इतिहास अपने आपको दोहराता है। सिर्फ इसके पात्र बदल जाते हैं। पहले इस देश को यवनों ने लूटा मंदिरों और औरतों को लूट का माल समझा फिर अंग्रेज़ों ने फूट डालो राज करो का विष बोया। उसके बाद कांग्रेस वामपंथियों के साथ मिलकर यही काम नियोजित तरीके से करने लगी।
सनातनी धर्म -धारा से पहले सिखों को अलग किया फिर यही काम सोनिया मायनो ने पूरी निष्ठा के साथ चर्च के इशारे पे ज़ारी रखा। आते ही शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती पर केस बनवाया। जैन और बुद्ध धर्मों को मूल धारा से छिटकाया। अब यही काम इनके सुबुद्ध सुपुत्र कर रहें हैं देश को तोड़ने के मामले में चीन और पाकिस्तान की ढपली बजा रहें हैं अपने प्रभावगत जरखरीद लोगों से भी बजवा रहे हैं। २०१९ में यही इनका अजेंडा होगा।
धर्म परिवर्तन के खिलाफ पहली आवाज़ विवेकानंद ने आलमी धर्म सभा में शिकागो में उठायी थी इसे गहन अपराध बतलाया था।
स्वपन नगरी मुंबई भी इस काम में पीछे नहीं रहना दिखना चाहती। भाड़े के इतिहासकार पद्मनी को ही गल्प कथा के दायरे में लाने को उत्सुक हैं। पूरा पाखंड रचा गया है। इस देश में तो ऐसे समदर्शी सबको एक ही आँख से देखने वाले ऐसे ऐसे महापुरुष है जो राम के ही अस्तित्व को नकारते हैं राम जो इस देश की भोर का पहला स्वर हैं। उनसे जुड़ी रामायण को ही दंत कथा बतलाते रहें हैं। रामसेतु का अस्तित्व नकारते रहें हैं। न इनमें करुणा है न निधि -जल नाम है करूणानिधि।
वामियों के तो कहने ही क्या इन्हें अपनी अम्मा से पूछना चाहिए इनके साम्प्रदायिक नाम क्यों रखे गए जबकि ये स्वयंघोषित सेकुलर हैं -सीताराम येचरी ,वृंदा जी ,माथे पे बड़ी बिंदी भारतधर्मी परम्परागत समाज का प्रतीक है। मार्क्सवाद के भकुए इन प्रतीकों को क्यों ढ़ो रहें हैं।अपने सेकुलरत्व का बोध नहीं है ये सारी साम्प्रदायिक नामावली है।
प्रश्न केवल 'पद्मावती' का यही नहीं है जिसे कभी महाकवि मलिक-मोहम्मद जायसी का प्रबंध काव्य न कहकर कविता बतलाया जाता है कभी फिक्शन कह के नकारा आजाता है।
जिस किसी ने भी चंद हसीं लोगों का सिर कलम करने की चीत्कार की है अंदर से व्यथित ज़रूर होगा। भारतधर्मी सनातन समाज के शौर्य के प्रतीकों से छेड़खानी उससे देखी न गई होगी।एक राजपूतानी वीरांगना महारानी पद्मिनी जो लम्पट लुटेरों से अपने महाराजा रतनसिंह को खिलजी अलाउद्दीन की धोखाधड़ी से की गई कैद से छुडवातीं हैं उन्हें इस लुटेरे के प्रति विमोहित कोई विकृत दिमाग का व्यक्ति ही दिखला सकता है।
अस्मिता को बचाने के लिए वह महारानी जौहर(अग्निदाह ) करती है अपने दल बल के साथ तब जब उनकी सेना हार चुकी है महाराजा मारे जा चुके हैं।ताकि लम्पटों के हाथ पड़के इस देश का गौरव खंडित न हो।
इस पीड़ा की तदानुभूति पाकिस्तान सोच के लोगों को हो भी तो कैसे।वो तो कह सकते हैं इन जौहर करने वालियों पर आत्महत्या के अपराध में मुकदमा चलाया जाए।
इस दौर में तो लोग पाक और चीन की करतूतों पर मोदी को गुर्राते हैं। उनसे वो नित्य सवाल पूछते हैं जो सवाल शब्द के चार पर्यायवाची नहीं गिना सकते।
उपनिषद का ऋषि कहता है प्रश्न करो। सारा ज्ञान प्रश्न की मथानी से ही मथकर बाहर आया है लेकिन राष्ट्र इस देश के लिए कभी प्रश्न नहीं रहा है आस्था और समर्पण का विषय रहा है।उसके प्रतीकों को कोई यूं विकृत करे। और हम चुप रहें।
राम जब अयोध्या से वनगमन करते हैं एक पोटली में अपनी इस जन्मभूमि की मिट्टी बाँध लेते हैं जो उनके सिरहाने रहती है नित्य ताकि उन्हें अपनी मातृभूमि की गरिमा हमेशा याद रहे। वह कोई गलत काम न कर सकें।
सनातनी धर्म -धारा से पहले सिखों को अलग किया फिर यही काम सोनिया मायनो ने पूरी निष्ठा के साथ चर्च के इशारे पे ज़ारी रखा। आते ही शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती पर केस बनवाया। जैन और बुद्ध धर्मों को मूल धारा से छिटकाया। अब यही काम इनके सुबुद्ध सुपुत्र कर रहें हैं देश को तोड़ने के मामले में चीन और पाकिस्तान की ढपली बजा रहें हैं अपने प्रभावगत जरखरीद लोगों से भी बजवा रहे हैं। २०१९ में यही इनका अजेंडा होगा।
धर्म परिवर्तन के खिलाफ पहली आवाज़ विवेकानंद ने आलमी धर्म सभा में शिकागो में उठायी थी इसे गहन अपराध बतलाया था।
स्वपन नगरी मुंबई भी इस काम में पीछे नहीं रहना दिखना चाहती। भाड़े के इतिहासकार पद्मनी को ही गल्प कथा के दायरे में लाने को उत्सुक हैं। पूरा पाखंड रचा गया है। इस देश में तो ऐसे समदर्शी सबको एक ही आँख से देखने वाले ऐसे ऐसे महापुरुष है जो राम के ही अस्तित्व को नकारते हैं राम जो इस देश की भोर का पहला स्वर हैं। उनसे जुड़ी रामायण को ही दंत कथा बतलाते रहें हैं। रामसेतु का अस्तित्व नकारते रहें हैं। न इनमें करुणा है न निधि -जल नाम है करूणानिधि।
वामियों के तो कहने ही क्या इन्हें अपनी अम्मा से पूछना चाहिए इनके साम्प्रदायिक नाम क्यों रखे गए जबकि ये स्वयंघोषित सेकुलर हैं -सीताराम येचरी ,वृंदा जी ,माथे पे बड़ी बिंदी भारतधर्मी परम्परागत समाज का प्रतीक है। मार्क्सवाद के भकुए इन प्रतीकों को क्यों ढ़ो रहें हैं।अपने सेकुलरत्व का बोध नहीं है ये सारी साम्प्रदायिक नामावली है।
प्रश्न केवल 'पद्मावती' का यही नहीं है जिसे कभी महाकवि मलिक-मोहम्मद जायसी का प्रबंध काव्य न कहकर कविता बतलाया जाता है कभी फिक्शन कह के नकारा आजाता है।
जिस किसी ने भी चंद हसीं लोगों का सिर कलम करने की चीत्कार की है अंदर से व्यथित ज़रूर होगा। भारतधर्मी सनातन समाज के शौर्य के प्रतीकों से छेड़खानी उससे देखी न गई होगी।एक राजपूतानी वीरांगना महारानी पद्मिनी जो लम्पट लुटेरों से अपने महाराजा रतनसिंह को खिलजी अलाउद्दीन की धोखाधड़ी से की गई कैद से छुडवातीं हैं उन्हें इस लुटेरे के प्रति विमोहित कोई विकृत दिमाग का व्यक्ति ही दिखला सकता है।
अस्मिता को बचाने के लिए वह महारानी जौहर(अग्निदाह ) करती है अपने दल बल के साथ तब जब उनकी सेना हार चुकी है महाराजा मारे जा चुके हैं।ताकि लम्पटों के हाथ पड़के इस देश का गौरव खंडित न हो।
इस पीड़ा की तदानुभूति पाकिस्तान सोच के लोगों को हो भी तो कैसे।वो तो कह सकते हैं इन जौहर करने वालियों पर आत्महत्या के अपराध में मुकदमा चलाया जाए।
इस दौर में तो लोग पाक और चीन की करतूतों पर मोदी को गुर्राते हैं। उनसे वो नित्य सवाल पूछते हैं जो सवाल शब्द के चार पर्यायवाची नहीं गिना सकते।
उपनिषद का ऋषि कहता है प्रश्न करो। सारा ज्ञान प्रश्न की मथानी से ही मथकर बाहर आया है लेकिन राष्ट्र इस देश के लिए कभी प्रश्न नहीं रहा है आस्था और समर्पण का विषय रहा है।उसके प्रतीकों को कोई यूं विकृत करे। और हम चुप रहें।
राम जब अयोध्या से वनगमन करते हैं एक पोटली में अपनी इस जन्मभूमि की मिट्टी बाँध लेते हैं जो उनके सिरहाने रहती है नित्य ताकि उन्हें अपनी मातृभूमि की गरिमा हमेशा याद रहे। वह कोई गलत काम न कर सकें।
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