मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

सही या ग़लत क्लिक करेंकांग्रेस की पहचान घपलों-घोटालों के साथ रूढ़ हो गई है. प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू और पूर्व कोयला सचिव पीसी परख की दो किताबों ने आग में घी का काम किया.

BJP will destroy Indian ethos: Sonia Gandhi to nation


New Delhi: Congress president Sonia Gandhi on Monday night broadcast an appeal on various TV channels saying that the current Lok Sabha elections was a fight to protect "the very heart and soul of India" from those who want to divide the people of this country. 

Without naming either Narendra Modi or the BJP in her telecast, Gandhi said, "We want unity. They want to impose uniformity. They say, 'Just believe in ME rpt ME'". 

Observing that Love and Respect, Harmony and Brotherhood--in a word, Non-violence--are the very heart and soul of our motherland, Gandhi said, "It is this, the very heart and soul of India, that we are fighting to protect in this election, from those who seek to change it, and to divide us."

In the strongest-ever attack on BJP in the current campaign, Gandhi appealed to people to defeat "divisive and autocratic" forces which will "destroy" the Indian ethos. 

The appeal for support to Congress saw Gandhi launch an all-out attack on BJP saying its vision is "clouded with hatred and falsehood" and its ideology is "divisive and autocratic". 

"Their vision, clouded with hatred and falsehood, their ideology - divisive and autocratic, will drive us to the ruination of our 'Bharatiyata' and 'Hindustaniat'," she said. 

Gandhi said, "We are fighting in this election for a future where power is not the preserve of a select few but exercised by the many."

"Today, our society stands at a crossroads. The Congress ideology and vision will continue to take us towards a healthy, free democracy, open to the life of change and transformation," Gandhi said in her appeal. 

Congress is fighting one of its toughest battles after being in power for ten years that has brought in anti- incumbency, forcing the party to fight with its back to the wall. 

Gandhi's appeal in the form of a short televised speech in multiple channels was made both in Hindi and English. 

It was said to be telecast as an advertisement by the TV channels. 

Sonia Has Given 'Farewell Speech': BJP


Picking on Sonia Gandhi's televised appeal to voters, BJP today said it is a "farewell speech" of an exhausted Congress and reflects her realisation that her son Rahul Gandhi has not clicked on the election front and she needs to take charge.

"All of a sudden Sonia Gandhi has come to the fore to take charge of the (election) campaign. She had thought that her son would do something. But when nothing happened. What could she do? The mother herself had to come to the fore, appear on TV to deliver advertised messages to the nation," Narendra Modi said addressing a rally in Bhagalpur.

BJP Spokesperson Prakash Javadekar said, "Sonia Gandhi's appeal on television yesterday was a farewell speech of an exhausted Congress. It was clear display of an effort to create a fear psychosis amongst the voters about the BJP and Sh Modi. It also connotes a shift of campaign leadership from Rahul Gandhi to Sonia Gandhi and a tacit admission that Rahul has not clicked."

He said, "It was full of hypocrisy. She talked about giving power to the people but has deprived the PM of his powers, which stands exposed by two recent books written by the former aides of the PM, Manmohan Singh."

BJP also hit out at the ruling party using revelations made in the two recent books by the PM's aides that the Prime Minister did not enjoy his powers and said Sonia's speech is "full of hypocricy".

Attacking the Congress President for accusing BJP of being divisive and communal, Javadekar said, the track record shows that the Congress is the "most communal and divisive party".

Modi also hit out at Sonia saying, "You must have seen this paid news. They have lots of money, they can buy TV (channels), they can buy time on TV and tell what they want to say."

Sonia Gandhi had last night appealed to people to defeat "divisive and autocratic" forces which will "destroy" the Indian ethos.

Modi said when Gandhi says her party respects democratic traditions, it is something that cannot be easily digested.

"In 2004, when your (Congress) government was formed, what was your first action? Without following any democratic practice or without consulting any Chief Minister, you removed governors. Is this a sample of you honouring democratic traditions?"

The Gujarat Chief Minister also accused the Congress of creating tensions between IB and CBI for its political objectives.

सोनिया के भावुक वीडियो संदेश के मायने


सोनिया गांधी
सोमवार की रात देश के कई सारे महत्वपूर्ण चैनलों से प्रसारित कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की वीडियो अपील को सामान्य चुनाव प्रचार से अलग करके देखा जाना चाहिए.

चुनाव के चार चरण पूरे होने और 110 सीटों यानी लगभग 20 फीसदी का फैसला ईवीएम में बंद हो जाने के बाद यह अपील सामने खड़ी पराजय को टालने की कोशिश में आखि़री आवाज़ जैसी लगती है.
यह अपील केवल इस बात पर केंद्रित नहीं थी कि कांग्रेस को जिताओ, बल्कि इस बात पर थी कि भारतीय जनता पार्टी या दूसरे शब्दों में नरेंद्र मोदी को आने से रोको. हालांकि उन्होंने मोदी या भाजपा का नाम नहीं लिया, पर समझा जा सकता है कि निशाने पर कौन था.
उन्होंने कहा, उनके पास नफ़रत, लालच और निरंकुश सत्ता की भूख का अंधेरा है. उनकी क्लिक करेंविभाजनकारीऔर निरंकुश विचारधारा हमारी भारतीयता और हिंदुस्तानियत को पतन की ओर ले जाएगी. 'हम इस चुनाव में एक ऐसे भारत के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें सत्ता कुछ चंद लोगों की नहीं हो बल्कि जिस पर सबका बराबर अधिकार हो.'

आसन्न खतरे का संकेत

हिंदी और अंग्रेजी में उनका दो मिनट 58 सेकंड का यह वीडियो संदेश संभवतः विज्ञापन के रूप में जारी किया गया था. क्या इस अपील की योजना पहले से तैयार थी या अंतिम क्षणों में तैयार की गई?
इसे पीछे हटते सेनापति की ओर से वाणों की आख़िरी बौछार माना जाए या शत्रु-पक्ष के ख़िलाफ़ माहौल को बदलने की ताक़तवर कोशिश? बहरहाल अपनी उपलब्धियों से ज़्यादा ‘आसन्न ख़तरे’ का संकेत इस संदेश में छिपा दिखाई देता है.
भारतीय जनता पार्टी की प्रचार-मशीनरी शुरू से तीन बातों पर जोर दे रही है. एक यूपीए के शासन की विसंगतियों, भ्रष्टाचार की कथाओं और ‘कमज़ोर नेतृत्व’ को निशाना बनाना. दूसरे मोदी और गुजरात के नाम पर विकास को चुनाव का मुद्दा बनाना. हिन्दू राष्ट्रवाद को पार्टी ने सबसे निचली पायदान पर रखा है.

कांग्रेस की विसंगतियाँ


कांग्रेस की रणनीति कभी सुसंगत दिखाई नहीं पड़ी. पिछले साल जनवरी में कंडीशनल कैश ट्रांसफर का कार्यक्रम शुरू करते समय राहुल गांधी ने अपने सामाजिक विकास कार्यक्रम को 'गेम चेंजर' माना था.
पिछले दिसम्बर में आम आदमी पार्टी के उदय के बाद उन्होंने भ्रष्टाचार-विरोधी कानूनों और जनता से जुड़ाव को महत्वपूर्ण माना और प्रयोग के तौर पर अपनी पार्टी के भीतर कुछ प्रत्याशियों का चयन प्राइमरीज़ के आधार पर किया भी. पर यह सब किसी व्यापक सोच के रूप में सामने नहीं आया.
भाजपा और ख़ासतौर पर नरेंद्र मोदी की ‘साम्प्रदायिक छवि’ के आधार पर पार्टी ने मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में लाने की कोशिश भी की. पार्टी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि इस कोशिश से सामाजिक-ध्रुवीकरण विपरीत दिशा में भी बढ़ेगा. और अब देश की सामाजिक बहुलता के बाबत सोनिया जी की अपील कितनी कारगर होगी, कहना मुश्किल है.

खुले आज़ाद समाज की परिकल्पना

सोनिया गांधी ने कहा, "हम इस चुनाव में एक ऐसे भारत के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें सत्ता कुछ चंद लोगों की नहीं हो बल्कि जिस पर सबका बराबर अधिकार हो. हमारा समाज एक दोराहे पर खड़ा है. कांग्रेस की विचारधारा एक स्वस्थ, खुले हुए आजाद समाज की कल्पना करती है जो नए जमाने की नई हवा में सांस ले."
यकीनन यह एक उदार और बहुल सामाजिक आधार वाले भारत की परिकल्पना है, पर क्या सामान्य वोटर क्लिक करेंसोनियाजी की बात पर भरोसा करता है? चुनाव के मौके पर संदेश से ज़्यादा संदेश देने वाले की साख महत्वपूर्ण है.
सही या ग़लत क्लिक करेंकांग्रेस की पहचान घपलों-घोटालों के साथ रूढ़ हो गई है. प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू और पूर्व कोयला सचिव पीसी परख की दो किताबों ने आग में घी का काम किया.
भारत में चुनाव
कांग्रेस पार्टी ने अपने तईं माहौल सुधारने की भरपूर कोशिश की है, पर पिछले तीन साल से लगातार बनती जा रही समझ इतनी आसानी से बदली नहीं जा सकेगी. प्रश्न यह है कि कांग्रेस को लेकर यह समझ पैदा क्यों हुई?

सवाल विश्वसनीयता का है

मान लेते हैं कि इन किताबों का प्रकाशन इस मौके पर सोच-समझकर किया गया है. पर हमला करने वाला पक्ष कांग्रेस की सुविधा देखकर तो काम नहीं करेगा. सवाल उसकी विश्वसनीयता का भी है. वोटर उसकी बात से आश्वस्त है या नहीं इसका पता 16 मई को लगेगा.
नौ चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा 122 सीटों का पाँचवाँ दौर 17 अप्रेल को है. शायद वे उसके पहले अपनी बात कहना चाहती हैं.
लेकिन यह बात चेतावनी के रूप में कही गई है. पिछले हफ़्ते देश-विदेश के कई अख़बारों में सम्पादकीय लेखों और लेखकों-कलाकारों के पत्रों के रूप में भी यह चेतावनी दी गई है.

अंतिम क्षणों में माहौल बदलने की कोशिश

शायद पार्टी को लगता है कि अंतिम क्षणों में भी माहौल बदला जा सकता है. हाल में अमेठी में राहुल गांधी ने कहा था कि चुनावी सर्वे ग़लत साबित होंगे.
एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "ओवरऑल काफी ठीक चल रहा है और रिजल्‍ट अच्‍छा आना चाहिए...ओपिनियन पोल 2004 में कह रहे थे कि कांग्रेस पार्टी हारेगी, इंडिया शाइनिंग का मार्केटिंग कैंपेन था. 2009 में भी ओपिनियन पोल में यही कहा गया और रिजल्‍ट दूसरा ही निकला. बीजेपी की मार्केटिंग अच्‍छी है, पर अंत में रिजल्‍ट देखने चाहिए."
इस बात के विपरीत ख़बर है कि कांग्रेस पार्टी के आंतरिक सर्वेक्षण में भी ज़्यादा से ज़्यादा 120 से 140 तक सीटें हासिल होने की उम्मीद जताई गई है.
पार्टी को केवल चार राज्यों में कुछ बेहतर परिणाम मिलने की आशा है. ये राज्य हैं असम, कर्नाटक, केरल और पंजाब. पिछले दिसम्बर में चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी को जबर्दस्त पराजय का सामना करना पड़ा था.

मध्य वर्ग से अपील

सोनिया गांधी और राहुल गांधी
देश के सबसे ग़रीब और अशिक्षित वर्ग तक राजनीति की पहुँच आज भी बिचौलियों के मार्फ़त है.
पर सोनिया गांधी के वीडियो संदेश, राहुल गांधी के टीवी इंटरव्यू और नरेंद्र मोदी की मीडिया अदालत शहरी मध्य वर्ग को संबोधित हैं. इस वर्ग की भूमिका भारतीय चुनाव में बढ़ती जा रही है. पिछले साल के अंत में हुए चार विधानसभा चुनावों ने उसकी इस भूमिका को रेखांकित किया था.
यह विचारवान वर्ग है. यही वर्ग साम्प्रदायिकता और जातिवाद के खिलाफ खड़ा होगा. उसे आश्वस्त करने के लिए राजनीतिक दलों की शब्दावली दुरुस्त होनी चाहिए. खासतौर से कुछ शब्दों को हमेशा के लिए इस्तेमाल से बाहर करना होगा.
तीन महीने पहले देश की राजनीति का जो माहौल था, वह चुनाव के एक हफ्ते पहले बदल गया. इसका एक कारण यह भी है कि पार्टियों की परम्परागत समझ कुछ और है. सोनिया गांधी के इस संदेश ने औपचारिक रूप से जिन मूल्यों को रेखांकित किया, उनसे वोटर सहमत है या नहीं, यह बात वही बताएगा. यह बताने का उसके पास एक ही तरीका है - वोट.






1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

राजनीति में जो न हो वो कम है ...