प्राचीन अलेक्सेन्ड्रिया शहर के नदीतट pअर वो गुब्बारे बेच रहा था .उसका अंदाज़ निराला था .जब कोई बच्चा माँ बाप के संग उसके पास आकर निहारता उसके चेहरे की आभा निखरती .वो तरीके से अंग्रेज़ी मैं बोलता ,विच शेप एनीमल यू वांट ?उत्तर सुनने पर वो गुब्बारा फुलाता एक पम्प से ,धागे से बांधता और पलक झपकते ही वो शक्ल हाज़िर .उसके पास एक दानपत्र था ,जिस पर लिखा था ,माई लिविंग ,आप जो भी उसमे डालें ,१-२ डालर ,डाइम क्वाटर उसका एक ही ज़वाब होता थेंक यू .दारिद्र्य,दयनीयता का भाव कहीं नहीं ,एक संतोष ,एक मुस्कराहट उसके चेहरे पर चस्पां थी .बचपन में गुब्बारे वाला हमारी गली में भी आता था ,पिपनी बजाता ,जिसके एक सिरे पर फुला हुआ गुब्बारा होता .कीमत एक आना ,निर्भाव होता उसका चेहरा ,कोई ख़रीदे तो ठीक न ख़रीदे तो ठीक ,कोई शिकवा नहीं कोई शिकायत नहीं .आज भी उसकी हालत जस की तक है ,देश तब भी आजाद था आज भी है ,अलबत्ता अब उसका चेहरा पहले से ज्यादा उदास ज्यादा निर्भाव है ,कहीं कोई चमक कोई उमीद नहीं ,फ़िर न-उमीदी भी कैसी ?
शनिवार, 30 मई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें