कविता :"धुंधलाते गंतव्यों के उस पार "- पंडित मुरारी लाल मुद्गिल ,एन -५७७ ,तीसरीमंज़िल ,सेक्टर -२५ ,जलवायुविहार ,नोएडा -२०१ ३०१
धुंधलाते गंतव्यों के उस पार ,शायद अर्थहीन रहा होगा ,
फिर दृष्टिकोण बदलकर देखें ,उड़े हुए रंगों में कुछ तो रंगीन रहा होगा।
रुका समय कहाँ ,किसका कब ,गतिशीलता के वह भी अधीन रहा होगा।
विस्तार -संकुचन का संबंध अटूट ,आदि अनादि तथा अंतहीन रहा होगा।
धूप खिली थी जहां छाँव है अब ,अर्वाचीन कभी तो नवीन रहा होगा।
बना सम्बल जब था बल मुझमें ,मैं भी तो अचिंत पुरुष अति अगिन रहा होगा।
स्मृति पुंज बन बैठीं वेदनाएं ,अतिशय ,व्योम से धरा तक कुछ तो लवलीन रहा होगा।
ईश्वर हीन जगत जब व्यथित क्या होना ,वह भी तो रचनाओं में तल्लीन रहा होगा।
संक्षिप्त परिचय रचनाकार श्री मुरारी ला मुद्गिल -का बचपन हरियाणा के रेवाड़ी क्षेत्र में बीता। सातवीं आठवीं कक्षा से ही आपके अंदर कविता मौजूद थी। इसी स्कूली समय में इनकी कविता उद्यान बहुत सराही गई थी। अलवर के राजऋषि कालिज में पढ़ाई के दौरान ही आप भारतीय वायुसेना में प्रवेश पा गए। यहां से वॉलंटरी सेवामुक्त हो आप रक्षा लेखा विभाग में नियुक्ति पा गए। तदनन्तर आयकर विभाग और दिल्ली वित्तीय निगम में भी कार्य किया। अनन्तर आपने राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र ,प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड में भी अपने सेवायें प्रदान की हैं । फिलवक्त आप विज्ञान प्रसार से सम्बद्ध हैं।
प्रकाशित रचनाओं में मुख्य कुछेक इस प्रकार हैं :मानस में समाज एवं व्यक्ति ,लक्ष्मण एक आकलन ,मानस में नारी ,टैगोर लीड्स लाइफ ,एवं काव्य रचनाओं में -अनुमान ,प्रश्नचिन्ह ,कविता -शहराते गाँव आदि हैं .
नैत्यिक पूजा अर्चना के अलावा आप अध्यात्मचेतना संपन्न व्यक्ति है ज्योतिष के आलादर्जा जानकार हैं। अध्यात्म में भी आपका अध्ययन एवं पकड़ है। पिचहत्तर के पार आप आज भी सक्रिय हैं। सर्वगुणसम्पन्न हम उनकी दीर्घायु चीरस्वास्थ्य की कामना करते हैं।
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