कैसा विकास है यह मनमोहन भैया
आज पहला दिन है यहाँ कैंटन (मिशिगन )में गर्मी का .तापमान ९ ०
फारेनहाईट के पार गया है .रेडिओ पे समाचार है अपने पेट्स का
फारेनहाईट के पार गया है .रेडिओ पे समाचार है अपने पेट्स का
ख़याल रखें . खासकर उनका जिन्हें ज़ंजीर में बाँध के रखा जाता है उनकी
पहुँच पानी तक ज़रूर रहे छाया वाले ठंडे हिस्से तक भी हो
पहुँच पानी तक ज़रूर रहे छाया वाले ठंडे हिस्से तक भी हो
.कारपेट एरिया में वह आराम से आ जा सकें .
यह अमरीका है भाई साहब जहां स्वान (कुत्ता )यूं पर्यावरण का उस रूप
में कभी हिस्सा नहीं रहा है लेकिन अमरीकियों ने उसे बनाया है
में कभी हिस्सा नहीं रहा है लेकिन अमरीकियों ने उसे बनाया है
अपने आशियाने (घर )के केंद्र में बिठाया है .यहाँ अमरीकियों के घर के
बाहर लिखा होगा -Home is where my dog is .हालाकि
बाहर लिखा होगा -Home is where my dog is .हालाकि
लिखा होना चाहिए Home is where my God is .शब्दों को उलटे क्रम
में लिखना होगा बस .ॐ शान्ति .
में लिखना होगा बस .ॐ शान्ति .
एक हम हैं यकीन मानिए मुम्बई के गेट वे आफ इंडिया के ताज होटल के सामने रोज़ सुबह की सैर करता रहा हूँ .रोज़ साढ़े छ : से
सात बजे तक .बाद इसके
सात बजे तक .बाद इसके
ब्रह्मा कुमारीज़ ईश्वरीय केंद्र में सुबह की क्लास अटेंड करता था,साढ़े
साथ से साढ़े आठ तक .उससे पहले सैर .१ २ जून ,२ ० १ ३
तक यही क्रम था .१ ३ जून को
साथ से साढ़े आठ तक .उससे पहले सैर .१ २ जून ,२ ० १ ३
तक यही क्रम था .१ ३ जून को
मुंबई से उड़के वाया फ्रेंकफर्ट ,डलैस (वाशिंगटन डीसी )यहाँ कैंटन
(मिशिगन )पहुंचा हूँ .
(मिशिगन )पहुंचा हूँ .
मैं रोज़ देखता था ताज के ठीक सामने फुट पाथ पे सोये नंगे भूखे लोग
,शौच करते फुटपाथी शैया के गिर्द नंग धडंग बच्चे ,साथ में
,शौच करते फुटपाथी शैया के गिर्द नंग धडंग बच्चे ,साथ में
सोते स्वान .कैसा आर्थिक विकास है यह .ग्रोथ रेट है यह एह्लुवालिया
साहब मनमोहन सिंह जी .किसको बहका रहें हैं आप लोग ?
साहब मनमोहन सिंह जी .किसको बहका रहें हैं आप लोग ?
यहाँ वह घसियारा (गोल्फकार्ट चलाता ),ग्रास मोवर से मैदानी घास की
ट्रिमिंग करता भी उतना ही खुशहाल दिखा .गाड़ी लिए दिखा
ट्रिमिंग करता भी उतना ही खुशहाल दिखा .गाड़ी लिए दिखा
जैसे कोई और अमरीकी .उसके चेहरे पे वही ताजगी दिखी वही रौनक
विश्वास जो आम अमरीकी के चेहरे पे दिखती है .बुनियादी
विश्वास जो आम अमरीकी के चेहरे पे दिखती है .बुनियादी
सुविधाएं मयस्सर हैं उसे जीवन की .यहाँ के कथित स्लम्स के बाहर भी
छोटी गाड़ी है .एक नहीं दो दो .छोटा सा ही सही साफ़ सुथरा
छोटी गाड़ी है .एक नहीं दो दो .छोटा सा ही सही साफ़ सुथरा
घरौंदा है और मेरे भारत में एक मैड पूरे माह घिसटती है तब कहीं हज़ार
पन्द्रह सौ पाती है .श्रम की कोई कीमत नहीं यहाँ श्रम का मान
पन्द्रह सौ पाती है .श्रम की कोई कीमत नहीं यहाँ श्रम का मान
है .
कैसा विकास है यह मनमोहन भैया
ॐ शान्ति .
2 टिप्पणियां:
मन के मोहन और अहलूवालिया से आपने बेहतरीन सवाल पूछे हैं पर शायद वो इन सवालों का जवाब देना जरूरी नही समझते. वैसे भी इनका चमडा इतना मोटा हो चुका है कि उस पर अब जूं भी नही रेंगती.
रामराम.
एक विशेष बात:-
आपकी यह पोस्ट फ़ोलो किये गये ब्लाग लिस्ट में तो दिखाई देती है लेकिन उसको पढने के लिये क्लिक करते ही खुद मेरा ही डैशबोर्ड खुल रहा है.:) देखिये कहीं लिंक वगैरह का लोचा तो नही है.
मैने जब गूगल सर्च में इस पोस्ट के वर्ड डालकर सर्च किया तो यहां तक पहुंच पाया हूं, शायद अन्य पाठकों को भी यही तकलीफ़ आ रही होगी.
रामराम.
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