(१)कलियुग केवल नाम अधारा ,
सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।
सुमिर सुमिर नर पावहि पारा।
(२)हर सांस में हो सुमिरन तेरा ,
यूं बीत जाए जीवन मेरा।
(३) हरे रामा हरे रामा ,रामा रामा हरे हरे ,
हरे कृष्णा हरे कृष्णा ,कृष्णा कृष्णा हरे हरे।
हरेर नाम हरेर नाम ,हरेर नमेव कैवलम।
जैसे उपनिषद में महावाक्य हैं ,सूक्तियाँ हैं
वैसे ही कलियुग के प्राणियों के लिए ये महामंत्र हैं।
नाम लिया जिन, सब कुछ किया ,
सकल शाश्त्र कबीर ,बिना नाम नर मरगया पढ़ पढ़ चारों वेद।
बिना नाम नर , मर मरके गया पढ़ पढ़ चारों वेद।
सारे शाश्त्रों का रहस्य यही है।
(५ )जिनके हृदय श्रीराम बसें ,उन और को नाम लियो न लियो
कलिसंतरण उपनिषद में-
हरे रामा ,हरे रामा रामा रामा हरे -हरे ,
हरे कृष्णा ,हरेकृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे -
महामंत्र का माहात्म्य एवं जाप विधि का विस्तार से विवेचन किया गया
है। इस उपनिषद में केवल ११ मन्त्र हैं।
श्रीमद्भागवतम् से एक उद्धरण लेते हैं :
"O Lord of Lords ,O master ,please grant us pure devotional service at Your lotus feet ,life after life .I offer my respectful obeisances unto the Supreme Lord ,Hari ,the congregational chanting of whose holy names destroys all sinful reactions ,and the offering of obeisances unto whom relieves all material suffering."
संकीर्तन से तीनों तरह के कर्म नष्ट हो जाते हैं। ऐसी है कलियुग में रामनाम की महिमा।
उलटा नाम जपाजप जाना ,
बाल्मीक भये सिद्ध समाना।
सतयुग के लोग हर प्रकार का तप हज़ारों हज़ार साल खड़े खड़े करने की क्षमता से लैस होते थे । उन्हें नहीं मालूम था की केवल नाम जप ही जन्म मृत्यु के चक्र से, माया के पाश से छुटकारे के लिए काफी है। न ही कलियुगी प्राणी किसी प्रकार के अभाव से ग्रस्त था।धर्म की चारों टाँगे सुरक्षित थीं।
भले कलियुग में धर्म की चारों टांगें कट चुकीं हैं आदमी के अंदर २४ x ७ x 365 स्ट्रेस हारमोन बढ़ा रहता है। काया और मन दोनों रोग ग्रस्त रहते हैं फिर भी कलियुग में एक अच्छाई है शुकदेव गोस्वामी मरणासन्न परीक्षित से कहते हैं हरे कृष्ण महामंत्र के जाप से आप कलियुग के कीच सागर (अन्धमहासागर ) को पार कर सकते हैं। सीधे वैकुण्ठ जा सकते हैं श्री कृष्ण के चरणों में जगह पा सकते हैं सनातन काल के लिए उनके चरण कमलों की सेवा का अवसर पा सकते हैं।
सतयुग में जो फल महाविष्णु को पूजने से प्राप्त होता था ,त्रेता में कर्मकांडों (Holy sacrifices )से प्राप्त होता था द्वापर में श्रीकृष्ण के चरण कमल की रज लेने से मिलता था वही कलियुग में हरे कृष्ण महामंत्र से मिल जाता है।
विशेष :राम और सीता ,कृष्ण -बलराम ,राधका कृष्ण अलग अलग नहीं हैं कृष्ण की योगमाया का ही विस्तार हैं। कृष्ण (Personality of God Head ) अलग अलग जगहों पर एक साथ उपस्थित हो सकते हैं अपने निर्गुण (Impersonal form Of God ,God without attributes )निराकार ,निर्विशेष तथा सगुण साकार सविशेष (God Head with attributes ).राम और कृष्ण में केवल काल भेद है गुण भेद नहीं हैं एक का अवतरण त्रेता में होता है दूसरे का द्वापर में।
ब्रह्मा सेकेण्डरी क्रियेटर हैं प्रायमरी क्रियेटर श्रीकृष्ण हैं। और ब्रह्मा भी एक नहीं हैं अनंत लोक हैं ,अनंत सृष्टियाँ। सबके ब्रह्मा अलग अलग हैं। जिस कल्प(Period of time ) के किसी भी प्राणी में पर्याप्त योग्यता नहीं होती तब कृष्ण ब्रह्मा का पद अपने पास ही रख लेते हैं। प्रजातंत्र में प्रधानमंत्री कई मर्तबा डिफेंस और होम अपने पास ही रखते हैं।
ये तमाम देवता कृष्ण का मंत्रिमंडल है। भगवान की सरकार भी अस्थाई है कोई पद सनातन नहीं है एक ही कल्प के लिए है। ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों बदलते हैं। इंद्र बदलते हैं। तमाम पंच - महाभूतों के देवता बदलते हैं।
http://radha-madhav.com/naam-jap
(१)
Saint Tulidas has said, “Kalyug Kewal Naam Adhara, Simar-Simar Nar Utarahin Para” meaning in Kaliyug only chanting of God’s name is enough to sail the human beings through the deep sea of the world. Lords Divine Name Chant will give bliss, peace and liberation from this cycle of birth and death. In this Kali Yug, the Lord does not come to Earth in an avatar, but His Name bhajan (spiritual singing of His Glories) and sankirtan (chanting of his name) correctly and respectfully all human beings can sail through the sea of the world)Naam Jap is very important in ones spiritual life,in his age kali Shri Bhagwan naam smaran is very important.When we do naam jap the clensing process starts ..yes our mind is cleansed of all material impurities when we perform kirtan or do naam japNaam Jap is such a pious activity that it can only be performed by only a few fortunate souls as a fruit of the sweet seeds they had sown in their previous births.
There are many unfortunate souls in this universe who are oblivious to the fact that naam jap is the passport to spiritual contentment.In all the previous yugas viz.,Sata,Dwapar,Tretah there were different ways prescribed for liberation but in Kali Yug(present age)Naam Jap is the only way to liberation.Chaitanya Mahaprabhu confirms by saying “Harer nama harer nama harer namaiva kevalam”.Meaning “In the age (of Kaliyug) the only means of deliverance is chanting the holy name of God”.Nam Jap is the surest and easiest way of purifying and pacifying one’s mind. It involves repeating God’s name aloud or in one’s mind. Chanting God’s name and remembering his divine from charges on aspirant with peace, joy and divine vibrations. After some time one’s mind becomes oblivious to external objects and thoughts, and one’s consciousness becomes withdrawn and elevated to a blissful state. Repeating God’s name (mantra Jap) loudly or in one’s mind with one’s thought focused on God is called nam jap. It is often accompanied by turning the mala with one’s thumb or simply by uttering God’s name. Repeating the name of just any object does not produce the same effect as that of chanting God’s name or a holy mantra. By chanting God’s name the mind becomes oblivious to external objects and thoughts, and one’s consciousness becomes withdrawn and elevated to blissful state. Chanting God’s name also creates a positive aura, inspiring peace and joy. Jap is best performed during the Brahma muhrut at about 4.00 am when there is peace and silence all around. At the break of dawn the din of human activity disturbs the mind. It is advised to do jap after completing one’s routine rituals of brushing and bathing. While doing jap sit still in a meditative posture with eyes closed. Devotees also perform jap before the murti of God in mandir.
Many also chant the mantra aloud by clapping their hands before the deities.Nam jap is believed to cure the body of disease, free the mind of stress, and liberate the soul from the bondage of maya.The power of Naam Jap is also described in the below mentioned shlokas:-Although born in a Mohammadan family,Haridasa Thakura became a regularly initiated brahmana as well as Namacharya by dint of chanting the holy name Sri Caitanya Caritamrta Antya-lila 3.24 By chanting the holy name,even a lowborn person’s body is changed into that of a brahmana: Srimad Bhagavatam 5.1.35The holy name of the Supreme Personality of Godhead is so powerful that if once heard without offenses,it can purify the lowest of men.Srimad Bhagavatam 6.16.44 purport Whoever chants the Hare Krsna maha-mantra is immediately purified due to the transcendental position of devotional service. Caitanya Caritamrta Madhya lila 19.69 If Sankirtnana-yajna is performed,there will be no difficulty, not even for industrial enterprises.Therefore this system should be introduced in all spheres of life — social,political,industrial,co
(२)Kalyug Kewal Naam Aadhaar...Sant Madhusudan Bapuji's Lecture
Kalyug Kewal Naam Aadhaar...Sant Madhusudan Bapuji's ...
www.youtube.com/watch?v=6aXOT6OAAno
Sep 9, 2012 - Uploaded by Anand Vrindavan DhamSHRI MADHUSUDAN BAPUJI Only for uplifting the fallen souls, Sri Madhusudan Bapuji appeared on 30th ...
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर सर जी हरि अनंत हरि कथा अनंता
सुनहिं गुनहिं गावहिं जेहिं सांता ,सादर अभिवादन सर जी
उलटा नाम जपाजप जाना ,
बाल्मीक भये सिद्ध समाना।
....बहुत सुन्दर
नाम सुमिरन साधना की सरल व सरस पद्धति है...सुंदर पोस्ट !
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