अनिल भाई ही नहीं हम सबकी आज यही नियति है- लिए बैठे हैं सबके सब एक आशंकित मन भले कुछ अपवाद हैं वेषधारी किसान जो अपवाद हैं नियम नहीं हैं। बे -खौफ बैठे हैं कुंडली मारे कुछ लोग क्या कर लेगा कोरोना फोराना। आहट आ चुकी है सिंघु बॉर्डर पर अदृश्य हाथों की साइलेंट किलर की आगाह करती है यह कविता खोलती है एक मानसिक कुंहासा मन की परतों का।
अतिथि कविता :अनिल गांधी
मैं डरा हूँसहमा हूँ
उन हाँथों से
जो आते नहीं नज़र
फिर भी
लिए बैठे हैं ख़ंजर
मैं डरा हूँ
सहमा हूँ
उन आँखों से
जो लगाए बैठी हैं
टकटकी
कि कब आए मुझे
झबकी
मैं डरा हूँ
सहमा हूँ
उन साँसो से
जिनका चलना ही
मेरा ढलना है
मैं डरा हूँ
सहमा हूँ
उन क़दमों से
जिनका दबे पाँव आना
ही
होगा मेरा जाना
मैं डरा हूँ
सहमा हूँ
उस आवाज़ से
जो देती नहीं सुनाई
रोके न रुकूँ
कहते कहते मैं
दुहाई है दुहाई
मैं डरा हूँ
सहमा हूँ
उन दिमाग़ों से
जो हैं कुख्यात
परेंशा कौन नहीं उनसे
इंसा मामूली और सुविख्यात
वो जो खोजी हैं
खोजते रहते हैं
वजह में बेवजह
बेवजह में वजह की खोज
हमको भी बतला दें ज़रा
क्या यही है ज़िन्दगी
या एक बोझ?
अनिल गांधी
बाइस सितंबर,2019सितम्बर २०१९ में लिखी मेरी कविता शायद आज अधिक प्रासंगिक है
अनिल गांधी राज्य सभा सचिवालय में संयुक्त सचिव पद से सेवा निवृत्त हुए हैं । बहुगुणी प्रतिभा के धनी अनिल एक साहित्य कर्मी हैं। रंगमंच के बीज लेकर पैदा हुए हैं आवाज़ में उनकी एक अभिनय है।
आकाशवाणी में (१९९१ -९५ )की अवधि में एग्ज़िक्युटिव (कार्यक्रम निदेशक )के पद पर रहते हुए आप साहित्य कला और रंगमंच (संस्कृति )से जुड़े रहे हैं। लिटिल थियेटर ग्रुप (LTG )नाट्यमंडल से आप सक्रिय रूप लम्बी अवधि तक जुड़े रहे हैं।लोकप्रिय विज्ञान लेखन को भी आपने संवर्धित किया है। दूरदर्शन महानिदेशालय में आपने बतौर उपमहानिदेशक(प्रशासन )काम किया है। आपका सफर एक टीचर के बतौर शुरू हुआ जो आदिनांक कदम ताल करता अब दुलकी चाल से आगे बढ़ रहा है। वेब्ज़सीरीज़ ' फ्रीडम' में आप अभिनीत हुए हैं। कहानी काव्य से आगे निकल आपने ''ब्यूरोक्रेसी का बिगुल और शहनाई प्यार की' बेहद दिलचस्प हमारे वक्त का कथानक लिए एक उपन्यास परोसा है।मैं उनके इसी रफ़्तार आगे बढ़ने की बलवती इच्छा लिए हुए हूँ।
उपन्यास प्राप्त करने के लिए लिखें :
anilgandhi58@hotmail.com
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