मुरली आत्मा और परमात्मा के बीच का वह संवाद है रूह रूहान है बातचीत है जिसके लिए किसी भौतिक माध्यम की आवश्यकता नहीं रहती है .यह वायरलेस प्रसारण तभी मुमकिन हो पाता है जब हम देहभान से मुक्त हो जाते हैं .अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित अशरीरी बन स्वयं को आत्मा समझ परमात्मा निराकार शिव को याद करते हैं .परे से भी परे नीहारिकाओं ,क्वासर्स ,पल्सार्स (स्पंदी सितारों )से भी परे परमधाम से होने वाला यह सीधा प्रसारण है .
मुरली वह संगीत है जो विश्वशान्ति का आधार बन सकती है .क्योंकि इसे सुनने से दुनिया भर में शान्ति स्थापित हो सकती है .तमाम युद्ध और उनकी रणनीति पहले मानव मन ही रचता है .और मुरली सुनने से हम अपने स्वभाव ,स्वमान में स्थित हो जाते हैं .देहभान (अशुद्ध अहंकार )से मुक्त हो खुद को आत्मा समझने लगते हैं .क्योंकि मुरली वह महावाक्य है जो परमात्मा निराकार शिव पूरे कल्प में सिर्फ एक बार जब पञ्चभूतों से बनी यह दुनिया मैली हो जाती है प्रकृति के पाँचों तत्व अपनी तात्विकता खोकर बेहद के प्रदूषित हो जाते हैं .,साधारण मनुष्य तन में प्रवेश कर सुनाते हैं जिसे वह नाम देते हैं ब्रह्मा .
मुरली वह रास है जो गोपेश्वर (निराकार शिव )गोप गोपिकाओं (पुरुषोतम संगम युग , कलयुग के आखिर तथा सत युग की पूर्व वेला में )हम आत्माओं के साथ रचाते हैं .यह इसी समय का यादगार है .
गोपेश्वर कहा जाता है उसे जो कृष्ण का भी ईश्वर है हम आत्माओं का सच्चा सच्चा पिता ,शिक्षक और सद्गुरु है ,शिव परमात्मा को .
हम मनुष्य आत्माओं का संपर्क परमात्मा से करवाती है मुरली की तान .यह बांसुरी हरित बांस (कच्चे बांस )की नहीं बनी है जिसे नटखट गोपिकाएं श्रीकृष्ण को छकाने के लिए छुपा लेती हैं ,सौगंध धरती हैं कि कृष्ण की मुरलिया उनके पास नहीं हैं फिर कनखियों से मुस्का के संशय पैदा कर देती हैं .कृष्ण कहते हैं है तो लौटा दो .सौगंध धरके कहती हैं उनके पास नहीं है तो फिर कहाँ से दें .
हरित बांस की बांसुरी मुरली लई लुकाय ,सौहं धरें ,भौहन हँसे ,दें करत नट जायं .
यह बांसुरी तो निराकार शिव की ब्रह्मा कमल मुख से निसृत ज्ञान वाणी है .जिसे सुन हम बच्चों का स्वभाव संस्कार बदल जाता है .विकर्म विनाश होने लगते हैं .जन्म जन्मान्तर की खोट उतरने लगती है आत्मा पर से .यह मुरली डायमंड की बनी है .जिसे सुन हमारी आत्मा भी डायमंड की हो जाती है विकर्मों ने आज इसी आत्मा को कोयला बना दिया है .डायमंड और कोयला हैं दोनों एक ही तत्व कार्बन के अपरूप allotrops ही .
कोयल ,काजल और डायमंड अपनी एटमी संरचना में अलग अलग हैं लेकिन हैं एक ही तत्व कार्बन केएटमी संयोजन .
Allotropy or allotropism is the property of some chemical elements to exist in two or more different forms, known as allotropes of these elements. Allotropes are different structural modifications of an element[1]; the atoms of the element arebonded together in a different manner.
For example, carbon has 3 common allotropes: diamond, where the carbon atoms are bonded together in a tetrahedral lattice arrangement, graphite, where the carbon atoms are bonded together in sheets of a hexagonal lattice, and fullerenes, where the carbon atoms are bonded together in spherical, tubular, or ellipsoidal formations.
मन का मुरीद बनने से हमारी आत्मा आज कोयले से भी ज्यादा काली हो गई है .जबकि मन को आत्मा का मुरीद होना चाहिए था .आत्मा के सोचने की शक्ति ही तो है हमारा मन .कर्म का आधार बनती है हमारी सोच .और कर्मम फिर परछाईं बन हमारे संग संग चलता है .
कृष्ण के हाथ में मुरली इसीलिए भक्ति मार्ग में दिखलाई गई है क्योंकि कृष्ण दुनिया का पहला प्रिंस है जिसने ज्ञान मुरली ब्रह्मा कमल मुख निसृत सबसे ज्यादा सुनी है जिसे स्वयं परमात्मा शिव सुनाते हैं .
मुरली श्री मत है शिव की .'श्री' का अर्थ ही है देवताओं का भी देवता .जो नित मुरली सुनेगा उसके विकारों की परतें उतरेगीं आत्मा से .जैसे शरीर के पोषण के लिए स्वास्थ्य कर भोजन ज़रूरी है एंटीओक्सिडेंट ज़रूरी हैं वैसे ही आत्मा के पोषण के लिए मुरली की तान ज़रूरी है सुनना, नित सुनते रहना प्रात :ब्रह्म मूहर्त में ,स्वयं को आत्मा समझ निराकार शिव ज्योतिर्लिन्गम परमात्मा को याद करनाही मुरली सुनना है .
मुरली योग है प्रेममिलन है आत्मा का परमात्मा के साथ .प्रेम पत्र है परमात्मा का आत्मा के नाम .मुरली वह
एंटी - वायरस है जिसे सुन आत्मा से हर प्रकार की खोट ,विकर्मों का वायरस निकल भाग खड़ा होता है .
मुरली (परमात्मा की श्रीमत पर चलने से )का आधार लेने से हमारा जीवन सफल सुखमय जीवन बन जाएगा .आत्मा अलौकिक आनंद रस में डूब जाती है मुरली की तान सुनके .
मुरली में छिपे हैं जीवन और जगत के सभी सौपान त्रिलोक का ज्ञान .ज्ञान गीता है मुरली जिसमे छिपें हैं जीवन में आने वाली समस्याओं के समाधान .मुरली सुनने से हम अपने स्वधर्म (आत्म स्वरूप ,शान्ति स्वरूप ,आनंद स्वरूप )में स्थिर हो जाते हैं .हर काम में सफलता मिलने लगती है .दक्षता बढ़ जाती है हर काम में .हरकाम हो जाता है आसान .
आप अनुसंधान करने लगते हैं सुनके मुरली की तान बनजाते हैं बड़े विज्ञानी ग्यानी ध्यानी आत्मा .मुरली वह सॉफ्ट वेयर है जो हमें सकारात्मक बनाती है .हमारी नकारात्मक वृत्ति का नाश करती है मुरली .
मन वाणी कर्म में समस्वरता हार्मनी पैदा करती है मुरली .आज हम सोचते कुछ हैं कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं .यही हमारे दुखों का कारण हैं .हम अपने मन के मुरीद हो गए हैं .मन मत पे ,परमत पे चलने लगते हैं .इसने ऐसा क्यों कहा उसने वैसा क्यों कहा इसी सोच को पकड़ के बैठ जाते हैं .यह पकड़ना ही दुखों का कारण बन जाता है .हमारी miseries की वजह बन जाता है .
आज सत्य को परखने की हमारी शक्ति कमज़ोर हो गई है क्योंकि हमारा मन अ -शांत रहता है .प्रात :सुनी गई मुरली दिन भर हमने तरोताजा ऊर्जा से भरे रहती हैं चार्जिंग करती है हमारी .दिन भर रहता है फिर यह चार्ज .
(ज़ारी )
वीरुभाई ,४ ३ ,३ ०९ ,सिलवरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशगन
11 टिप्पणियां:
सार्थक और प्रभावशाली आलेख की प्रस्तुती, धन्यबाद आदरणीय।
बहुत प्रभावी और भक्तिमय प्रस्तुति...आभार
मुरली पर पावन ...सार्थक आलेख ...!!प्रभावी प्रस्तुति ...आभार .
मुरलीवाले की मुरली से प्यार होंना तो स्वाभाविक है।
सुन्दर प्रस्तुति , बहुत दिनों के बाद नज़र आये वीरुभाई जी। सब खैरियत तो है ना।
murli ke vagyanik swaroop ka sundar vivechan kiya hai aapne .
प्रवाहमान एवं विचारणीय चिंतन।
आभार।
बहुत सुंदर लेख .... बहुत सी जानकारी मिली ...
हम अपने मन के मुरीद हो गए हैं .मन मत पे ,परमत पे चलने लगते हैं .इसने ऐसा क्यों कहा उसने वैसा क्यों कहा इसी सोच को पकड़ के बैठ जाते हैं .यह पकड़ना ही दुखों का कारण बन जाता है .
आलेख के इस अंतिम पैरा के शब्दों ने जीवन का पूरा सार बयान कर दिया है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
इसकी तान में हम भी बँधे हैं।
रूहानी सुकून देती हुई पोस्ट ...
शायद तभी मुरली-वाले से प्रेम हो जाता है बरबस ...
इसीलिए कहते हैं ....मुरली रस बरसाए.......
मुरलिया तेरी रस बरसाए ...इसी भक्ति-
रस में डूब जाना चाहते हैं ...बहुत सुंदर और --
सार्थक आलेख...
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