शनिवार, 29 जून 2013

आपदाओं के प्रबंधक

आपदाओं के प्रबंधक 

आपदाओं के प्रबंधक आपदाओं का इंतज़ार करते हैं .आपदाएं आएं तो ये बैठक करें .तर्क यह होता है भाई मुझे बादल का इंचार्ज  तो आपने बना दिया जब बादल फटा ही नहीं तो मैं  बैठक क्या करूं ?
प्रधान मंत्री माननीय श्री मनमोहन सिंह जी को २ ० ० ९ में आपदा प्रबंधन विभाग सौंपा गया था .ज़नाब ने आज तक भी कोई बैठक नहीं की है .

तर्क शायद वही था भाई साहब बाढ़ का आवाहन करो बाढ़  आए तो हम बैठक करें .दरसल उपाय बचावी भी किए जाते हैं ये इन्हें इस पद पे बिठाने वालों को भी खबर न थी .

प्रधान मंत्री सोचते रहे आपदा घटे तो बैठक करूं .बिला वजह क्यों माथा पच्ची करूं .सूत न कपास बुनकरों में लठ्ठम लठ्ठा .

ये लोग प्रबंधन शब्द को पकड़े बैठे रहे आपदा आए तो मैं मेनेज करूं .आपदा आई ही नहीं इसमें मनमोहन सिंह जी का क्या कुसूर ?कई प्रवक्ता ऐसा बा -कायदा कह सकते हैं .तर्क में वजन भी है .

बचावी उपायों का इल्म ही नहीं था जब आपदा आई बादल फटा ,हिमनद पिघला ,किसी ने चोरी छिपे बादल बोया तो सब हत प्रभ .मुख्यमंत्री बदहवास ,कांग्रेसी राजकुमार ला -पता .

कई सोचतें हैं हम तो पर्यटन के इंचार्ज हैं ये तीर्थस्थल प्रबन्धन क्या होता है .हमारा काम वन कानूनों को धता बताकर ,पर्यावरण -पारितंत्रों की अनदेखी करके सड़कें बनाना है पहाड़ को नंगा करना है हरियाली नोंच के तभी तो आपदा भी आयेगी .जब आयेगी तो धीरे धीरे प्रबंधन भी आप से आप सीख जायेंगें ,जल्दी भी क्या है अभी तो वोट की जुगाड़ करनी है २ ० १ ४ छोड़ने वाला नहीं है अब आया के तब आया .

ॐ शान्ति .


13 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

परले दर्जे की लापरवाह उपेक्षा से इतनी बड़ी त्रासदी हो गयी

Satish Saxena ने कहा…

आपदा प्रबंधन हम जानते ही नहीं ...

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सर जी ,हालात बड़े बदतर हैं "सच सोचना
भी गुनाह सच बोलना तो दरकिनार ..

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

यही कड़वी सच्चाई है !!

रविकर ने कहा…

बटते दल बादल फटे, दलदल लेते लील |
दलते ग्राम दलान घर, देत दलाल दलील |
देत दलाल दलील, आपदा है अब आई |
राहुल लाखों मील, रसद कैसे पहुंचाई |
बैठक ठक ठक रोज, चलो मसले हैं घटते |
जनसंख्या है बोझ, चलो इस तरह निबटते ||

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

आपदा प्रबंधन के नाम अपने आने वाले जीवन का प्रबंधन ज़रूर कर लेते हैं ...बस

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हम तो हमेशा देरी से जागते हैं ... हमारी पुलिस भी चोरी होने के बाद आती है ... आपदा आई उसके बाद आ तो गए ... देर सवेर ... सरकार की बला से ... कोई मरता है तो मरे ... २०१४ तो अपना है ...

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

जो खुद देश के लिए वर्षों से आपदा बने हुए हों, वो प्राकृतिक आपदा का क्‍या खाक प्रबन्‍धन करेंगे।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

समझ में नही आता कि हम लोग इतने बडे बडे दावे करते हैं पर जरूरत के समय कोई जिम्मेदारी लेने के लिये भी तैयार नही होता.

लगता है नेता अफ़सर सब चैतुएं हैं.

रामराम.

अरुन अनन्त ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-06-2013) के चर्चा मंच 1292 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

राहुल ने कहा…

आपदाओं को लेकर जो प्रबंधन की तैयारी सरकार ने की है, वो खुद में बिखरा हुआ है... यकीनन अभी वक़्त लगेगा.. सवाल ये भी है कि हम अपनी मानसिकता कब दुरुस्त करेंगे और जवाबदेही कब तय करेंगे ? किसी को कोसने या गाली देने से कुछ नहीं होगा.....आगे बढ़िए, कुछ रास्ता दिखाइए...

रचना दीक्षित ने कहा…

हमारा आपदा प्रबंधन इसी प्रकार है. आपदा आने के बाद ही हम प्रबंधन के बारे में सोचते हैं.

Kailash Sharma ने कहा…

सभी क्षेत्र में हमारे प्रबंधन के यही हाल हैं...