सोनिया कांग्रेस महागर्त में
भारत की कांग्रेस पार्टी (अब सोनिया कांग्रेस )महागर्त में गिर गई है। ऐसा नहीं है कि गैरों ने इस पार्टी को गर्त में धकेल दिया है बल्कि अपने ही आदमियों ने कुछ ऐसे हालात बना दिए कि श्रीमती सोनिया कांग्रेस को ऐसे गड्ढे गिरना पड़ा जहां से निकलने का कोई मौक़ा नहीं है।
श्रीमती सोनिया अपनी कांग्रेस को नेहरू -गांधी की कांग्रेस कहकर लोगों के मन में कुछ सहानुभूति उपजाना चाहती हैं पर ये इतिहास किसी से छिपा नहीं है कि जिस कांग्रेस की वह वारिस हैं वह नेहरू -इंदिरा की कांग्रेस है। इसमें गांधीजी कहाँ से आ गये.
महात्मा गांधी के वारिस तो बिना किसी राजनीतिक महत्वकांक्षा के जी रहे हैं। सोनिया स्वयं को भी सोनिया गांधी कहकर गांधी परम्परा के भ्रम को बनाए रखना चाहती हैं। पर जिस कांग्रेस की वह अध्यक्षा हैं वह सही अर्थों में नेहरू से शुरू होकर सोनिया पर आकर लटक गई है। यह अच्छा है की लटके होने की अपेक्षा जमीन की किसी नीची तह में रहकर ही आराम कर लिया जाए। शायद यही समझकर लोगों ने श्रीमती सोनिया कांग्रेस के लिए यह अवसर उपलब्ध कराया है। लोगों पर दोष देने की अपेक्षा हमारा मकसद उन खनिकों को सामने लाना है जिन्होनें सोनिया कांग्रेस के लिए ये कब्र खोदी है।
यूं तो अपने कर्मों की वजह से बहुत सारे उल्लेखनीय हैं पर उन सबका ज़िक्र करने की बजाय एक- एक की गुणगाथा को अलग से सुना और समझा जाए तो अच्छा होगा।
इनमें से एक धोतीबाज हैं जो स्वयं को वैदक पंडित समझते हैं इसलिए पंचवेदी जैसा शब्द अपने नाम के पीछे इस्तेमाल करते हैं। ये तो उनकी विनम्रता है कि वह स्वयं को चतुर्वेदी कहते हैं।
लोकसभा , चुनाव -२०१४ से पहले एक बार एक पत्रकार ने उन महाशय से पूछा कि स्वामी रामदेव के बारे में आपका क्या विचार है। तो वह अपनी धोती फटकारते हुए अपने अहंकार में बोले कि कौन रामदेव। ऐसे ही आदमियों ने लोगों के मन में सोनिया कांग्रेस के प्रति वितृष्णा भर दी। भले ही हाथ में सचमुच की कुदाली लेकर क़ब्र न खोदी जाए पर सोनिया कांग्रेस के ऐसे ही नेताओं ने कांग्रेस के लिए गड्ढा खोदने का काम किया है। ऐसे एक नहीं अनेक हैं। अब बाकियों की गुणगाथा आगे क्रम से आप सुनेंगे।
Satyavrat Chaturvedi In Cong Media Panel
[ Updated 04 Dec 2010, 22:42:10 ]
(ज़ारी )
4 टिप्पणियां:
अहंकारी व्यक्ति अपना ही नहीं अपनों का भी अहित कर बैठता है
अतीत से सबक न लेना बुद्धिमानी नहीं है.
नई पोस्ट : प्रतीक चिन्ह कितने पवित्र
जो ओने से आगे किसी दुसरे को कुछ न समझे उसका ऐसा ही हश्र होता है ... जय हो सोनिया की ....
इंसान अपने अहम में ही मारा जाता है, बहुत सटीक आलेख, शुभकामनाएं.
रामराम.
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