रमादान (रमजान )में इससे बड़ी और ज़कात क्या हो सकती है ?
AIIMS(JHAJJAR ,HARYANA )में तब्लीगी जमात के कोई १४२लोगों को यहां संस्थान के अलग वार्ड में रखके इलाज़ मुहैया करवाया गया था यह हर्ष की बात है इनमें से १२९ अब कोविड -१९ रोग से मुक्त होकर स्वस्थ हैं इससे भी बड़ी ख़ुशी की बात यह है इनमें से अनेक ने नव -संक्रमित मरीज़ों के इलाज़ के लिए ख़ुशी-ख़ुशी हामी भरी है ब्लड प्लाज़्मा ज़कात के तौर पर देने की।
अलावा इसके इनमें से कई ने भविष्य के शोध अध्ययन के लिए रक्तदान की भी पेशकश की है। यह एक बड़ी खबर है जो सभी खबरिया चैनलों से प्रसारित होनी चाहिए।इनमें कई विदेशी भी हैं ज़ाहिर है वायरस न मज़हब देखता है न कॉन्टिनेट्स। यही बात कॉनवेलेसेन्टप्लाज़्मा इलाज़ के लिए भी सही है।
यह बात इसलिए भी बड़े महत्व की है ,दिल्ली के कई अस्पतालों ने अब इस इलाज़ की पहल की है जिसकी शुरुआत साकेत मेक्स से और उससे भी पहले केरल और चीन में हो चुकी है।
लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल नै- दिल्ली ,मेदांता गुरुग्राम ,इंस्टीट्यूट ऑफ़ लिवर एन्ड बाइलरी साइंसिज ,अस्पतालों में भी आज़माइशें शुरू हो चुकीं हैं आरम्भिक नतीजे उत्साह बढ़ाने वाले हैं।लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में बंगले वाली मस्जिद से इलाज़ के लिए लाये गए और उनमें से ठीक हो गए लोगों में से २० फीसद ने भी प्लाज़्मा ज़कात देने की मंशा ज़ाहिर कर दी है।
प्लाज़्मा रक्त का वह पारदर्शी रंगहीन हिस्सा होता है जो खून का थक्का ज़मने में मदद करता है चोटग्रस्त मरीज़ में। इसी में कोरोना वारियर्स एंटी -बॉडीज मौजूद रहती हैं उन लोगों के रक्त में जो कोरोना रोग कोविड १९ से इलाज़ के बाद युद्ध जीत गए हैं।
इसी प्लाज़्मा में रक्षक कोशिकायें B लिम्फोसाइट्स मौज़ूद रहतीं हैं। जो आइंदा भी इस रोग के दोबारा होने पर मोर्चा संभाल लेती हैं। प्लाज़्मा लेने से पहले ठीक हो चुके व्यक्ति की कमसे कम दो बार और जांच की जाती है कहीं वह अभी भी तो संक्रमित नहीं है।एक पखवारे के अंतर् से प्लाज़्मा अंतरित कर दिया जाता है जरूरत मंद को जो गहन निगरानी में आईसीयू में रखा गया है मिकेनिकल वेंटिलेटर पर क्योंकि अब दी गई अतिरिक्त ऑक्सीजन भी काम नहीं दे रही है।
एक वेंटिलेटर के कुशल संचालन के लिए एक माहिर के अलावा एक एन्स्थीज़िओलॉजिस्ट ,कार्डिओलॉजिस और नफ्रोलॉजिस्ट की भी जरूरत पड़ जाती है प्रति दस लाख के पीछे भारत जांच के मामले में अन्य देशों से अच्छा काम कर रहा है जो लोग रोज़ अतिरिक्त जांच का वेंटिलेटर्स की कमी का रोना रो रहें हैं न वह जांच के बारे में कुछ जानते हैं न वेंटिलेटर के।
अगर गाल बजाने में पैसे खर्च होने लगें तो आदमी सोच समझ के ही ऐसा करेगा।
AIIMS(JHAJJAR ,HARYANA )में तब्लीगी जमात के कोई १४२लोगों को यहां संस्थान के अलग वार्ड में रखके इलाज़ मुहैया करवाया गया था यह हर्ष की बात है इनमें से १२९ अब कोविड -१९ रोग से मुक्त होकर स्वस्थ हैं इससे भी बड़ी ख़ुशी की बात यह है इनमें से अनेक ने नव -संक्रमित मरीज़ों के इलाज़ के लिए ख़ुशी-ख़ुशी हामी भरी है ब्लड प्लाज़्मा ज़कात के तौर पर देने की।
अलावा इसके इनमें से कई ने भविष्य के शोध अध्ययन के लिए रक्तदान की भी पेशकश की है। यह एक बड़ी खबर है जो सभी खबरिया चैनलों से प्रसारित होनी चाहिए।इनमें कई विदेशी भी हैं ज़ाहिर है वायरस न मज़हब देखता है न कॉन्टिनेट्स। यही बात कॉनवेलेसेन्टप्लाज़्मा इलाज़ के लिए भी सही है।
यह बात इसलिए भी बड़े महत्व की है ,दिल्ली के कई अस्पतालों ने अब इस इलाज़ की पहल की है जिसकी शुरुआत साकेत मेक्स से और उससे भी पहले केरल और चीन में हो चुकी है।
लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल नै- दिल्ली ,मेदांता गुरुग्राम ,इंस्टीट्यूट ऑफ़ लिवर एन्ड बाइलरी साइंसिज ,अस्पतालों में भी आज़माइशें शुरू हो चुकीं हैं आरम्भिक नतीजे उत्साह बढ़ाने वाले हैं।लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में बंगले वाली मस्जिद से इलाज़ के लिए लाये गए और उनमें से ठीक हो गए लोगों में से २० फीसद ने भी प्लाज़्मा ज़कात देने की मंशा ज़ाहिर कर दी है।
प्लाज़्मा रक्त का वह पारदर्शी रंगहीन हिस्सा होता है जो खून का थक्का ज़मने में मदद करता है चोटग्रस्त मरीज़ में। इसी में कोरोना वारियर्स एंटी -बॉडीज मौजूद रहती हैं उन लोगों के रक्त में जो कोरोना रोग कोविड १९ से इलाज़ के बाद युद्ध जीत गए हैं।
इसी प्लाज़्मा में रक्षक कोशिकायें B लिम्फोसाइट्स मौज़ूद रहतीं हैं। जो आइंदा भी इस रोग के दोबारा होने पर मोर्चा संभाल लेती हैं। प्लाज़्मा लेने से पहले ठीक हो चुके व्यक्ति की कमसे कम दो बार और जांच की जाती है कहीं वह अभी भी तो संक्रमित नहीं है।एक पखवारे के अंतर् से प्लाज़्मा अंतरित कर दिया जाता है जरूरत मंद को जो गहन निगरानी में आईसीयू में रखा गया है मिकेनिकल वेंटिलेटर पर क्योंकि अब दी गई अतिरिक्त ऑक्सीजन भी काम नहीं दे रही है।
एक वेंटिलेटर के कुशल संचालन के लिए एक माहिर के अलावा एक एन्स्थीज़िओलॉजिस्ट ,कार्डिओलॉजिस और नफ्रोलॉजिस्ट की भी जरूरत पड़ जाती है प्रति दस लाख के पीछे भारत जांच के मामले में अन्य देशों से अच्छा काम कर रहा है जो लोग रोज़ अतिरिक्त जांच का वेंटिलेटर्स की कमी का रोना रो रहें हैं न वह जांच के बारे में कुछ जानते हैं न वेंटिलेटर के।
अगर गाल बजाने में पैसे खर्च होने लगें तो आदमी सोच समझ के ही ऐसा करेगा।
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