चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय ,
दोउ पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।
महाकवि कबीर कहतें हैं मनुष्य को वीतराग होना चाहिए सुख दुःख ,राग विराग ,जन्म ,मृत्यु ,प्रेम और घृणा करने वाले के प्रति सम भाव होना चाहिए। सभी विपरीत गुणों का अतिक्रमण करने से ही व्यक्ति गुणातीत होगा। जीवन के तमाम परस्पर विरोधी भाव (pairs of opposites )चक्की के दो पाटों की तरह हैं.पाप और पुण्य दोनों ही कर्म बंधन की वजह बनते हैं।
राग -द्वेष तो संसार (समाज ,परिवार ,बिरादरी ,राष्ट्र )में रहेगा तुम अपने आपको इससे अलग करके मुक्त हो जाओ। दोनों में सामान हो जाओ यही
प्रश्नोपनषद का सन्देश है।
समत्व बुद्धि ,समर्पण बुद्धि ,असंग बुद्धि ,स्वधर्म बुद्धि और प्रसाद बुद्धि यानी सुख और दुःख जीवन के तमाम विरोधी दिखने वाले भावों में जो एक समान रहता है वही कर्म योगी जन्म मृत्यु के बंधन के पार जा सकता है फिर काल भी उसको खा नहीं सकता।
जीवन में द्वैत भाव जीवन को ही खा जाता है चक्की के दो पाटों की तरह।
चलती चाकी देख के हँसा कमाल ठठाय
जो कीले से लग रहे ,ताहि काल न खाय।
जो अनाज चक्की के कीले (Axix )के आसपास ,कीले के गिर्द रहता है वह साबुत बच जाता है। वैसे ही जो उस सुप्रीम पर्सनालिटी आफ गॉड हेड के नज़दीक रहता है जिसके हृदय में प्रभु का स्मरण बना रहता है (24x7 )वह भक्त प्रह्लाद की तरह बच जाता है।
जो हद चले सो औलिया ,अनहद चले सो पीर ,
हद अनहद दोनों चले ,उसका नाम फ़कीर।
कुटिल वचन सबसे बुरा ,जारि करै तनु छार ,
साधू वचन जल रूप है ,बरसै अमृत धार।
शब्द सम्हारे बोलिए ,शब्द के हाथ न पाँव ,
एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव।
दोउ पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।
महाकवि कबीर कहतें हैं मनुष्य को वीतराग होना चाहिए सुख दुःख ,राग विराग ,जन्म ,मृत्यु ,प्रेम और घृणा करने वाले के प्रति सम भाव होना चाहिए। सभी विपरीत गुणों का अतिक्रमण करने से ही व्यक्ति गुणातीत होगा। जीवन के तमाम परस्पर विरोधी भाव (pairs of opposites )चक्की के दो पाटों की तरह हैं.पाप और पुण्य दोनों ही कर्म बंधन की वजह बनते हैं।
राग -द्वेष तो संसार (समाज ,परिवार ,बिरादरी ,राष्ट्र )में रहेगा तुम अपने आपको इससे अलग करके मुक्त हो जाओ। दोनों में सामान हो जाओ यही
प्रश्नोपनषद का सन्देश है।
समत्व बुद्धि ,समर्पण बुद्धि ,असंग बुद्धि ,स्वधर्म बुद्धि और प्रसाद बुद्धि यानी सुख और दुःख जीवन के तमाम विरोधी दिखने वाले भावों में जो एक समान रहता है वही कर्म योगी जन्म मृत्यु के बंधन के पार जा सकता है फिर काल भी उसको खा नहीं सकता।
जीवन में द्वैत भाव जीवन को ही खा जाता है चक्की के दो पाटों की तरह।
चलती चाकी देख के हँसा कमाल ठठाय
जो कीले से लग रहे ,ताहि काल न खाय।
जो अनाज चक्की के कीले (Axix )के आसपास ,कीले के गिर्द रहता है वह साबुत बच जाता है। वैसे ही जो उस सुप्रीम पर्सनालिटी आफ गॉड हेड के नज़दीक रहता है जिसके हृदय में प्रभु का स्मरण बना रहता है (24x7 )वह भक्त प्रह्लाद की तरह बच जाता है।
जो हद चले सो औलिया ,अनहद चले सो पीर ,
हद अनहद दोनों चले ,उसका नाम फ़कीर।
कुटिल वचन सबसे बुरा ,जारि करै तनु छार ,
साधू वचन जल रूप है ,बरसै अमृत धार।
शब्द सम्हारे बोलिए ,शब्द के हाथ न पाँव ,
एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव।
3 टिप्पणियां:
समभाव भी हों और उस कीले के पास भी रहें तो सोने पे सुहागा हो जाए ... इंसान फ़कीर हो जाएगा ...
राम राम जी ...
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शनिवार- 01/11/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 43 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
दो पाटों के बीच में फंसा हुआ जीव समता में टिक क्र ही बच सकता है...कबीर ने जीवन को कितनी गहराई से देखा और दुखों से छूटने के उपाय बताये.
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