गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

कलि -संतरणोपनिषद -कृष्ण द्वयपायन व्यास



कलिसांतरणोपनिषद -कृष्ण  द्वयपायन व्यास 

मंत्र संख्या एक (श्लोक -एक )TEXT NO 1 

हरि ॐ द्वापरंते नारदो ब्रह्माणं जगाम ,

कथं भगवन गाम पर्यटनकलिम संतरेयमिति 

भाव सार :
द्वापर युग के अंत में सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण करते हुए नारद मुनि ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उनसे पूछने लगे -भगवन इस कलिकाल में मैं कैसे भवसागर से पार अच्छी तरह  उतर  सकता हूँ ? 

नारद जी  कृष्ण के सबसे बड़े भक्त हैं तथा ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं जब दुनिया भर में घूम  रहे थे उन्होंने देखा कलियुग में ज्यादातर लोग नास्तिक होते जा रहे हैं। एक पूर्ण परिशुद्ध वैष्णव के रूप में उनके मन में सबके प्रति करुणा जगी और उन्होंने तब  अपने गुरु ब्रह्मा जी से जानना चाहा -इस कलिकाल में वापस गौ  लोक वृन्दावन भगवान् के धाम जाने का क्या उपाय है।अपने निजस्वरूप को जान आत्मा का परमात्मा में लीन  होने का ,उसे जान उसका नित्यदास बनने का क्या उपाय है ?
यहां नारद यह सन्देश भी दे रहे हैं जब जीवन में कोई संशय आ जाए तो गुरु के पास पूरी विनम्रता के साथ  जाकर पूछने में संकोच न करना। गुरु शरीर नहीं है ज्ञान है मार्ग दर्शक है कलिकाल का जीपीएस है।वही शंका का समाधान करेगा। भगवान् के ओर ले जाने वाला मार्ग बतलायेगा।  
मन गढ़ंत किस्सा कहानी कहकर शिष्यों को बरगलाना कपट जाल रचना करके अपने मन की ही कहना शिष्यों को नर्क के रास्ते की ओर ही ले जाता है। 

एवं परम्परा के तहत चली आई गुरु परम्परा में सुपात्र श्रोत्रिय ब्रह्मज्ञानी गुरु ही सच्चा मार्ग दर्शक हो सकता है  ऐसे ही  आध्यात्मिक गुरु के पास अपनी जिज्ञासाएं लेकर जाइये।

कृष्ण द्वय-पायन व्यास मुनि (वेद व्यास )बतलाते हैं किसी भी शुभकार्य का आरम्भ हमें सब कुछ भगवान  को अर्पण करते हुए हरि  ॐ  उच्चचरित कर ही करना चाहिए। हरि ॐ में हरि सगुण ब्रह्म तथा ॐ निर्गुण दोनों को स्मरण में ले आता है। निर्गुण सगुण दो नहीं हैं एक ही हैं। वह एक ही परब्रह्म है। 
शब्दार्थ :

हरि -भगवान् का नाम है (विष्णु रूप कृष्ण ); 

 ॐ -पहली ध्वनि है जिससे इस विश्व की रचना हुई ;

जगाम -गए ,जाना ;

कथं -पूछना ;

भगवन -गुणवतार रूप कृष्ण ;

गम पर्यटन -विश्व भ्रमण ;

कलि -कलियुग ,कलिकाल ,मशीनी युग ;

संतरेयम -तैर कर पार उतरना ;

 इति-कैसे ,किस साधन से ,किस उपाय से ; 

1 टिप्पणी:

पुरुषोत्तम पाण्डेय ने कहा…

हरिओम तत्सत। आप्त वचन, आपकी लेखनी से पाकर आनन्दानुभूति हो रही है ।