ऊंचे पानी न टिके ,नीचे ही ठहराय ,
नीचा होय सो भरि पिये ,ऊंचा प्यासा जाय।
महाकवि कबीर अपनी इस साखी में अहंकार की भर्तस्ना करते हुए उसकी तुलना ऊंचाई से करते हैं। तथा जल की ज्ञान से।
जैसे जल का सहज प्रवाह ऊंचाई से (Higher level ,Higher potential energy )से नीचाई की तरफ होता है वैसे ही ज्ञान अहंकारी व्यक्ति का साथ छोड़ जाता है वह सूचना बनके रह जाता है । और सहज ही ज्ञान का आश्रय अपने को विनम्र समझने वाले व्यक्ति को प्राप्त हो जाता है। श्रीमती माया देवी जो ब्रह्मा की सहचरी हैं नीचाई पर खड़े अपने को तुच्छ तृणवत समझने वाले अहंकार शून्य व्यक्ति को ज्ञान का आश्रय लेने देतीं हैं।अहंकारी का ज्ञान नष्ट कर देतीं हैं।
"water does not remain above (at higher level );it naturally flows down .Those who are low and unassuming drink (God,s grace )to their heart's content ,while those who are high and pompous remain thirsty."
है कहूँ तो है नहीं ,और नहीं कहूँ तो है ,
है और नहिं के बीच में ,जो कुछ है सो है।
इस साखी में कबीर भगवान (Personalty of God Head )के व्यक्त(Personal form of God ,सगुण ब्रह्म ) और अव्यक्त (Impersonal form of God ,निर्गुण ब्रह्म )रूप की ओर संकेत करते हैं। इसीलिए कबीर कहते हैं -यदि मैं कहता हूँ कि वह (भगवान )है तो लोग कहेंगे कि है तो दिखाओ। लेकिन वह इन चरम चक्षुओं से कैसे दिखेगा उसे देखने के लिए प्रभु कृपा प्रदत्त ज्ञान चक्षु चाहिए। और यदि मैं यह कहूँ कि वह नहीं है तो ये सारा प्रपंच (ईश्वर की अभिव्यक्ति ,ये संसार )कहाँ से आया ?
अगर घड़ा है तो भले कुम्हार वहां न हो घड़ा पूछ तो सकता है कुम्हार कहाँ है। इसका मतलब यह तो नहीं है कि कुम्हार नहीं है।घड़े का होना ही यह सिद्ध करता है क़ि कुम्हार का अस्तित्व है।
सच तो यह है :
अस्ति भाति प्रियं ,नामम् रूपम् -ये पांच गुण हरेक वस्तु के हैं।
यहां पहले तीन गुण अस्ति -है ,भाति -दिखता है आलोकित होता है ,तथा प्रियं
-आकर्षित करता है,भगवान के हैं
यानी -
It is .It shines .It attracts .
यह वही है :
सत्यम -ज्ञानम् -अनन्तं
यह वही है:
सच्चिदानंद -सत +चित +आनंद
consciousness which is eternal and limitless .
ईश्वर के लिए ही प्रयुक्त हुआ है।
तथा नामम ,रूपम -
संसार (जगत )के लिए प्रयुक्त हुआ है।नाम और रूप
हटा दो संसार गायब हो जाएगा।
गच्छति इति जगत :
ये संसार नाम -रूप की ही माया है। जीव (ब्रह्मण )इससे आच्छादित है माया का आवरण पड़ा हुआ है जीव पर। भगवान की दासी है ,शक्ति है माया ,मटीरियल एनर्जी है भगवान की माया।जीव इसी माया की वजह से भ्रमित रहता है अपने को जीवा मानकर जबकि वह भी ब्रह्म है।
HERE THE CREATED(सृष्टि या जगत ) ,THE CREATOR(नैमित्तिक कारण i .e the efficient cause ) AND THE MATERIAL USED IN CREATION (उपादान कारण सृष्टि का ,(i .e materail cause ) ARE THE ONE AND THE SAME AND NO SECOND .
THE CREATIVE POWER OF BRAHMAN IS MAYA (मिथ्या ).
THIS MAYA EXISTS BETWEEN THE SATYA AND ASATYA SO THAT THE WORLD (जगत )MAY BE MORE FUNNY .MAYA IS THE CAUSE OF OUR DELUSION .
आवरण और विक्षेप इसकी दो शक्तियां हैं जो हमें सत्य से दूर रखतीं हैं। हम अपने आपको देह -मन -बुद्धि तंत्र ही मानते रह जाते हैं।
1 टिप्पणी:
आवरण और विक्षेप को हटाये बिना सत्य स्वरूप की झलक नहीं मिलती...सुंदर ज्ञान !
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