भारतीय परिप्रेक्ष्य में कुछ हालिया घटनाएं हमारा ध्यान खींचती हैं इनमें शामिल है -राजस्थान ,मध्यप्रदेश की अप्रत्याशित बाढ़ ,महाराष्ट्र के कोंकड़ क्षेत्र ने जिसका और भी विकराल रूप देखा है। बिहार की आवधिक बाढ़। असम केरल पूर्व में ये मंजर देखने के अभ्यस्त हो चले थे।
बादलों का यहां वहां फटना बिजली का गिरना क्या आकस्मिक रहा है ?इसकी एक बड़ी वजह भारतीय समुद्री क्षेत्र का दुनिया भर के सागरों की वनिस्पत ज्यादा तेज़ी से गरमाना रहा है ,तो वनक्षेत्र का सफाया भी रहा है , अरावली जैसे क्षेत्रों की परबत मालाओं का आवासों द्वारा रौंदा जाना भी रहा है इतर अतिरिक्त खनन ,सड़कों का पहाड़ी अंचलों में निर्माण पारिस्थितिकी पर्यावरण तमाम पारितंत्रों को मुर्दार बनाता रहा है। क्या ये आकस्मिक है वन्य पशु आबादी का रुख करने लगे हैं। भविष्य के लिए ये अशुभ ही नहीं भयावह संकेत हैं जबकि उत्तरी अमरीका से लेकर कनाडा तक लू का प्रकोप दावानल का निरंतर खेला कब रुकेगा केलिफोर्निया से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक इसका कोई निश्चय नहीं।
What is IPCC ?
आईपीसीसी सरकार और संगठनों द्वारा स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति जलवायु परिवर्तन पर श्रेष्ठ संभव वैज्ञानिक सहमति प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। ये वैज्ञानिक वैश्विक तापमान में वृद्धि से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर समय-समय पर रिपोर्ट देते रहते हैं जो आगे की दिशा निर्धारित करने में अहम होती है।यह एक आलमी संगठन है जो जलवायु संबंधी एक सरकारी पैनल है। इंटरनेशनल गवर्मेंटल पीनल आन क्लाइमेट चेंज।
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रिपोर्ट के 200 से ज्यादा लेखक पांच परिदृश्यों को देखते हैं और यह रिपोर्ट कहती है कि किसी भी सूरत में दुनिया 2030 के दशक में 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के आंकड़े को पार कर लेगी जो पुराने पूर्वानुमानों से काफी पहले है। उन परिदृश्यों में से तीन परिदृश्यों में पूर्व औद्योगिक समय के औसत तापमान से दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की जाएगी।
रिपोर्ट 3000 पन्नों से ज्यादा की है और इसे 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि तापमान से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है और प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात और मजबूत और बारिश वाले हो रहे हैं जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है। यह सभी चीजें और खराब होती जाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसानों द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित की जा चुकी हरित गैसों के कारण तापमान ‘लॉक्ड इन’ (निर्धारित) हो चुका है। इसका मतलब है कि अगर उत्सर्जन में नाटकीय रूप से कमी आ भी जाती है, कुछ बदलावों को सदियों तक ‘पलटा’ नहीं जा सकेगा।
रिपोर्ट 3000 पन्नों से ज्यादा की है और इसे 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि तापमान से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है और प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात और मजबूत और बारिश वाले हो रहे हैं जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है। यह सभी चीजें और खराब होती जाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसानों द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित की जा चुकी हरित गैसों के कारण तापमान ‘लॉक्ड इन’ (निर्धारित) हो चुका है। इसका मतलब है कि अगर उत्सर्जन में नाटकीय रूप से कमी आ भी जाती है, कुछ बदलावों को सदियों तक ‘पलटा’ नहीं जा सकेगा।
इस रिपोर्ट के कई पूर्वानुमान ग्रह पर इंसानों के प्रभाव और आगे आने वाले परिणाम को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त कर रहे हैं लेकिन आईपीसीसी को कुछ हौसला बढ़ाने वाले संकेत भी मिले हैं, जैसे - विनाशकारी बर्फ की चादर के ढहने और समुद्र के बहाव में अचानक कमी जैसी घटनाओं की कम संभावना है हालांकि इन्हें पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। आईपीसीसी सरकार और संगठनों द्वारा स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति जलवायु परिवर्तन पर श्रेष्ठ संभव वैज्ञानिक सहमति प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। ये वैज्ञानिक वैश्विक तापमान में वृद्धि से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर समय-समय पर रिपोर्ट देते रहते हैं जो आगे की दिशा निर्धारित करने में अहम होती है।
दुनिया के 3 अरब लोगों का 'जीवन' महासागर, ले डूबेंगे मुंबई?
हमेशा के लिए बदल जाएगी धरती..
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इंसानों ने बिगाड़े हालात
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