सोमवार, 4 दिसंबर 2017

Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - Day 3 (Part ll )

शास्त्र कहते हैं धन्य वही है जिसने अपने मनोविकार जीत लिए हैं। जहां 'परदोष -दर्शन 'का अभाव है वहां ऐसी सामर्थ्य पनपने लगती है।जिसकी प्रकृति में अनिन्दता आ गई है वही ईश्वर को प्रिय है। स्वयं भगवान् कहते हैं अनेक स्थानों पर ,मैं उसका अनुगत हो जाता हूँ जहां अहमन्यता खो गई है। जहां करता पन का भाव और अहंकार साधक से दूर चला गया है। मैं ऐसे साधक के अनुगत हो जाता हूँ। जिसका अंत :करण द्वेष रहित है। 

किसी की उन्नति ,उच्च पदस्थता अज्ञानी के मन में द्वेष पैदा करती है।अकारण ही ईर्ष्या पैदा हो जाती है।  दूरियां वहां दिखतीं हैं जहां अज्ञानता है। इसलिए किसी के उन्नयन ,उन्नति ,उत्कर्ष में अज्ञानी ईर्ष्या से भर जाता है। द्वेष उसके पास रहता है। अज्ञान की अवस्था में हम अधिक अपेक्षा करने लगते हैं। उनसे जिनके पास सत्ता है अधिकार हैं विभूति है,वैभव है सम्पदा है ।और कभी कभी तो बिना पात्रता के ,सामर्थ्य के साधना के हम सब कुछ पा लेना चाहते हैं। ज़रा ऐसे मन की कल्पना तो करके देखिये ,जिसके पास न साधन हैं न पात्रता न अधिकार ,न श्रम लेकिन अपेक्षा इतनी है ,उनके पास से सब कुछ मिले तत्काल मिले उसे जिनके पास अधिकार हैं साधन हैं वैभव हैं सम्पन्नता है सत्ता है ।

ये अज्ञानी मन है। 

जो अधिक अपेक्षाएं करता है। 

और अगर आप अपने पास अधिक दुःख देखना चाहें ,दैन्य ,त्रास अभाव देखना चाहें तो वह इस कारण है ,हम अधिक अपेक्षा कर  रहें हैं दूसरों से।जिनके पास अधिक विभूतियाँ हैं वैभव हैं सत्ता है उनसे हमारी अपेक्षाएं हैं। और ध्यान रहे जो हमसे अधिक नहीं है उसकी उपेक्षा है।अज्ञानी मन वह है जो बहुत उपेक्षा करता है उनकी जिनके पास बहुत  साधन नहीं हैं। 

वो मुझे अपने कद के बराबर होने नहीं देता    

कतरे को समंदर  बनने नहीं देता   .

एक चिंता यह भी है वह दौड़ कर मेरे पास न आ जाए। मेरे पास जो है यह लोकसंग्रह इसका न बन जाए।यही अज्ञानी मन है।

शांत वही है जो अजात शत्रु है।    

धन्य वही है जिसने दूसरे का दर्द देखा है। 

परोपकार पुण्याय 

लोगों के कांटे निकालो 

तूने केवल अपना ही दुःख देखा है ,

सचमुच कितना कम देखा है। 

धन्य वह है जो दूसरों के भाव ,भय अक्षमता दारिद्र्य के दर्शन करे।

जो मुझे अच्छा नहीं लगता वह दूसरों के साथ न करूँ। 

और सच पूछो तो राम क्या हैं ?

(अब हम  कथा में प्रवेश कर रहे हैं ) 

जो सद्गुणों को जागृत करती है वह राम कथा है :कथा हमें  श्रेष्ठता प्रदान करती है। धन्यता ,पूज्यता पैदा करती है। 

राम इस राष्ट्र का चरित्र हैं  शील -संयम हैं , सदाचार नैतिकता हैं मर्यादा  हैं । कृष्ण इस राष्ट्र का माधुर्य हैं दर्शन हैं। वह इस देश का कवि है पंडित है ,दार्शनिक है यौद्धा है मनीषी है। 

जग में सुन्दर हैं दो नाम 

चाहे कृष्ण कहो या राम।

राम इस देश की मर्यादा हैं। ऋषि बड़े चिंतित हुए यह जानकर के बहु -उपासनाएँ हमारे आसपास हैं। 

राम बहुत कम बोले हैं मानस में ,उनका कृतित्व है जिससे मर्यादा झलकती  है। सफलतम व्यक्ति वह है जो मुखर नहीं है। उनके अधरों पर मुस्कान और चेहरे पर एक सहज स्वाभाविक मौन रहता है। 

जो बहुत अधिक बोल रहा है ,चपल है ,वह अभी सफलता की ओर है सफल नहीं हुआ है।

सफलता के बाद एक और सीढ़ी है उसका नाम है सार्थकता और उसके बाद भी एक और सीढ़ी है - ,कृतकृत्यता।  आपका जीवन आदर्श बन गया है वह कैसे पता चलेगा। आपके संवाद से पता चलेगा।
इस युग में बहुत बोला जा रहा है सुना बहुत कम जा रहा है।

इस जहां में हर किसी का अपना अपना आसमाँ ,

कह रहा है हर कोई अपने जुनूँ की दास्ताँ। 

जो हम में गहरे आग्रह हैं हठधर्मिता है वह अभिव्यक्त हो रही है हमारी हड़बड़ी में ,प्रतिक्रिया  देने की हड़बड़ी में।

सफलतम व्यक्ति की प्रतिक्रिया से कोई आहत नहीं हो सकता।सफल व्यक्ति वह है जिसे संवाद करना आता है बोलना आता है। बोलना सिर्फ कोई कला नहीं है यह आपका अध्ययन है जो निकल के आता है।

जब भी बोलिये ,वक्त पे बोलिये ,

मुख़्तसर बोलिये ,मुद्दतों सोचिए।

आपका बोलना किसी को समाधान दे ,आदर दे ,उसे लघुता न दे। कागा अतिथि के मन को पढ़ लेता है उसके सकल अंत :करण को अतिथि के आने की आहट  लग जाती है। कोयल अभाव के वियोग के गीत गा  रही है। वह वियोग हमें मीठा लगता है क्योंकि उसे मीठा बोलना आता है। कागा को नहीं आता जबकि वह मिलन की बात कह रहा है अतिथि के आगमन की आहट  बतला रहा है लेकिन उसे मीठा बोलना नहीं आता  हम उसे कंकर मार के  उड़ा देते  हैं।कागा भी उस विरह के स्वर से कभी नहीं रीझता। वह अपने प्रियतम को पुकार रही है बालक को ढूंढ रही है वह हूक है उसकी लेकिन उसे वियोग में भी मीठा बोलना आता है। कागा को नहीं आता है। 

वेद कहते हैं बोलना सीखिए।रामकथा हमें बोलना सिखाती है। 

बलि जाऊं  लला इन बोलन की  -तुलसीदास आगे चलके कहते हैं। 

हमारे नैन पहले बोलते हैं ,रोम बोलते हैं।रोम -रोम बोलता है हमारा।  रोमकूप से स्वर निकलते हैं ,स्वेद बोलता है हमारा । पूरा शरीर बोलता है हमारा। 

हृदय की अपनी भाषा है।

 बुद्धि की अलग भाषा है। 

इसी से नवरस पैदा हुए हैं।नवरसों की कल्पना पैदा हुई है। 

तो एक बड़ा व्यक्तित्व आपको बनाना है और व्यक्तित्व भी 

चार प्रकार के हैं :

(१ )एक आपका जड़ व्यक्तित्व है 

(२ )भौतिकीय  व्यक्तित्व -वर्ण ,कपोल ,देहकांति ,आपके नैन -नक्श ,केश , आकृति ,वस्त्र ,आभूषण आदि यह आपका बाहरी व्यक्तित्व है। 

(३ )सूक्ष्म या भावुक व्यक्तित्व -इससे गुरु परम्परा ,भाषा ,अध्ययन ,आपके चिंतन आपके सारे संस्कार ,आपकी स्थिति आदि का बोध होता है। 


(४ ) आध्यात्मिक व्यक्तित्व -जिसमें व्यक्ति अन  -अपेक्ष  रहता है।स्वाभाविक रूप से संयमित रहता है इसमें व्यक्ति ,भावुक नहीं होता है । शांत रहता है। याचक नहीं होता है। 

एक आत्म व्यक्तित्व है जो आप स्वयं हैं ।  

एक आपका बाहरी व्यक्तित्व है जो आपके वस्त्र ,आभूषण ,वर्ण से प्रकट होता है एक आपका सूक्ष्म  व्यक्तित्व  है। 

वह मुखर होता है जब आप बोलते हैं। तब आपका बाहरी व्यक्तित्व गौण हो जाता है । भाषा से आपके बोल से आपका अध्ययन प्रकट हो जाता है चिंतन सामने आ जाता है। संस्कार आपकी स्थिति सामने आ जाती है। 

तुलसीदास ने राम के कम बोलने  से आरम्भ की है बाल (बाल्य )कथा -भगवान् के बाल रूप  की बाल लीलाओं का बखान करते हुए तुलसीदास लिखते हैं :

वरदंत की पंगत कुंद  कली ,

अधराधर पल्लव खोलन की। 

चपला चमके घन बीच जगे ,

छवि मोतिन  माल ,अमोलन की। 

घुंघरारे  लटा    लटकें ,

मुख ऊपर  ,लोल कपोलन की। 



न्योंछावर प्राण करें  तुलसी ,

बलि जाऊँ लला, इन बोलन की.

जैसे काले मेघों ,मेघाच्छन्न आकाश में अचानक  बिजली चमकती हो  ऐसे ही भगवान् के श्याम वर्ण के मुखमंडल के बीच में बिजली की चमक सी उनकी धवल दन्तावली लगती है जब भगवान मुस्कुराते हैं तब।  

आपके स्वर में देने के भाव हों ,दूसरों के लिए आदर हो ,छीनने की प्रवृत्ति न हो। यही सन्देश है राम कथा का। 


(शेष अगले अंक में .... )






सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )https://www.youtube.com/watch?v=kxb17bPyUpM

(२  )




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