अंग रक्षक को अपने स्वामी के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। चाटुकारिता, स्वामी /स्वामिनी के चरण चाटना बुरी बात नहीं हैं लेकिन गुलाम को अपने मालिक की पूरी इत्तला तो रखनी ही चाहिए। उसके गुणदोषों की खबर रखना उसका धर्म हैं। सोनिया कांग्रेस जो पूर्व में नेहरू -इंदिरा कांग्रेस नाम से जानी जाती थी (नेहरू गांन्धी हम इसलिए नहीं कह रहे हैं इससे आज़ादी के बाद पैदा हुई नै पीढ़ी को यह भ्रम होता है कि ये कांग्रेस कहीं महात्मा गांधी की कांग्रेस तो नहीं थी ,बताते चले मोहनदास कर्मचन्द गांधी तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चवन्निया सदस्य भी नहीं थे। ये कांगेसी कौन से गांधी की बात करते हैं हमें नहीं मालूम ,कौन सा गांधी था वह ?).
ज़नाब अजय माकन साहब जब स्मृति ईरानी के एजुकेशनल स्टेटस को निशाने पे लेते हैं तो यह भूल जाते हैं कि वह जिस नेहरू -इंदिरा कांग्रेस के पक्ष में जिरह कर रहे हैं उसके अपने करता धर्ताओं की भी इस देश में कोई शैक्षिक धाक नहीं रहीं। इंदिरा प्रियदर्शनी में तो इतनी बौद्धिक क्षमता भी नहीं थी कि बारवीं के लिए होने वाली ऑक्सफोर्ड एंट्रेन्स एग्जामिनेशन को क्लीयर कर सके। तीन मर्तबा असफल कोशिश की। स्वाध्याय से उनका कोई लेना देना नहीं था जो भारत की परम्परा रही है।
स्वाध्याय से यहां एक से एक मनीषी आगे बढ़े हैं इसी क्रम में रवींद्र नाथ टैगोर का नाम लिया जा सकता है जो स्कूल ड्राप आउट थे। जबकि कपिल सिब्बल अच्छे खासे वकील थे लेकिन कांग्रेस में आने के बाद चाटुकारिता के चलते उकील बनके रह गए उन्होंने अपनी मेधा का इस्तेमाल देश के लिए न करके एक पार्टी के हित साधन में ही किया।
तो माकन साहब जान लें स्वाध्याय का, कड़ी मेहनत और लगन से देश के लिए कुछ कर मिटने का मादा रखने वालों का कोई सानी नहीं है। स्मृति ईरानी ऐसी ही एक विदूषी हैं जो फर्राटेदार अंग्रेजी और साहित्यिक हिंदी बोलतीं हैं। आपकी सोनिया जी इन तमाम बरसों में बिना पर्चे के तक़रीर नहीं कर सकती। लिखे को पढ़ती भी ऐसे हैं जैसे मदरसे में बच्चे झूम झूम के सिंग सांग शैली में उर्दू ज़बान पढ़ते हैं। अलिफ ,बे ,ते …
ज़नाब अजय माकन साहब जब स्मृति ईरानी के एजुकेशनल स्टेटस को निशाने पे लेते हैं तो यह भूल जाते हैं कि वह जिस नेहरू -इंदिरा कांग्रेस के पक्ष में जिरह कर रहे हैं उसके अपने करता धर्ताओं की भी इस देश में कोई शैक्षिक धाक नहीं रहीं। इंदिरा प्रियदर्शनी में तो इतनी बौद्धिक क्षमता भी नहीं थी कि बारवीं के लिए होने वाली ऑक्सफोर्ड एंट्रेन्स एग्जामिनेशन को क्लीयर कर सके। तीन मर्तबा असफल कोशिश की। स्वाध्याय से उनका कोई लेना देना नहीं था जो भारत की परम्परा रही है।
स्वाध्याय से यहां एक से एक मनीषी आगे बढ़े हैं इसी क्रम में रवींद्र नाथ टैगोर का नाम लिया जा सकता है जो स्कूल ड्राप आउट थे। जबकि कपिल सिब्बल अच्छे खासे वकील थे लेकिन कांग्रेस में आने के बाद चाटुकारिता के चलते उकील बनके रह गए उन्होंने अपनी मेधा का इस्तेमाल देश के लिए न करके एक पार्टी के हित साधन में ही किया।
तो माकन साहब जान लें स्वाध्याय का, कड़ी मेहनत और लगन से देश के लिए कुछ कर मिटने का मादा रखने वालों का कोई सानी नहीं है। स्मृति ईरानी ऐसी ही एक विदूषी हैं जो फर्राटेदार अंग्रेजी और साहित्यिक हिंदी बोलतीं हैं। आपकी सोनिया जी इन तमाम बरसों में बिना पर्चे के तक़रीर नहीं कर सकती। लिखे को पढ़ती भी ऐसे हैं जैसे मदरसे में बच्चे झूम झूम के सिंग सांग शैली में उर्दू ज़बान पढ़ते हैं। अलिफ ,बे ,ते …
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