lessons of life you taught in action and words, will miss our struggles to race to make into flights, our trips, our long debates. You gave me dreams, you showed me dreams need to be impossible, for anything else is a compromise to my own ability. The man is gone, the mission lives on. Long live Kalam.

Your indebted student,
Srijan Pal Singh





मंगलवार, 28 जुलाई 2015

जन-जन को तुम दे गये , नए-नएआयाम । बारम्बार तुम्हें नमन,भारत रत्न कलाम ।।




अपना सौ फीसद कर्म को दो। खुद को पहचानो ,खुद में यकीन रखो ,अपने 'स्व' रीअल- आई की शिनाख्त करो ,सुनिचित करो जीवन  के लिए लक्ष्य और जीवन का लक्ष्य। सीखो अपनी नाकामयाबियों से ग्रहण करो उन्हें प्रसाद रूप में।गीता के व्यावहारिक कर्म योग ,जीवन के विज्ञान का यही सन्देश हर दिल अज़ीमतर ऐपीजे अब्दुल कलाम साहब देकर गए हैं गोलोक। हर क्षण तुम कर्म करते हो सोते जागतेउठते बैठते ,पालक झपकते।  अपना प्रिय कर्म अध्यापन करते ही आप आगे की यात्रा पे निकल गए हैं,कहते हुए जीवन आगे की ओर है।

ये आकस्मिक नहीं है कि आप नित्यप्रति गीता का अध्ययन अनुशीलन करते थे। आप सच्चे कर्मयोगी थे हम सबके आध्यात्मिक कम्पास।

जन-जन को तुम दे गये , नए-नएआयाम ।
बारम्बार तुम्हें नमन,भारत रत्न कलाम ।।

हाज़िर है आपको आखिरी सलाम कलाम साहब :-
लाज़िमी है आँख नम होना किसी का प्यार में।
खासकर जब आदमी अच्छा लगे व्यवहार में। ।
आपने कुछ ख़ास ही दिल में बना ली थी जगह,
आप जैसे लोग अब मिलते कहाँ संसार में। ।
-कुँवर कुसुमेश


यज्ञ को ज़ारी रखने के लिए अब उसे कोई और व्यक्ति हव्यसामिग्री के रूप में चाहिए जिसे समिधा के रूप में इस्तेमाल करके वह एक बार फिर कह सके ओम स्वाहा

ये स्पोक्स पर्सन क्या बला है साहब ?

पंडिताऊ भाषा में बात करें तो यह कोई ऐसा व्यक्ति होता है जो किसी  और व्यक्ति या संस्था द्वारा उसकी

तरफ


से बोलने के लिए अधिकृत किया जाता है।स्पोक्समैन तथा स्पोक्सवुमेन इसके पर्यायवाची समानार्थक शब्द हैं

लेकिन स्पोक्सपर्सन पुरुष और स्त्री दोनों के लिए प्रयुक्त हो सकता है।

वैसे वकील भी यही काम करता है वह अपने मुवक्किल का प्रवक्ता ही तो होता है। बात वह  न्याय दिलवाने की

करता है लेकिन इसका झुकाव और इसके आर्थिक हित  सीधे सीधे अपने मवक्किल से जुड़े होते हैं।

राजनीति में एक शब्द चिरकुट भी चल पड़ा है प्रवक्ता के लिए।

किसी संस्था का प्रबंधक भी यही काम करता है स्वागत अधिकारी भी। सांस्थानिक प्रवक्ता कई मर्तबा मन

मसोस कर ऐसी बात भी बोलता है जो उसके अपने हितों के खिलाफ जाती है। नौकर जो ठहरा संस्था विशेष

का। राजनीति में तो अक्सर ये होता है.गनीमत है शशि थरूर को सोनिया कांग्रेस ने कांग्रेसी प्रवक्त नहीं बनाया

वरना वह अपनी साफगोई के चलते  उनके गले की हड्डी बनके रह  जाते।

बात घर परिवार की  करें तो घर घर में किस्म किस्म के प्रवक्ता मौजूद हैं।पति को अपना सिरबचाने के लिए

अक्सर ये रोल अदा करना पड़ता है।पूछा जा सकता है क्या पत्नी गूंगी है या राजनीति के सोनियातत्व से

प्रभावित है।

ऐसे प्रवक्ता को (पत्नी के प्रतिनिधिक और पत्नी द्वारा अधिकृत व्यक्ति को जो रिश्ते में उसका पति होता है

लोग तरह तरह के अलंकरण से विभूषित  करते हैं। कुछ बानगियाँ देखिये :

बीवी का पिस्सू ,जोरू का गुलाम ,बीवी का चमचा,बीवी का हिमायती ,बीवी का तरफदार ,बीवी का दल्ला।

कई समाज विज्ञानियों के अनुसार घर में  चलने वाली कुटिल राजनीति का एक पुर्जा बनके रह जाता है कथित

प्रवक्ता  जिसका अपना व्यक्तित्व इस प्रक्रिया में स्वाहा हो जाता है।अक्सर बीवी द्वारा प्रायोजित राजनीति

के यज्ञ में वह बेचारा हव्य सामग्री बनके रह जाता है।यज्ञ को ज़ारी रखने के लिए अब उसे कोई और व्यक्ति हव्यसामिग्री

के रूप में   चाहिए जिसे समिधा के रूप में इस्तेमाल करके वह कह सके ओम स्वाहा  और इस



सांस्कृतक क्रिया को आगे बढ़ा सके। बीवी का प्रवक्ता चाकर या पिस्सू यही तो सांस्कृतक कर्म करता रहता है।

आपने कुछ ख़ास ही दिल में बना ली थी जगह,

हाज़िर है आपको आखिरी सलाम कलाम साहब :-

लाज़िमी है आँख नम होना किसी का प्यार में। 
खासकर जब आदमी अच्छा लगे व्यवहार में। । 
आपने कुछ ख़ास ही दिल में बना ली थी जगह,
आप जैसे  लोग  अब  मिलते  कहाँ संसार में। । 
-कुँवर कुसुमेश 



Poonam Lakhanpal Sharma की फ़ोटो.


श्रद्धांजलि मिसाइल मैन! सादगी और विनम्रता की प्रतिमूर्ति कलाम साहब सदैव हमारे प्रेरणास्रोत 

रहेंगे 

आप सही अर्थों में सेकुलर थे ,

न हिन्दू न मुसलमान ,एक हर दिल अज़ीमतर इंसान। 

सलाम कलाम साहब। 

आप ताउम्र एक टीचर रहे। आप  गोलोक ऐसे गए जैसे कोई व्यक्ति मृत्यु के वक्त भी कोई यात्रा कर रहा हो -शिक्षा की यात्रा। आप शिक्षक के रूप में रहे शिक्षक के रूप में गए। आप को देखने मिलने का मुझे तब सौभाग्य मिला  जब आप नेवी बाग नै दिल्ली में एक बाराती के रूप बरात में आये हैदराबाद से आई थी वह बरात आप तब डिफेन्स रिसर्च डिफेन्स ओर्गेनाइज़ेशन के मुखिया थे ,प्रधानमन्त्री के सुरक्षा सलाहकार भी थे। खुलकर एक आम आदमी की तरह आपने बात की कहने लगे आज दूल्हा मैं नहीं दूल्हे की ओर  इशारा करते हुए बोले - वह है। 

आप ने ताउम्र हर भारतीय का सम्मान किया -महात्मा गांधी की समाधि पर जब भी आप रीथ चढाने गए जूते के फीते आपने खुद खोले -लीक से हटकर ,परम्परा है राष्ट्रपति के जूतों के फीते इस बाबत नियुक्त व्यक्ति ही खोलता है। आप अक्सर कहते किसी भी देश की सिविलिटी ,नागर बोध का स्तर उस मुल्क में महिलाओां को मिलने वाली तवज्जो से मापा जा सकता है।

बच्चों से जुड़ने में उन्हें प्रेरित करने में आप की विशेष रूचि थे। आप अक्सर कहते महान खाब देखो और फिर उसकी प्राप्ति के लिए अनथक

प्रयत्न करो। 

आप सही अर्थों में सेकुलर थे ,  

न हिन्दू न मुसलमान ,एक हर दिल अज़ीमतर इंसान। 

  सलाम कलाम साहब।