वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ),८७० /३१ ,भूतल ,निकटस्थ एफएम स्कूल ,सेक्टर -३१ ,फरीदाबाद -१२१ ००३
सोमवार, 26 अक्तूबर 2020
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं , हवा में सनसनी घोले हुए हैं। गज़ब है सच को सच नहीं कहते वो , कुरान-ओ-उपनिषद खोले हुए है.
मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020
कबीर चंदन का बिरवा भला बेढियो ढाक पलास , ओइ भी चंदन होइ रहे बसे जु चंदन पास।
फिर छिड़ी बात बात मिट्टी की
मैं बचपन को बुला रही थी ,बोल उठी बिटिया मेरी ,
नंदन वन सी फूल उठी ,यह छोटी सी कुटिया मेरी ,
'माँ ओ ' कहकर बुला रही थी , मिट्टी खाकर आई थी ,
कुछ मुंह में कुछ लिए हाथ में ,मुझे खिलाने लाई थी..........
........ ..... ..... ....... ..... सुभद्रा कुमारी चौहान।
ज़माना कन्वेंशनल विजडम की ओर लौट रहा है।परम्परा को चूम रहा है दुलरा रहा है। विज्ञान अब पश्चिम के झरोखे से यही कर रहा है कह रहा है : जो बच्चे मिट्टी में खेलते कूदते बड़े होते हैं वह अपेक्षाकृत न सिर्फ तंदरुस्त रहते हैं उनकी त्वचा भी रुक्ष नहीं होती भाँति -भाँति की एलर्जीज़ एलर्जन्स के हमले से भी ये बच्चे कमोबेश बचे रहते हैं। मज़ेदार बात ये है ये बात अब किसी अजेंडा के तहत नहीं शोध की खिड़की से छनकर फिनलैंड योरोप और अमरीका के कई नगरों से आई है।
मिट्टी का गुणगायन किया गया है मेरे देश की मिट्टी सोना उगले -उगले हीरे मोती .....शोध ने यह भी चेताया है खेती ऑर्गेनिक हो मिट्टी की लवणीयता अतिरिक्त रूप से बढ़ी हुई न हो न ही उसमें रसायनों कीटनाशकों नाशिजीवों का रिसाव ज़रुरत से ज्यादा हुआ हो।
एक अपना देश हैं खाते इस देश की मिट्टी से उपजा अन्न गीत चीन के गाते हैं ढोल पाकिस्तान का पीटते हैं और यह सब एक अदद मल्लिका -ए -इटली और उसके अतिगुणवान चिरकुमार सपूत की वजह से हो रहा है। मणिशंकर कंकड़ से लेकर शशि फरूर ,खुर्शीद बरमान जैसे लोग पाक में जाकर पाक अब्बा के कसीदे काढ़ते हैं भारत के बारे में वहां जाकर कहते हैं यहां तब्लीग़ियों के साथ दुभांत होती है उन्हें बदनाम किया जाता है।
ज़ाहिर है दोष भारत की मिट्टी में नहीं आया है मिट्टी आज भी भारतीय शौर्य और मेधा के शिखर पुरुष रचती है पैदा करती है जो देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देते हैं दोष उन मनीष पनवाड़ियों का है जो देश के इन तमाम शौर्य के सर्वोच्च शिखरों को भी घिघियाके कहते हैं अरे वो सरकारी कर्मचारी।आप क्या हैं श्री मान आप भडवे हैं उकील हैं वह भी एक संकर कुनबे के भ्रष्ट शहज़ादे और उसकी अम्मा के। कुसूर आपका नहीं है आप तो नेक माँ बाप की संतान थे ,संग का रंग चढ़ गया। इसीलिए कहा गया है :
कबीर बाँसु बडाई बूडिया इउ मत डुबो कोइ ,
चंदन के निकटै बसै बाँसु सुगंधु न होइ।
कबीर चंदन का बिरवा भला बेढियो ढाक पलास ,
ओइ भी चंदन होइ रहे बसे जु चंदन पास।
गंध को सु उपसर्ग का संसर्ग मिले तो वह सुगंध और 'दुर 'का साथ नसीब होने पर दुर्गन्ध हो जाती है दोष मेरे देश की मिट्टी का नहीं है इन ना- शुक्रों का है खाते मेरे देश का हैं गीत गाते हैं चीन और पाक के.
घाटी में भी फिर बाज़ कुलबुलाने लगें हैं इन्हें इनकी पूर्व नज़रबंदी दिलवानी होगी।
कन्वेंशनल विज़डम भली लेकिन उसके कद्रदान तो हों संतमहात्मा और कुलटाओं का भेद समझे ,ऑर्गेनिक फार्मिंग के लाभ हानि की विवेचना करें।
गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020
कविता :धुंधलाते गंतव्यों के उस पार- पंडित मुरारी लाल मुद्गिल
कविता :"धुंधलाते गंतव्यों के उस पार "- पंडित मुरारी लाल मुद्गिल ,एन -५७७ ,तीसरीमंज़िल ,सेक्टर -२५ ,जलवायुविहार ,नोएडा -२०१ ३०१
धुंधलाते गंतव्यों के उस पार ,शायद अर्थहीन रहा होगा ,
फिर दृष्टिकोण बदलकर देखें ,उड़े हुए रंगों में कुछ तो रंगीन रहा होगा।
रुका समय कहाँ ,किसका कब ,गतिशीलता के वह भी अधीन रहा होगा।
विस्तार -संकुचन का संबंध अटूट ,आदि अनादि तथा अंतहीन रहा होगा।
धूप खिली थी जहां छाँव है अब ,अर्वाचीन कभी तो नवीन रहा होगा।
बना सम्बल जब था बल मुझमें ,मैं भी तो अचिंत पुरुष अति अगिन रहा होगा।
स्मृति पुंज बन बैठीं वेदनाएं ,अतिशय ,व्योम से धरा तक कुछ तो लवलीन रहा होगा।
ईश्वर हीन जगत जब व्यथित क्या होना ,वह भी तो रचनाओं में तल्लीन रहा होगा।
संक्षिप्त परिचय रचनाकार श्री मुरारी ला मुद्गिल -का बचपन हरियाणा के रेवाड़ी क्षेत्र में बीता। सातवीं आठवीं कक्षा से ही आपके अंदर कविता मौजूद थी। इसी स्कूली समय में इनकी कविता उद्यान बहुत सराही गई थी। अलवर के राजऋषि कालिज में पढ़ाई के दौरान ही आप भारतीय वायुसेना में प्रवेश पा गए। यहां से वॉलंटरी सेवामुक्त हो आप रक्षा लेखा विभाग में नियुक्ति पा गए। तदनन्तर आयकर विभाग और दिल्ली वित्तीय निगम में भी कार्य किया। अनन्तर आपने राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र ,प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड में भी अपने सेवायें प्रदान की हैं । फिलवक्त आप विज्ञान प्रसार से सम्बद्ध हैं।
प्रकाशित रचनाओं में मुख्य कुछेक इस प्रकार हैं :मानस में समाज एवं व्यक्ति ,लक्ष्मण एक आकलन ,मानस में नारी ,टैगोर लीड्स लाइफ ,एवं काव्य रचनाओं में -अनुमान ,प्रश्नचिन्ह ,कविता -शहराते गाँव आदि हैं .
नैत्यिक पूजा अर्चना के अलावा आप अध्यात्मचेतना संपन्न व्यक्ति है ज्योतिष के आलादर्जा जानकार हैं। अध्यात्म में भी आपका अध्ययन एवं पकड़ है। पिचहत्तर के पार आप आज भी सक्रिय हैं। सर्वगुणसम्पन्न हम उनकी दीर्घायु चीरस्वास्थ्य की कामना करते हैं।
मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020
शनिवार, 3 अक्तूबर 2020
अलबत्ता स्थानीय प्रशासन का भय ,गस्ती पुलिस का दबदबा उससे पैदा दहशत वक्त की पहले से ज्यादा मांग है। निर्भया के बाद भी जबकि पूरी देश की संवेदना यकसां थी महिला सुरक्षा को पंख लगे हों ऐसा कहना हिमाकत ही होगी
१९७७ के जुलाई माह में श्रीमती इंदिरागांधी बिहार के बेलछी में अतिविषम परिस्तिथियों में हरिजनों की एक बस्ती के कई रहवासियों की बड़े भूपतियों ज़मींदारों द्वारा की गई हत्या से विचलित होकर उनके परिवारजनों को सांत्वना देने पहुंची थी। यात्रा टुकड़ा टुकड़ा ट्रेन ,जीप ,ट्रैक्टर और दलदली इलाके में हाथी की सवारी के साथ संपन्न हुई थी ।
तब हरिजनों के लिए दलित शब्द का इस्तेमाल चलन में नहीं आया था -दलित यानी पददलित आज भी उसी स्थिति में है खासकर दलित समुदाय की हमारी बेटियां। निर्भया दलित नहीं थीं ,ज़ाहिर है वर्ण वर्ग कोई भी हो महिला सुरक्षा हमारे यहां हासिये पर ही रही आई है।किसी को किसी का खौफ ही नहीं है न फांसी का न सज़ा याफ्ता ताउम्र बने रहने का। खुलाखेल फरुख्खाबादी है।
जबकि कन्या -पूजन का चलन इसी भारतधर्मी समाज में बरकरार है ,भाषण में हमारे यहां :
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
का भी प्रलाप है। व्यवहार में एक के बाद एक हाथरस काण्ड ,बलरामपुर काण्ड दिल्ली काण्ड ,झुमरीतलैया काण्ड ,बिहार काण्ड ,महाराष्ट्र काण्ड ,......
राहुल कह सकते है कोरोना है तो क्या मेरी दादी भी हरिजनों की बस्ती में जातीं थीं। दिक्कत यह है एक सामाजिक भेदभाव ,तिरस्कार ,जातिगत ऊँच - नीच मनोविज्ञान ,मीडिया एक्स्पोज़र ,नेट और स्मार्ट फोन की अति ,अर्जित संस्कारों से ताल्लुक रखने वाली समस्या का राजनीतिकण पूरी बे -शर्मी के साथ कर लिया जाता है। महिला सुरक्षा को चाकचौबंद चुस्त दुरुस्त गोलबंद करने की गारंटी यहां किसी के भी पास नहीं है ।जैसा समाज वैसा ही तंत्र ,पुलिस ,प्रशासन ,मुख्यमंत्री किसी एक को कुसूरवार ठहराना वाज़िब नहीं है।
किसी समाज के नागर बोध का आइना वहां महिला की सामाजिक सुरक्षा स्थिति से गहरे ताल्लुक रखता है। फ़र्ज़ हम सबका है। अच्छे संस्कार अर्जित करने की सामाजिक होड़ हो तो स्थिति में सुधार हो। फिलवक्त तो ..... संस्कार के नाम पर इंटरनेट पे परोसी गई अवांछित सामिग्री ही आबालवृद्धों को लुभाये है।विज्ञापन में नारी शरीर की बारीकियां मुखर हैं।
इस सबमें एक बदलाव अपेक्षित हैं। इस हमाम में सब यकसां हैं।
अलबत्ता स्थानीय प्रशासन का भय ,गस्ती पुलिस का दबदबा उससे पैदा दहशत वक्त की पहले से ज्यादा मांग है। निर्भया के बाद भी जबकि पूरी देश की संवेदना यकसां थी महिला सुरक्षा को पंख लगे हों ऐसा कहना हिमाकत ही होगी ,दुर्दशा पहले जैसी ही है।इस या उस राजनीतिक ग्रुप के खिलाड़ी अपनी खिलंदड़ी से बाज़ नहीं आ रहे हैं। अपराधी के समर्थन में प्रदर्शन यहां अब होने लगा है। इससे बुरे हालात और क्या होंगें ?
ज़ाहिर है मामला संस्कारहीनता मूल्यहीनता पूर्व जन्मों की आपराधिक करनी ,भोग यौनि पशु यौनि के स्तर पर रहनी सहनी से भी जुड़ा है।
दुष्यंत जी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं :
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ,सब कमल के फूल मुरझाने लगे हैं ,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं लेकिन ये सूरत बदलनी चाहिए।
वीरेंद्र शर्मा (८७० /३१ ,भूतल ,निकटस्थ एफएम स्कूल ,सेक्टर ३१ ,फरीदाबाद -१२१ ००३ )
veerubhai1947@gmail.com
गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020
प्रदीप सिंह जी का विशेलषण सतसैया के दोहरों की तरह संक्षिप्त एवं सटीक है। लानत है ऐसे विपक्ष पर जो किसान और जवान के हितों को भी वोटबेंक की राजनीति का हिस्सा बनाने में आकंठ डूबा हुआ है।
ध्वस्त होते झूठ के किले (दैनिकजागरण अग्रलेख ,१ अक्टूबर २०२० )आज के विपक्ष के स्वनिर्मित खड्ड में धंसते चले जाने की धारावाहिक कथा है , जिसके प्रोपेगेंडा मिनिस्टर सत्यवादी शहज़ादा राहुल हैं ,पटकथा लेखिका श्रीमती मल्लिका मायनो बेशक उन्हें न इस देश की जिऑग्रफी से कुछ लेना देना है न हिस्ट्री से उनका अपना अजेंडा है राष्ट्रीय विखंडन ये उमर खालिद सरीखे इसी के पुर्ज़े पठ्ठे हैं।
यही वे चिरकुट हैं जिन्होनें राफेल से लेकर किसानों को कृषि समबन्धी विधेयकों को क़ानून बनने पर बरगलाया है मुस्लिम भाइयों मौतरमाओं को नागरिकता संशोधन बिल पर उनकी नागरिकता छीने जाने का काल्पनिक भय दिखलाया है।
प्रदीप सिंह जी का विशेलषण सतसैया के दोहरों की तरह संक्षिप्त एवं सटीक है। लानत है ऐसे विपक्ष पर जो किसान और जवान के हितों को भी वोटबेंक की राजनीति का हिस्सा बनाने में आकंठ डूबा हुआ है।
वीरेंद्र शर्मा (८७० /३१ ,भूतल ,निकटस्थ एफएम स्कूल ,सेक्टर -३१ ,फरीदाबाद १२१ ००३
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )आज का राजनीतिक फलक
(२ )https://veerujialim.blogspot.com/2020/09/blog-post.html