गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

प्रदीप सिंह जी का विशेलषण सतसैया के दोहरों की तरह संक्षिप्त एवं सटीक है। लानत है ऐसे विपक्ष पर जो किसान और जवान के हितों को भी वोटबेंक की राजनीति का हिस्सा बनाने में आकंठ डूबा हुआ है।

ध्वस्त होते झूठ के किले (दैनिकजागरण अग्रलेख ,१ अक्टूबर २०२० )आज के विपक्ष के   स्वनिर्मित खड्ड में  धंसते चले जाने की धारावाहिक कथा है , जिसके प्रोपेगेंडा मिनिस्टर सत्यवादी शहज़ादा राहुल हैं ,पटकथा लेखिका श्रीमती मल्लिका मायनो बेशक उन्हें न इस देश की जिऑग्रफी से कुछ लेना देना है न हिस्ट्री से उनका अपना अजेंडा है राष्ट्रीय विखंडन ये उमर खालिद सरीखे इसी के पुर्ज़े पठ्ठे हैं। 

यही वे चिरकुट हैं जिन्होनें राफेल से लेकर किसानों को कृषि समबन्धी विधेयकों को क़ानून बनने पर बरगलाया है मुस्लिम भाइयों मौतरमाओं को नागरिकता संशोधन बिल पर उनकी नागरिकता छीने  जाने का काल्पनिक भय दिखलाया है। 

प्रदीप सिंह जी का विशेलषण सतसैया के दोहरों की तरह संक्षिप्त एवं सटीक है। लानत है ऐसे विपक्ष पर जो किसान और जवान के हितों को भी वोटबेंक की राजनीति का हिस्सा बनाने में आकंठ डूबा हुआ है। 

वीरेंद्र शर्मा (८७० /३१ ,भूतल ,निकटस्थ एफएम स्कूल ,सेक्टर -३१ ,फरीदाबाद १२१ ००३    

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )आज का राजनीतिक फलक  

(२ )https://veerujialim.blogspot.com/2020/09/blog-post.html

1 टिप्पणी:

Amrita Tanmay ने कहा…

सच कहीं छुपता है क्या ।