अंग्रेजी भाषा का एक शब्द है :एग् -नास्ट -इक (Agnostic) मोटे अर्थों में ईश्वर की सत्ता में संशय रखने वाला व्यक्ति संशयवादी या फिर अज्ञेयवादी कहा जाता है।व्यापक अर्थों में ये एक ऐसा शख्श होता है जो यह मानता है ईश्वर के अस्तित्व के विषय में -या फिर ईश्वर के विषय में ही कि वह है भी या नहीं है इस बारे में किसी को कुछ भी न तो मालूम है और न ही निश्चित तौर पर मालूम ही किया जा सकता है।इस शख्शियत के अनुसार पदार्थ के अलावा अपदार्थ का किसी भी नान -मैटीरीयल फनामिना का जान लेना मुमकिन नहीं है।प्रकृति या समाज में कोई ऐसी घटना या सच्चाई जो पूरी तरह समझ में न आये फिनॉमिना कही जाती है।
अंग्रेजी ज़बान में ऐसे समझ लीजिये :
Agnostic is a person who believes that nothing is known or can be known of the existence or nature of God or of anything beyond material phenomena .An agnostic is a person who is uncertain or noncommittal about a certain thing .
Somebody who believes that it is impossible to know whether or not God exists can be called an agnostic .An agnostic person doubts that a question has has one correct answer or that something can be completely understood .
बहरसूरत हमारा मकसद इस शब्द की मार्फ़त कुछ व्यक्तियों की शिनाख्त करना है। आप भी इस निशानदेही में शामिल हो सकते हैं। आपको कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो अपने भाग्य का रोना रोते रहते हैं। एक ही सवाल आप से बार बार पूछेंगे और संतुष्ट नहीं होंगें अपनी खुद की बनाई धारणा पर ही कायम रहेंगे। मेरे एक बाल सखा है अक्सर पूछते हैं -मैं ब्रह्मपूरी में दुर्गाप्रसाद शर्मा के घर ही क्यों पैदा हुआ अजय और सरोज ,भूषन आदिक ही मेरे भाई क्यों हुए ,जिस कोख से मैं पैदा हुआ उसी से मेरी माँ ने इनको भी जन्म क्यों दिया मैं स्वर्ग में जाकर अम्मा से ये सवाल पूछुंगा।
साथ ही ये व्यक्ति यह भी कहते हैं की इन पर शनि की ग्रह चल रही है शनि बहुत टेढ़ा हुआ पड़ा है। यानी इन्हें शनि पे भरोसा है ईश्वर के अस्तित्व पर नहीं हैं।
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ,
जो जस करइ सो तस फल चाखा।
You can write your destiny by your actions .
कई मर्तबा उन्होंने ऊपरलिखित सवाल पूछा कई मर्तबा हमने यही कहा -
हमारा आज हमारे कल का ही संशोधित रूप है और हमारा आने वाला कल हमारे आज का ही संशोधित संस्करण होगा। हमारे ही अनंत कोटि जन्मों के कर्मों का परिणाम है हमारा वर्तमान ।
कर्म भी तीन प्रकार के हैं :प्रारब्ध कर्म ,क्रियमाण या फिर आगामी कर्म और संचित कर्म।
वह जो महालेखाकार हमारे हृदय में जन्म जन्मान्तरों से बैठा है और हरेक जन्म में हमारे साथ अनंतकाल से रहा आया है। वह सब हिसाब रखे है। उसके यहां रिश्वत नहीं चलती। निर्मम तटस्थ फलदाता है वह। कर्म ही हमारे हाथ में है। फलदाता वही है। हमारे जन्मजमान्तरों के अनंत कोटि जन्मों के कर्मों का कुलजमा जोड़ संचित कर्म कहलाता है। हमें इस संचित कर्म का एक हिस्सा देकर परमात्मा हमारी माँ के गर्भ में जहां माँ -बाप का दिया हमारा केवल शरीर पनप रहा होता है भेजता है। यही कर्म प्रारब्ध कर्म हैं जिनका परिणाम तो हमें भुगतना ही भुगतना पड़ेगा। इसे ही लोग प्रारब्ध कह देते हैं भाग्य का लेखा कह देते हैं।
कर्मगति टारे न टरि ,मुनि वशिष्ठ से पंडित ग्यानी ,
सोध के लगन धरि ,सीता हरण मरण दसरथ को ,
बन में बिपति परि ,सीता को हर ले गया रावण ,
सोने की लंका जरि ,कहे कबीर सुनो भाई साधौ ,
होनी होकै रही।
तो ज़नाब प्रारब्ध के बारे में ही यह कहा गया है होनी बड़ी बलवान ,होनी को कौन टाल सका है।
तुलसी भरोसे राम के रह्यो खाट पे सोय,
अनहोनी होनी नहीं होनी होय सो होय।
और यह भी जाको राखे साइयां मार सके न कोय।
तो कह दो भैया झूठ है ये सब।
कई लोग हैं जो सबूत मांगते हैं हर चीज़ के होने का। उनके अनुसार जिस चीज़ को प्रेक्षण में नहीं लिया जा सकता ,प्रयोगशाला में नहीं लाया परखा जा सकता इनके अनुसार उस चीज़ का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
एक मनोविज्ञानी है हिन्दुस्तान के पहले सौ मनोविज्ञानियों में ये शुमार हैं मेरे पूज्य मुंह बोले गुरु समान मित्र हैं आत्मा के नाम से छिटकते हैं कहतें हैं यार मैं एक्स्पेरीमेंटल साइकोलॉजिस्ट हूँ मुझे इस चक्कर में मत फँसाओ। और किन्हीं मुक्त क्षणों में इन्हीं पूज्य श्री ने मुझे एक रोज़ बतलाया था वीरू मनोविज्ञान की पहली परिभाषा आत्मन विषयक ही थी -
Psychology is the science of Souls .Now he says if there is a Soul bring it to the laboratory .
प्रसंगवश बतलाते चलें -मेरे ये प्रश्नकर्ता मित्र रसायनशास्त्र में एमएससी ,एमफिल हैं। मैं स्वयं एमएससी फिजिक्स हूँ। कागज़ पर कलम घिस्सी किसी भी जनप्रिय विज्ञान लेखक से कम नहीं की है मैं ने भी।ब्रह्माण्डमंडल मेरा प्रिय विषय रहा है।
क्वांटम भौतिकी के अनुसार पदार्थ का अंतिम सत्य यह है :पदार्थ का अस्तित्व ही नहीं है।
Matter is just an appearance at the quantum level .
Minimum quantity of anything is called a quantum .E.g .the quantum of US currency is a pence .
सबसे बड़ा प्रमाण है शब्द प्रमाण। कृत (किसी मनुष्य द्वारा लिखित ,रचित ग्रन्थ ),स्मृत (श्रोत्रीय ब्रह्मविद् संतों द्वारा स्मृति संजोकर लिखे गए ग्रन्थ )और न्याय (वेद यानी शब्द प्रमाण ,स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा सबसे पहले ब्रह्मा के हृदय में रोपित अनन्तर एक श्रुति परम्परा के तहत आगे आये वेद इसीलिए वेदों को श्रुति तथा इनके मर्मज्ञ को श्रोत्रिय कहा जाता है ),भगवदगीता स्मृति ग्रन्थ भी है वेद भी है क्योंकि श्रीकृष्ण के मुख से कुरुक्षेत्र में कही गई सार रूप सब उपनिषदों की माँ है।
वेदों में कुल एक लाख मन्त्र हैं जिनमें अस्सी हज़ार कर्मकांड संबंधी सोलह हज़ार उपासना संबंधी तथा कुल चार हज़ार वेदों की ज्ञान काण्ड के तहत आये हैं। यही ज्ञानकाण्ड वेदों का ,वेदान्त या उपनिषद भी कहा गया है।
विज्ञान की सीमा है क्योंकि उसके सारे प्रॉब्स (अन्वेषी )भौतिक है पदार्थ के बने हैं। पदार्थ के बने यंत्रों प्राविधियों से ,रेडिओ दूरबीनों से आप दिव्य का अन्वेषण अनुसंधान नहीं कर सकते। आप तो एक इलेक्ट्रोन को भो लॉकेट नहीं कर सकते। विक्षोभ पैदा हो जाएगा उसकी अवस्थिति में आवेग में ,होने के समयांतराल में।
आत्मा और परमात्मा दोनों की सत्ता दिव्य है दोनों चेतन हैं भौतिक उपकरण जड़ हैं। जड़ से आप चेतन की टोह भी कैसे ले सकते हैं जानना तो बहुत बड़ी बात है।
यही हाल पदार्थ के अंतिम बुनियादी कणों (Fundamental particles )का है।
The so called fundamental particles are neither fundamental nor are they particles .They are like a newly assembled car which crashes at the factory gate during a trial .
you can only draw inference that there might be a particle which left its trail in a particle counter or detector .At times its life time is much less than a millinoth of a millionth of a millionth of millionth of a millionth of a second . Can you call it a particle .They say it is a wave of probability and yet you are so puffed up and with a fund of poor knowledge you often say if their is a God bring him into the laboratory .You don't say so about a particle ,the God paarticle boson ,you derive only inferences there too .
मन के मंदिर में प्रभु को बिठाना ,
बात हर किस के बसकी नहीं है।
ऐसा व्यक्ति संशयवादी क्या यकीन करेगा कि -जैसे हमारी आत्मा का एक शरीर है जिस नवद्वारपुर में आत्मन रहता है। कह सकते हो हमारी आत्मा का शरीर एक शहर है जिसका नाम नवद्वारपुर है क्योंकि इसके नौ दरवाज़े हैं। वैसे ही ये आत्मन (मेरी आत्मा )उस परमात्मा का शरीर है जिस में परमात्मा निवास करता है इसीलिए उसे वासुदेव कहा गया है। यानी मेरी आपकी हम सबकी आत्मा उस सर्वेश्वर परमात्मा का शरीर है।
गीता में कहा गया है -सब आत्माओं का आत्मा मैं (परमात्मा योगेश्वर श्रीकृष्ण )हूँ।
इति !ओम तत् सत